अब ग्रामीणों को दोगुना मिलेगा पिरूल का भुगतान
राज्य सरकार ने वनाग्नि नियंत्रण के लिए पिरूल एकत्रीकरण कार्य में पब्लिक से सीधे जोड़ने के लिए संशोधित शासनादेश जारी किया है।
किशोर जोशी, नैनीताल : राज्य सरकार ने वनाग्नि नियंत्रण के लिए पिरूल एकत्रीकरण कार्य में पब्लिक से सीधे जोड़ने के लिए संशोधित शासनादेश जारी किया है। अब वन महकमे द्वारा वन पंचायत, स्वयं सहायता समूह व मान्यता प्राप्त संस्था, व्यक्ति विशेष आदि के माध्यम से वन क्षेत्र में पिरूल एकत्र करने को रोजगार के रूप में प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके लिए वन महकमा अब पिरूल एक रुपये प्रति किलो के स्थान पर दो रुपये प्रति किलो भुगतान करेगा। पिरूल से बिजली उत्पादन प्लांट व कोयला बनाने के प्रोजेक्ट की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है।
दरअसल वनाग्नि की वजह बने चीड़ को सरकार अभिशाप के बजाय वरदान बनाने की योजना पर काम कर रही है। इसके तहत जिलों में पिरूल से कोयला व बिजली बनाने के प्रोजेक्ट स्थापित किए जा रहे हैं। इन प्रोजेक्टों को स्थापित करने में सरकार द्वारा 50 फीसद सब्सिडी दी जा रही है। मगर प्रोजेक्ट लगाने में धनराशि की अधिकता तथा पिरूल खरीद के दाम कम होने की वजह से इसमें तेजी नहीं आ रही है। गुरुवार को अब प्रमुख सचिव वन आनंद वर्धन की ओर से शासनादेश जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 25 जून को जारी शासनादेश में वनाग्नि की रोकथाम के लिए चीड़ के पिरूल एकत्रित करने क लिए क्षेत्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के मकसद से वन विभाग द्वारा संस्था, व्यक्ति विशेष, वन पंचायत, स्वयं सहायता समूह को राज्य सेक्टर या कैंपा के अंतर्गत एक रुपये प्रति किलो भुगतान की स्वीकृति दी गई थी, जिसे अब पुनरीक्षित करते कर दिया गया है। अब वन महकमा प्रति किलो दो रुपये की दर से भुगतान करेगा।
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पांच लाख हेक्टेयर में है चीड़ का जंगल
उत्तराखंड में करीब पांच लाख हेक्टेयर चीड़ का जंगल है। वन महकमे के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार एक हेक्टेयर चीड़ के वन में सालाना करीब 40-50 टन पिरूल एकत्र होता है। सालाना राज्य में 50 लाख टन पिरूल एकत्र होने का अनुमान है।
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..ऐसे तो मजदूर ही बने रहेंगे
भले ही सरकार चीड़ से बिजली व कोयला बनाने के प्लांट को प्रोत्साहन दे रही है मगर अभी इसमें नीतिगत बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। जानकारों का कहना है कि सरकार ने पिरूल की खरीद के दाम बढ़ाने के बजाय प्लांट स्थापित करने में सौ फीसद राज सहायता देनी चाहिए। अन्यथा ग्रामीण मजदूर बनकर रही रह जाएंगे।