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डिफॉल्टर बॉन्डधारी डॉक्टरों का हिसाब रखेगा नया सॉफ्टवेयर, जानिए कैसे

डिफॉल्टर डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल सा हो गया है। इन डॉक्टरों पर डेढ़ साल से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की सख्त चेतावनी का भी असर नहीं दिख रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 10:43 AM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 06:50 PM (IST)
डिफॉल्टर बॉन्डधारी डॉक्टरों का हिसाब रखेगा नया सॉफ्टवेयर, जानिए कैसे
डिफॉल्टर बॉन्डधारी डॉक्टरों का हिसाब रखेगा नया सॉफ्टवेयर, जानिए कैसे

गणेश जोशी, हल्द्वानी : डिफॉल्टर डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल सा हो गया है। इन डॉक्टरों पर डेढ़ साल से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की सख्त चेतावनी का भी असर नहीं दिख रहा है। वर्ष 2013 से 2017 तक के150 ऐसे बॉन्डधारी डॉक्टर हैं, जिनकी पर्वतीय क्षेत्रों के अस्पतालों में नियमानुसार ड्यूटी का कोई हिसाब-किताब नहीं है। इस तरह की विषम स्थिति से स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग परेशान हो गया है। अब इन नदारद डॉक्टरों के लिए विशेष सॉफ्टवेयर तैयार किया जा रहा है। जिसे स्वास्थ्य विभाग को अनिवार्य रूप से हर तीन महीने में अपेडट करना होगा। विभागीय अधिकारियों का तर्क है, इसके बाद प्रत्येक डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने का स्पष्ट आधार भी तय हो जाएगा।

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कमेटी गठन के बाद भी नतीजा सिफर

राज्य के मेडिकल कॉलेजों से सरकारी शुल्क पर पढ़ाई पूरी करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कई बार प्रयास भी हुए। 2017 में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा सचिव डी सेंथिल पांडियन ने कमेटी गठित की थी। पूरी स्थिति पर रिपोर्ट भी मांगी, लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भी ठोस नतीजा नहीं निकल सका।

ये है बॉन्डधारी डॉक्टर 

बॉन्डधारी डॉक्टर यानी जिन्होंने एमबीबीएस की एक वर्ष की फीस तकरीबन साढ़े चार लाख रुपये के बजाय केवल 15 हजार रुपये ही जमा किए है। हालांकि, बाद में यह शुल्क 50 हजार रुपये हो गया। ऐसे डॉक्टरों को एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद पांच साल नौकरी अनिवार्य रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में करनी है।

नियुक्ति देरी में मिलने का तर्क 

मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी से वर्ष 2004 व 2005 में पासआउट 80 ऐसे बॉन्डधारी डॉक्टर हैं, जिन्हें सरकार ने नियुक्ति देने में तीन साल लगा दिए। अब इन डॉक्टरों का तर्क है कि तीन साल हम सरकार की नियुक्ति का इंतजार नहीं कर सकते थे। इसे लेकर भी डॉक्टर व सरकार के बीच तकरार की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में साफ है कि शासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारी लापरवाह रहे। इतने समय तक नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया। इसमें से तीन डॉक्टर ऐसे हैं, जिनका इसी तकरार में पांच साल बीत गया है।

पैसा जमा कर तोड़ रहे बांड

सरकार की स्पष्ट नीति न होने का भी ये डॉक्टर फायदा उठा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के ही आठ डॉक्टरों ने बांड तोड़ दिया है। इसके एवज में निर्धारित शुल्क जमा कर दिया गया है।

सुरक्षित होगा पूरा रिकॉर्ड

प्रो. सीपी भैंसोड़ा, प्राचार्य, राजकीय मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी ने बताया कि बांडधारी डॉक्टरों की सही व स्पष्ट जानकारी हमारे अलावा स्वास्थ्य विभाग के पास भी रहे, इसके लिए नया सॉफ्टवेयर तैयार किया जा रहा है। बांडधारी डॉक्टरों के ड्यूटी के अलावा पीजी करने या फिर गायब रहने की स्पष्ट जानकारी रहेगी। इसके बाद गायब रहने वाले डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई की जा सकेगी। यह सॉफ्टवेयर एक महीने के भीतर चालू हो जाएगा।

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