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आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी है मां पूर्णागिरि धाम, माता की नाभि गिरि थी यहां

कहा जाता है कि संवत 1621 में गुजरात के श्रीचंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि ने नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया।

By Prashant MishraEdited By: Published: Thu, 07 Oct 2021 08:50 AM (IST)Updated: Fri, 08 Oct 2021 09:40 AM (IST)
आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी है मां पूर्णागिरि धाम, माता की नाभि गिरि थी यहां
जहां नाभि गिरी उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।

विनोद चतुर्वेदी, चम्पावत : उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध देवी शक्तिपीठ मां पूर्णागिरि धाम की यह स्तुति श्रीमद्देवी भागवत पुराण में की गई है। चम्पावत जनपद के टनकपुर कस्बे से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी में मां पूर्णागिरि विराजमान हैं। पुराणों में उल्लेख है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को जला डाला तो भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे। इस दौरान मां की नाभि अन्नपूर्णा चोटी पर गिर गई। जहां नाभि गिरी उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।

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कहा जाता है कि संवत 1621 में गुजरात के श्रीचंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि ने नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया। इस आदेश को शिरोधार्य कर श्रीचंद तिवारी ने यहां मां के भव्य मंदिर की स्थापना की। मंदिर बन जाने के बाद वर्ष 1632 में इस पवित्र धाम में पूजा-अर्चना शुरू हुई। तब से यह स्थान आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी बना हुआ है। यहां स्थित मां के इस स्वरूप को पुराणों में 'पूर्णाÓ कहा गया है। जिसका तात्पर्य है इच्छित मनोभाव को पूर्ण करने वाली।

मां पूर्णागिरि यहां पहुंचने वाले हर भक्त की मुराद जरूर पूरी करती है। यही कारण है कि आज भी न केवल उत्तराखंड अपितु देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां से मन्नत मांगते हैं। चैत्र नवरात्र में यहां एक माह का सरकारी मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शीश नवाते हैं। शारदीय नवरात्र में भी यहां दूर दराज से लाखों भक्त पहुंचते हैं। शक्तिपीठ में पहुंचने से पहले द्वारपाल के रूप में भैरव बाबा का मंदिर है। जहां वर्ष भर धूनी जली रहती है। कहा जाता है कि बाबा भैरवनाथ के दर्शन के बाद ही वह देवी के दर्शन को जाने की अनुमति देते हैं। बाबा भैरव को हनुमान का सारथी व शिव के काल का रूप भी माना जाता है। पूर्णागिरि यात्रा में टनकपुर के बाद आठ किमी दूर पहला पड़ाव ठूलीगाड़ आता है। जहां शारदा नदी मां पूर्णागिरि के चरण पखारती हुई कल-कल करते हुए बहती है। यहां श्रद्धालु स्नान कर अपनी यात्रा शुरू करते हैं। इस स्थान पर विभिन्न धर्म पारायण लोगों द्वारा भंडारा लगाया जाता है। 

महाकाली रूप में किया था राक्षस का संहार 

धाम के टुन्यास क्षेत्र में मां पूर्णागिरि ने महाकाली के रूप में 'टुन्नीÓ नामक राक्षसी और 'शंभू-निशुंभÓ नामक राक्षसों का संहार कर उनके आतंक से निजात दिलाई थी। तब से यहां महाकाली के रूप में मां की पूजा-अर्चना की जाती है। पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन अब प्रतीकात्मक रूप में बकरे के बाल काटकर अथवा नारियल फोड़कर रस्म निभाई जाती है। इस स्थान पर गौतम ऋषि के श्राप की मुक्ति के लिए देवराज इंद्र का यज्ञ स्थल होने का भी जिक्र है। यहां यज्ञ पूजन के साथ ही मुंडन संस्कार भी किया जाता है। 

झूठा मंदिर की भी होती है पूजा 

मां पूर्णागिरि धाम में झूठा मंदिर की भी पूजा की जाती है। कहावत है कि किसी सेठ ने पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मां के दरबार में सोने का मंदिर चढ़ाने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन मन्नत पूरी होने के बाद लोभवश उस सेठ ने तांबे में सोने का पानी चढ़ाकर मंदिर बनवाया। जब मजदूर उस मंदिर को धाम की ओर ले जा रहे थे तो विश्राम के बाद वह मंदिर वहां से नहीं उठ सका। तब से इसे झूठे मंदिर के रूप में जाना जाता है और मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद श्रद्धालु इस मंदिर में भी पूजा करते हैं। 

सिद्ध बाबा के दर्शन से पूरी होती है यात्रा 

पूर्णागिरि मंदिर से ऊंची चोटी पर एक सिद्ध बाबा ने अपना आश्रम जमा लिया था। जो उन्मत्त होकर देवी को श्रृंगार को देखता था। क्रोध में देवी ने सिद्ध को शारदा नदी के पार नेपाल में फेंक दिया। लेकिन जब वह अपने कृत्य के लिए गिड़गिड़ाया और माफी मांगी तो मां ने कहा कि उनकी यात्रा तभी पूरी होगी जब श्रद्धालु सिद्ध बाबा के भी दर्शन करेंगे। सिद्धबाबा का मंदिर नेपाल के ब्रह्मदेव में स्थापित है। मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद भक्त सिद्धबाबा मंदिर में शीश नवाते हैं। 

ऐसे पहुंचे मां के द्वार 

पूर्णागिरि पहुंचने के लिए दिल्ली से टनकपुर तक सीधी ट्रेन सेवा है। इसके अलावा त्रिवेणी एक्सप्रेस भी यहां चल रही है। पीलीभीत से भी ट्रेन सेवा का संचालन हो रहा है। लखनऊ, देहरादून सहित देश के कई बड़े शहरों से टनकपुर तक सीधी बस सेवा की भी सुविधा है। मेले के दौरान तो यहां स्पेशल ट्रेनें भी संचालित होती हैं। हालांकि यहां कोरोना काल के दौरान ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया था लेकिन स्थिति सामान्य होने के बाद फिर से ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया है।

श्रद्धालु अपने निजी वाहनों से सीधे भैैरव मंदिर तक पहुंच सकते हैं। बड़ी बसों का संचालन ठूलीगाड़ तक ही होता है। यहां से श्रद्धालु टैक्सियों से पूर्णागिरि पहुंच सकते हैं। टनकपुर से भी टैक्सी के जरिए ठूलीगाड़ और भैरव मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके बाद मां के दर्शन के लिए 4 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। जिसमें कई रोचक पड़ाव आते हैं। यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए टनकपुर में रहने-खाने की पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं। यहां होटलों के साथ ही धर्मशालाएं स्थापित हैं। 

मंदिर समिति अध्यक्ष भुवन चंद्र पांडेय का कहना है कि मां पूर्णागिरि धाम श्रद्धालुओं की आस्था का अटूट केंद्र है। आज से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। मंदिर समिति की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तमाम व्यवस्थाएं की गई हैं। प्रशासन से भी सुरक्षा समेत बिजली पानी की व्यवस्था सुचारू रखने का अनुरोध किया गया है। 


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