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दखल से बाज नहीं आ रहा नेपाल, नाबी, कुटी और गुंजी के ग्रामीणों को नागरिकता का प्रस्ताव

नेपाल भारतीय क्षेत्र में दखल देने से बाज नहीं आ रहा। अप्रत्यक्ष रूप से सुदूर पश्चिम नेपाल की बैंस गांव पालिका के माध्यम से संबंधित ग्रामीणों को नेपाली नागरिकता का प्रस्ताव दिया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 06:36 PM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 06:36 PM (IST)
दखल से बाज नहीं आ रहा नेपाल, नाबी, कुटी और गुंजी के ग्रामीणों को नागरिकता का प्रस्ताव
दखल से बाज नहीं आ रहा नेपाल, नाबी, कुटी और गुंजी के ग्रामीणों को नागरिकता का प्रस्ताव

हल्द्वानी, अभिषेक राज : नेपाल भारतीय क्षेत्र में दखल देने से बाज नहीं आ रहा। पहले तो उसने पिथौरागढ़ जिले के धारचुला तहसील के महत्वपूर्ण गांव नाबी, कुटी, गुंजी और लिंपियाधुरा को गलत तरीके से अपना बताते हुए नक्शे में शामिल कर लिया, अब उसने गुरुवार को अप्रत्यक्ष रूप से सुदूर पश्चिम नेपाल की बैंस गांव पालिका के माध्यम से संबंधित ग्रामीणों को नेपाली नागरिकता का प्रस्ताव दिया है। इसके लिए बाकायदा गांव पालिका की नीति में बदलाव कर नोटिफिकेशन जारी किया गया कि 'यदि भारत के अतिक्रमण वाले क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण नेपाली नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं तो आवेदन कर सकते हैं।

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चीन से बढ़े तनाव के बीच नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी कर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचुला तहसील के नाबी, कुटी, गुंजी और लिंपियाधुरा को पहले ही अपना बता चुका है। नेपाल का दावा है कि संबंधित गांव उसके दार्चुला जिले के हैं। इस झूठ को सच साबित करने के लिए उसने समिति गठित की। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बात उठाई, लेकिन उसका झूठ हर जगह पकड़ लिया गया।

हर मोर्च पर मुंह की खाने के बाद नेपाल ने अब मुद्दे को नए सिरे से तूल देने के लिए यहां के ग्रामीणों को नागरिकता का प्रस्ताव दिया है। इसके लिए नेपाल ने सुदूर पश्चिम नेपाल के दार्चुला जिले की बैंस गांव पालिका को माध्यम बनाया है। यहां के अध्यक्ष दीलिप सिहं ने दावा किया कि नबी, कुटी, गुंजी और लिंपियाधुरा के ग्रामीणों ने 2015 के गांव पालिका चुनाव में हिस्सा लिया था। सभी की रसीद उनके पास है। ग्रामीण आम चुनाव में भी मतदान करते हैं। 2018 की राष्ट्रीय जनगणना में भी शामिल रहे।

लेफ्टिनेंट कर्नल रि. बीडी कांडपाल ने बताया कि नेपाल यह सब चीन की सह पर कर रहा है। इससे भारतीय क्षेत्र पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। सीमांत के ग्रामीण भारत के प्रति समर्पित हैं। उन्हें कोई बरगला नहीं सकता।

गांव पालिका ने तैयार कराई डाक्यूमेंट्री

नेपाल सरकार की मदद से गांव पालिका ने संबंधित गांवों को अपना बताने के लिए डाक्यूमेंट्री तैयार कराई है। इसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा सहित पूरे बैंस गांव के बारे में बताया गया है। सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई मुद्दे के आधार पर पूरे क्षेत्र को नेपाली बताया गया है।

मूलभूत सुविधाओं का टोटा, भारतीयों को चले बरगलाने

सुदूर पश्चिम नेपाल की जिस बैंस गांव पालिका ने भारतीय ग्रामीणों को नेपाली नागरिकता का प्रस्ताव पास किया है वह खुद के नागरिकों को मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करा सकी है। आज भी कोई बीमार पड़ता है तो उसे पैदल ही करीब 20 किलोमीटर दूर इलाज के लिए ले जाया जाता है। भारतीय ग्रामीणों को जो चावल करीब तीन रुपये प्रति किलो मुहैया कराया जाता है उसे नेपाली 100 रुपये में खरीदने को मजबूर हैं। अभी मार्च में ही जब बॉर्डर सील हुआ तो खाने के लाले पड़ गए थे। तब नेपाली सेना ने हेलीकॉप्टर से चावल व दूसरे जरूरी सामान पहुंचाया था। वहीं, नबी, कुटी और गुंजी के ग्रामीणों को स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा का बेहतर प्रबंधन है, लेकिन गांव पालिका में इसका घोर अभाव। वहां के ग्रामीणों को एक किलो नमक खरीदना हो तो पूरे दिन चलना पड़ता है।


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