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Amrit Mahotsav : ओली ने खेतीखान में जलाई थी विदेशी सामान की होली

पंडित हर्षदेव ओली ने विदेशी सामान जलाकर स्वाधीनता आंदोलन में खेतीखान से आहुति दी थी। 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में चले असहयोग आंदोलन में शामिल होकर पहाड़ में अलख जगाने का काम किया। खेतीखान में ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 27 Mar 2021 10:40 AM (IST)Updated: Sat, 27 Mar 2021 10:40 AM (IST)
Amrit Mahotsav : ओली ने खेतीखान में जलाई थी विदेशी सामान की होली
हर्षदेव ओली इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू के साथ रह चुके थे।

चम्पावत, विनय शर्मा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित हर्षदेव ओली ने विदेशी सामान जलाकर स्वाधीनता आंदोलन में खेतीखान से आहुति दी थी। 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में चले असहयोग आंदोलन में शामिल होकर पहाड़ में अलख जगाने का काम किया। खेतीखान में ही अन्य स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के साथ उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

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खेतीखान निवासी पंडित ओली 1926-27 में साइमन कमीशन के विरोध से लेकर नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी सक्रिय रहे। कई बार अंग्रेजों ने उन्हें जेल में भी डाला। सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन पर शोध करने वाले खेतीखान निवासी चिंरजी लाल वर्मा ने बताते हैं कि इससे पूर्व हर्षदेव ओली इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू के साथ रह चुके थे। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने उन्हें इंडिपेंडेंट समाचार पत्र का सह सम्पादक बनाया था।

चम्पावत के अद्धैत आश्रम मायावती के  संन्यासियों के संपर्क में आकर हर्षदेव ओली ने अंग्रेजी भाषा सीखी थी। ओली ने चम्पावत और अल्मोड़ा में भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। देश आजाद होने से पहले ही छह जून 1940 को उनका निधन हो गया।

अद्वैत आश्रम से आया परिवर्तन

1890 में खेतीखान के गोसनी गांव में पैदा हुए हर्षदेव ओली की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। उस समय क्षेत्र में कोई स्कूल नहीं था। बाद में स्वजनों ने उन्हें पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा भेज दिया। कुछ समय तक अल्मोड़ा में अध्ययन करने के बाद वे वापस खेतीखान लौट आए। इस बीच उनका अद्वैत आश्रम मायावती में आना-जाना शुरू हो गया। यहीं से उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। यहां देश-विदेश के संन्यासियों से उन्होंने न केवल अंग्रेजी बोलना सीख बल्कि अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ भी बना ली थी। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भाषा भी उनके लिए सहायक बन।

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