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नंदा देवी महोत्सव को लेकर साफ हुई तस्वीर, 23 से 28 अगस्त के बीच होगा आयोजन

नंदा देवी महोत्सव को लेकर अटकलें व आशंकाओं का दौर खत्म हो गया है। आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा की बैठक में 117वें महोत्सव की तस्वीर साफ हो गई है ।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 07:51 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 07:52 PM (IST)
नंदा देवी महोत्सव को लेकर साफ हुई तस्वीर, 23 से 28 अगस्त के बीच होगा आयोजन
नंदा देवी महोत्सव को लेकर साफ हुई तस्वीर, 23 से 28 अगस्त के बीच होगा आयोजन

नैनीताल, जेएनएन : कोरोना काल मे नैनीताल के श्रद्धा व आस्था का प्रतीक नंदा देवी महोत्सव को लेकर अटकलें व आशंकाओं का दौर खत्म हो गया है। आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा की बैठक में 117वें महोत्सव की तस्वीर साफ हो गई है । शुक्रवार को श्रीराम सेवक सभा अध्यक्ष मनोज साह की अध्यक्षता एवं महासचिव जगदीश बवाड़ी के संचालन में आयोजित हुई बैठक में तय किया गया कि महोत्सव 23 अगस्त से 28 अगस्त के बीच आयोजित होगा। महोत्सव में केंद्रीय गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य सरकार की गाइडलाइंस तथा जिला प्रशासन के दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा।

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महोत्सव में सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ आदि विधि-विधान से होंगे। सामाजिक दूरी बनाते हुए श्रद्धालुओं को लाइव टेलीकास्ट के जरिये माता नंदा-सुनंदा के दर्शन कराए जांएगे। बैठक में विमल साह, राजेंद्र बजेठा, विमल चौधरी, मनोज जोशी, हिमांशु जोशी, मुकेश जोशी, किशन नेगी, कमलेश ढोंडीयाल, घनश्याम साह, भीम सिंह कार्की, राजेंद्र साह, आलोक चौधरी, ललित साह, अशोक साह, किशन गुरुरानी , चंद्रप्रकाश साह आदि मौजूद रहे। उल्लेखनीय है कि महोत्सव की व्यावसायिक गतिविधियों को नगरपालिका द्वारा संचालित किया जाता है।

मां नंदा को माना जाता है पार्वती का रूप

नंदा देवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है। मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है। वर्ष 1638-78 के दौरान चंद राजा बाज बहादुर चंद ने पंवार राजा को युद्ध में पराजित किया और विजय के प्रतीक के रूप में बधाणकोट से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को लेकर यहां आए। जिसे उस समय मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित किया गया। बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्वर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को दीप चंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया।

मां नंदा की हैं सात बहनें

मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं। जो लाता, द्योराड़ी, पैनीगढ़ी, चांदपुर, कत्यूर, अल्मोड़ा और नैनीताल में स्थित हैं। उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड व हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं। माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में स्नान किया था। उनका सुसराल कैलाश में महेश्वर के यहां था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्‍‌नी पार्वती को ही मा नंदा माना गया है। कैनोपनिषद में हिमालय पुत्री के रूप में हेमवती का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्मग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं। जिनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया व शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है।

मां नंदा से जुड़े हैं प्रदेश के कई उत्सव

मां नंदा से जुड़े अनेक पर्व आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में बड़े ही उत्साह से मनाए जाते हैं। मां नंदा के भाई और उनके अंगरक्षक लाटू देवता का पूजन सावन के महीने में हरेला पर्व के रूप में शिव-पार्वती के रूप में किया जाता है। मां नंदा को सुख समृद्धि देने वाली हरित देवी भी माना गया है। प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में भगवती नंदा से जुड़े उत्सवों को मनाने की परंपरा है। भिटोली का पर्व भी नंदा से जुड़ी मान्यता का रूप माना जाता है। जिसमें भाई बहन के ससुराल जाकर उसे तरह तरह की चीजें भेंट करता है। मां नंदा देवभूमि उत्तराखंड की अगाध आस्था का पर्याय है। यही कारण है कि यहां कई नदियों, पर्वत श्रखलाओं व नगरों के नाम भी मां नंदा के नाम पर रखे गए हैं।

अल्मोड़ा का नंदा देवी मंदिर

अल्मोड़ा में गोरखा काल से इस मंदिर को नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां अब हर साल नंदा देवी का भव्य मेला यहा आयोजित होता है। नंदा देवी मंदिर में स्थित पार्वतेश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की बनावट नागर शैली की है। जिसमें भव्य नक्काशी की गई है। मंदिर की दीवारों में अनेक चित्र बनाए गए हैं। मंदिर के ऊपर आठ खंभों वाला बिजौरा बना हुआ है। मंदिर की दीवारों पर लोक गाथाओं, लोक परंपराओं, दैत्य मानव संग्राम की कलाकृतियों को उकेरा गया है। पत्थर का मुकुट और अन्य कलाकृतिया मंदिर की शोभा को और अधिक बढ़ा देती हैं। जबकि पाषाण काल से आधुनिक सभ्यता के चित्रों को भी सुंदर तरीके से चित्रित किया गया है।

मां पार्वती के रूप में की जाती है पूजा

अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यहा मां नंदा की पूजा शक्ति स्वरूपा मा पार्वती के रूप में की जाती है। नंदा देवी मेला भाद्र माह की शुक्ल षष्ठी से प्रारंभ होता है। इसी दिन मा नंदा की पूजा की जाती है। देवी का अवतार जिस पर होता है उसे देवी का डंगरिया कहा जाता है। मां नंदा की पूजा के लिए केले के वृक्षों से मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। केले के वृक्षों के चयन के लिए डंगरिया हाथ में चावल और पुष्प लेकर उसे केले के वृक्षों की ओर फेंकते हैं। जो वृक्ष हिलता है उसकी पूजा कर उसे मां के मंदिर में लाया जाता है।

सप्तमी से शुरू होता है मूर्तियों का निर्माण 

देवी की मूर्तियों के निर्माण का कार्य सप्तमी के दिन से शुरू होता है। जबकि अष्टमी को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस दौरान नंदा देवी परिसर में भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। केसी सिंह बाबा करते हैं मेले का प्रतिनिधित्व नंदा देवी महोत्सव का आयोजन सालों पूर्व चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा किया जाता था। लेकिन 1938 में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई संतान न होने के कारण इस महोत्सव का आयोजन चंद वंश की काशीपुर शाखा द्वारा किया जाने लगा। वर्तमान में इस मेले का प्रतिनिधित्व नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा द्वारा किया जाता है।

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