सिंचाई के नए तरीके बचेगा बूंद-बूंद पानी
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : धरा की कोख को सूखने से बचाने के लिए किसान अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसक
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : धरा की कोख को सूखने से बचाने के लिए किसान अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए उन्हें सिंचाई के पारंपरिक तरीके छोड़ कर आधुनिक तकनीक अपनानी होगी। इससे पानी का खर्चा आधा होने के साथ कृषि उत्पादन भी बढ़ेगा।
हल्द्वानी में भूजल स्तर गिरते-गिरते चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुका है। कई इलाकों में नलकूप सूख चुके हैं। वहीं नलकूप की गहराई पिछले बीस साल के मुकाबले 350 फीट नीचे पहुंच चुकी है। हल्द्वानी में तीस से अधिक नलकूपों का जलस्तर इस गर्मी में तीस फीट तक गिर चुका है। सिंचाई की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर खेतों में खरपतवार की समस्या से भी निजात मिलेगी। क्योंकि उपकरणों से केवल फसल के पौधों को पानी मुहैया होता है। इन तकनीक का इस्तेमाल करें
ड्रिप तकनीक : इस तकनीक में खेत में तीन से चार इंच का पीवीसी पाइप डाल जाता है। फसल के मुताबिक पाइप की दूरी निर्धारित की जाती है। पाइप में किए गए छेद से बूंद-बूंद पानी रिसता हुआ सीधा पौधे की जड़ में पहुंचेगा। ये तकनीक साठ फीसद पानी बचाने के साथ उत्पादन को भी बढ़ाएगी। औद्यानिक पौधे और औषधीय पौधों के लिए ये प्रक्रिया कारगर है। स्प्रिंकलर तकनीक
पोर्टेबल, माइक्रो और मिनी स्प्रिंकलर तीन विधि का इस्तेमाल इस तकनीक में किया जाता है। प्रोर्टेबल उपकरण बरसात की तरह खेत की सिंचाई करता है। तय जगह से 40 फीट तक फसल को पानी दिया जा सकता है। फुव्वारे की तरह पानी पौधों को दिया जाता है। अलग-अलग स्थान पर उपकरण फिट कर सिंचाई की जा सकती है। वहीं माइ्रक्रो स्प्रिंकलर विधि में ड्रिप की तरह एक मेन पाइपलाइन डाली जाती है। उसमें डेढ़ से दो इंच के छोटे-छोटे आउटलेट पाइप निकाले जाते हैं। जिनमें लगे छोटे फव्वारे सिंचाई को पानी छोड़ते हैं। इस उपकरण का इस्तेमाल नाजुक पत्तियों वाली फसल के लिए बेहतर माना जाता है। सिंचाई की नई तकनीकी अपनाने वाले किसानों को सब्सिडी दी जाती है। रामगढ़ और भीड़ापानी के अधिकांश काश्तकार इस तकनीक को अपना चुके हैं। उपकरणों की खरीद पर सरकार लघु सीमांत किसानों को 55 फीसद तक की सब्सिडी देती है।
त्रिलोकी नाथ पांडे, जिला उद्यान अधिकारी