हाईकोर्ट में देवस्थानम बोर्ड संवैधानिक बताने के लिए मनुस्मृति का लिया गया सहारा
उत्तराखंड हाईकोर्ट में देवस्थानम अधिनियम के खिलाफ दायर सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर शुक्रवार को भी सुनवाई जारी।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड हाईकोर्ट में देवस्थानम अधिनियम के खिलाफ दायर सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर शुक्रवार को भी सुनवाई जारी। इस दैरान मनुस्मृति के अध्याय सात का उल्लेख बहस के दौरान किया गया। रुलक संस्था के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने मनुस्मृति के बहाने सरकार के अधिनियम को संवैधानिक व ऐतिहासिक ठहराया।
शुक्रवार को भाजपा सांसद सुब्रहमण्यम स्वामी की उत्तराखंड सरकार के चारधाम देवस्थानम एक्ट को निरस्त करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। आज सुनवाई में रुलक संस्था के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए अपनी सुनवाई पूरी की। कोर्ट ने याचिकाकर्ता स्वामी को छह जुलाई को पुनः सुनने का मौका दिया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई।
अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता का पक्ष
- मनुस्मृति के अध्याय सात में कहा गया कि राजा खुद सर्वोपरी है, वह अपने दायित्व किसी को भी सौप सकता है । बहस के दौरान एटकिंसन का गजेटियर भी पेश किया जिसमें कहा गया है कि बद्रीनाथ मन्दिर में करप्शन है, इसलिए यहां एडमिनिस्ट्रेशन की जरूरत है ।
- मोहन मालवीय द्वारा 1933 में लोगों से की गई अपील भी कोर्ट में पेश की। जिसके अनुसार सेक्यूलर मैनेजमेंट और रिलिजयिस एक्ट 1939 में लाया गया। जिसमें सेक्यूलर मैनेजमेंट आफ टेम्पिल राज्य को दिया गया था। जबकि रिलिजियस मैनेजमेंट मंदिर पुरोहित को दिया गया है।
- संस्था ने अयोध्या मन्दिर का निर्णय भी कोर्ट में पेश किया, जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि गजेटियरों को भी साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है। जो नया एक्ट राज्य सरकार द्वारा लाया गया है इसमें कहीं भी हिन्दू धर्म की भावनाएं आहत नहीं होती।
जानिए क्या है पूरा मामला
देहरादून की रुलक संस्था ने राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर जनहित याचिका को चुनौती दी है ।स्वामी ने याचिका में कहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम व 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। संस्था ने इस जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि चारधाम यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने देवस्थान बोर्ड अधिनियम बनाकर चारधाम व अन्य मंदिरों का प्रबंध लिया गया है उससे कही भी हिदू धर्म की भावनाएं आहत नही होती। लिहाजा सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका पूरी तरह से निराधार है।
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