बाहरी ही नहीं अपनों पर भी रखिए जासूसी नजर
प्रदेश में बढ़ीं दुष्कर्म की घटनाओं ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन क्या आपको पता है कि बच्चे बाहर से कहीं अधिक अपने घरों में असुरक्षित हैं।
जासं, हल्द्वानी : देहरादून के स्कूल में पहले बच्ची से दुष्कर्म और फिर गर्भपात की कोशिश कराने का मामला अभी की ही बात है। अब हल्द्वानी में स्कूल वैन में मासूम से दुष्कर्म की घटना ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है। जनमानस में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता है। घर-घर में इन घटनाओं का जिक्र लोगों की जुबान पर है। कोई इसके लिए स्कूल प्रबंधन को जिम्म्मेदार ठहरा रहा है, तो कुछ का कहना है कि यह शासन-प्रशासन-पुलिस के लचीले रवैए का परिणाम है। जितने मुंह उतनी बातें।
पिछले वर्ष भी हल्द्वानी के एक प्रतिष्ठित स्कूल में वहीं के कर्मचारी द्वारा मासूम से दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने का मामला सामने आया था। जिसके बाद शहरवासियों का गुस्सा सातवें आसमान पर था और स्कूल में जमकर तोड़फोड़ हुई। तब भी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी खूब सवाल खड़े हुए, जैसा कि अब हो रहा है। हालिया आक्रोश भी हफ्ते-दो हफ्ते बाद शात पड़ जाएगा। सब कुछ वैसा ही रहेगा। पुलिस कुछ दिन अभियान चलाएगी, प्रशासन बैठकों में निर्देश देगा और जिम्मेदार स्कूल संचालक वैसे ही सभी बातों को अनसुना कर जाएंगे जैसे करते आए हैं। इन घटनाओं की परिणति ऐसी होती है। मूल समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेगी। अब तक की घटनाएं इसकी बानगी हैं और हम इनके अभ्यस्त।
क्या आपको पता है कि बच्चों को जितना खतरा घर के बाहर है उतना ही घर के अंदर और आसपास भी है। एक रिसर्च के मुताबिक बच्चों के साथ यौन शोषण की 93 फीसद घटनाएं किसी अपने सगे-संबंधी, रिश्ते-नातेदार द्वारा अंजाम दी जाती हैं, लेकिन लोकलाज के भय से अधिकतर घटनाएं सामने नहीं आ पाती हैं। कार्रवाई न होने से मानसिक विकृतियों के शिकार लोगों का दुस्साहस बढ़ता है। ऐसे में आरोपित कोई भी हो उसके खिलाफ शिकायत कराने से झिझकें न। ताजा मामले में तो मासूम के माता-पिता ही आगे नहीं आए। यहां तक कि पुलिस एवं समाजसेवियों ने उनके जमीर को झकझोरा भी। उनके आगे न आने की वजह जो भी रही हो, लेकिन पीछे हटने के संकेत एक जागरूक समाज के लिए कतई ठीक नहीं।
बहरहाल ऐसा क्या है कि समाज को शर्मसार करने वाली घटनाएं पिछले कुछ वषरें में बेतहाशा बढ़ गई हैं। इसके लिए हम और आप जिम्मेदार होने के साथ ही मोबाइल और सोशल मीडिया भी कम जिम्मेदार नहीं है। ज्यादातर युवाओं के मोबाइल में पोर्न फिल्में भरी रहती हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से इन्हें ट्रांसफर करना भी आसान है। ऐसे में इसका प्रसार तेजी से हो रहा है। यह इस दौर की सबसे खौफनाक बात है। इस पर नियंत्रण तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन निगरानी जरूर रखी जा सकती है। दूसरी बात जीवन की आपाधापी और स्पद्र्धा के इस दौर में अभिभावक भी बच्चों से काफी दूर हुए हैं। जहां बेहतर परवरिश के लिए बच्चों से निरंतर जुडे़ रहने और उनके साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखने की बात की जाती है, वहीं अब बच्चों को बमुश्किल पैरेंट्स का साथ मिल पाता है। यह न होने दीजिए। बच्चों के साथ जुड़ियों, उनकी तकलीफों को समझिए और उन्हें गुड और बैड टच का फर्क बताइए।