हल्द्वानी मंडी में 50 फीसद घट गई पहाड़ी टमाटर की आमद, जानिए कारण
हल्द्वानी स्थित कुमाऊं की सबसे बड़ी मंडी में इस साल पहाड़ के टमाटर की आमद 50 फीसद तक घट गई है। मैदानी क्षेत्रों में खुद के टमाटर की पैदावार बढऩे व टमाटर की फसल में रोग लगने को इसका सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : हल्द्वानी स्थित कुमाऊं की सबसे बड़ी मंडी में इस साल पहाड़ के टमाटर की आमद 50 फीसद तक घट गई है। मैदानी क्षेत्रों में खुद के टमाटर की पैदावार बढऩे व टमाटर की फसल में रोग लगने को इसका सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। किसानों और मंडी के विशेषज्ञों की मानें तो पहाड़ का टमाटर अब सोयाबीन की राह चल पड़ है।
रोजाना हजार क्विंटल पहुंच रहा टमाटर
हल्द्वानी मंडी में इन दिनों रोजाना एक हजार क्विंटल टमाटर ही किसानों द्वारा पहुंच रहा है। जबकि, पिछले सीजन में दो से तीन हजार क्विंटल टमाटर प्रतिदिन मंडी पहुंच रहा था। पूरे सीजन में 40 हजार क्विंटल टमाटर पहाड़ी क्षेत्रों से मंडी पहुंचा था।
रकबा कम होना भी चिंताजनक
जिले में टमाटर का उत्पादन गौलापार, कोटाबाग, कमोला-धमोला, चोरगलिया, चकलुआ, कालाढूंगी में किया जाता है। दिसंबर में टमाटर की फसल तैयार होने लगती है। जनवरी और फरवरी में पहाड़ी क्षेत्र के इस टमाटर का पीक सीजन होता है। लेकिन पिछले कुछ समय से गौलापार व इसके आसपास के क्षेत्रों में टमाटर की फसल रोग लगने के कारण बर्बाद हो रही है। ऐसे में कई किसानों ने टमाटर की खेती से किनारा कर लिया है। क्षेत्र के लोगों की मानें तो अब रकबा 50 फीसद तक घट गया है।
टमाटर की यहां होती है सप्लाई
पहाड़ के टमाटर की सप्लाई वर्तमान में देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, वाघा बार्डर, दिल्ली, हरियाणा तक सप्लाई होता है। इतना ही नहीं कुछ समय पहले तक यह टमाटर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान तक भी भेजा जाता था।
यहां भी होने लगी पैदावार
मंडी के आढ़तियों ने बताया कि पहाड़ के जैसा ही टमाटर अब रांची, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी उत्पादित होने लगा है। ऐसे में इन क्षेत्रों से पहाड़ के टमाटर की डिमांड धीरे-धीरे कम होने लगी है।
पहाड़ का सोयाबीन भी हो गया था गायब
मंडी के आढ़तियों ने बताया कि एक दौर था जब हल्द्वानी मंडी में पहाड़ का सोयाबीन प्रसिद्ध था। टमाटर की तरह ही इसकी डिमांड भी अन्य राज्यों तक होती थी। इसके लिए बाकायदा हल्दूचौड़ में सोयाफैक्ट्री भी स्थापित हुई। लेकिन सोयाबीन को एक रोग ने अपने चपेट में ले लिया। तमाम कोशिशों के बावजूद इससे निजात नहीं मिल पाई। जिसके चलते सोयाबीन धीरे-धीरे मंडी से गायब होता चला गया।