हिमालयी जनजाति वन रावत का वैक्सीनेशन नहीं होने का मामला हाईकोर्ट पहुंचा, सुनवाई आज
उत्तराखंड की सबसे छोटी हिमालयी जनजाति को अभी तक वैक्सीन न किए जाने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट ने इस संबंध में अखबार की खबर का संज्ञान लेते हुए रीवैक्सिनेशन इन वन रावत नामक जनहित याचिका दाखिल की है।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : उत्तराखंड की सबसे छोटी हिमालयी जनजाति को अभी तक वैक्सीन न किए जाने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट ने इस संबंध में अखबार की खबर का संज्ञान लेते हुए रीवैक्सिनेशन इन वन रावत नामक जनहित याचिका दाखिल की है। अधिवक्ता सुहास रतन जोशी इस महत्वपूर्ण मामले को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाए थे। जोशी इस मामले में बुधवार को तय सुनवाई में वन रावतों की ओर से बहस भी करेंगे।
जनहित याचिका में कहा गया है कि हिमालयी जनजाति वन रावत जनजाति की कुल जनसंख्या 650 है। और यह सभी गरीबी रेखा से नीच जीवनयापन कर रहे हैं। छोटी आदिम जनजाति पिथौरागढ़ जिले के तीन विकास खंडों धारचूला, डीडीहाट और व कनालीछीना में रहती है। उनके कल्याण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, वन रावत की 95 प्रतिशत आबादी के पास सेल फोन नहीं है और एक भी सदस्य के पास स्मार्ट फोन नहीं है। ऐसे में वह टीकाकरण के लिए कोविन एप पर पंजीकरण नहीं कर सकते हैं। वैक्सीनेशन सेंटर भी उनकी बस्तियों से 15 से 25 किमी दूर हैं और कोविड कर्फ्यू के दौरान उनके लिए वहां पहुंचना मुश्किल है। वन रावत अपनी एक भाषा बोलते हैं, इस वजह से टीकाकरण के बारे में उन्हें जानकारी भी नहीं है।
याचिका में पिथौरागढ़ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एचसी पंत के बयान का उल्लेख है "न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने वनराजियों के वैक्सीनेशन के लिए कोई विशेष निर्देश जारी किया है, इसलिए अभी तक इसके लिए कोई अलग कार्यक्रम नहीं है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वन रावत अपनी खुद की भाषा बोलते हैं, दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम करते हैं और उन्हें महामारी की कोई जानकारी भी नहीं है। इस समाज के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। उनके पास साधन नहीं है और वे जनजाति के बाहर के बच्चों के साथ फिट नहीं हो सकते हैं। याचिका में इस हिमालयी जनजाति के टीकाकरण के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
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