रानीखेत में तैयार हुआ मणिपुरी बांज का बागान, रेशम उत्पादन से मिलेगा रोजगार
भौगोलिक जलवायु पर्यावरणीय व हिमलालयी रिश्तों से बंधे मणिपुर के बहुपयोगी वृक्ष बांज (ओक) को उत्तराखंड की आबोहवा रास आ गई है। अब यही मणिपुरी बांज पर्वतीय राज्य को पर्यावरणीय सेवा देगा तो रेशम उत्पादन के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार भी बनेगा।
रानीखेत, दीप सिंह बोरा : मणिपुर के बहुपयोगी वृक्ष बांज (ओक) को उत्तराखंड की आबोहवा रास आ गई है। अब यही मणिपुरी बांज पर्वतीय राज्य को पर्यावरणीय सेवा देगा तो रेशम उत्पादन के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार भी बनेगा। खास बात कि पहाड़ में ओक तसर उत्पादन के लिए पर्यटक नगरी रानीखेत के सुदूर मंडलकोट में मणिपुरी बांज का बागान तैयार कर लिया गया है। पहले चरण में प्रयोग के तौर पर करीब 20 पेड़ों पर 'एंथरिया प्रोयेली' कीट छोड़े जाएंगे। अहम पहलू कि तसर रेशम में अग्रणी मणिपुर की भांति यहां भी महिलाओं को ही भागीदार बना आर्थिकी से जोड़ा जाएगा।
मणिपुर की ही तरह उत्तराखंड में पर्यावरण के अनुकूल कृषि आधारित रेशम कीट पालन व तसर रेशम उत्पादन की राह खुल गई है। लंबे अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष निकला है, वह वाकई स्वरोजगार के साथ ही पर्यावरणीय लिहाज से मील का पत्थर साबित होगा। जमीनी स्तर पर किए गए प्रयोग का ही नतीजा है कि ताड़ीखेत विकासखंड के मंडलकोट में मणिपुरी बांज का अपना जंगल तैयार है। अब ये पेड़ ओक तसर रेशम देने की स्थिति में आ गए हैं। मणिपुरी बांज के 20 पेड़ों पर जून जुलाई में टसर रेशम कीट 'एंथरिया प्रोयेली' छोड़े जाएंगे।
शहतूत से इतर इस कीट प्रजाति का मुख्य भोजन मणिपुरी बांज की पत्तियां ही होती हैं। यहीं से टसर सिल्क यानी रेशम बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इससे पूर्व गर्म प्रदेश में उगने वाले चंदन को जैनोली की ऊपरी पहाड़ी पर सफलता पूर्वक पेड़ तैयार करने वाले जिला समन्वयक उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र दधिची अवार्डी प्रकाश जोशी ने ओक तसर सिल्क के उत्पादन की राह निकल पड़े हैं। खाका खींच लिया है। वह कहते हैं, पूरे देश में रेशम उत्पादन से 60 फीसद महिलाएं जुड़ी हैं। उनका मकसद, पहाड़ की महिलाओं को न्यायपूर्ण आय के वितरण से जुड़े रेशम उद्योग से जोड़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है।
वन विभाग व ग्रामीणों को करेंगे प्रेरित
ओक तसर रेशम उत्पादन ही प्रकृतिप्रेमी दधिची अवार्डी प्रकाश जोशी का मकसद नहीं है। मणिपुरी बांज लगाने के लिए वह ग्रामीणों को भी प्रेरित कर रहे। जल्द ही वह वन विभाग को आग भड़काने व भूमि की मृदा को अम्लीय बनाने वाले चीड़ के बजाय मणिपुर की बांज प्रजाति को जंगलों में जगह देने के लिए पत्राचार कर रहे हैं।
पर्यावरण व जैवविविधता बचाने में सक्षम
बहुपयोगी उत्तराखंडी बांज की तुलना में तीन गुना अधिक बढ़वार वाला मणिपुरी बांज भी पर्यावरण मित्र है। जैव विविधता को बढ़ावा व जलस्रोतों को जिंदा रख इसकी जड़ें भूकटाव रोकने तथा मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाता है। उत्तराखंड से इतर पतझड़ वाले इस बांज की चौड़ी पत्तियां अतिवृष्टिï को रोक प्राकृतिक रूप से भूजल भंडार तक वर्षा पानी को पहुंचाने का काम करती हैं। ऐसे में पर्वतीय राज्य के वन क्षेत्रों में चीड़ बहुल जंगलात में इनका पौधरोपण हर लिहाज से फायदेमंद साबित होगा।
कृषि आधारित उद्योगों की सख्त जरूरत
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र के जिला समन्वयक प्रकाश जोशी ने बताया कि पहाड़ से पलायन रोकने व पर्यावरण संरक्षण के लिए कृषि आधारित उद्योगों की सख्त जरूरत है। हम राज्य सरकार व वन विभाग से इसमें सहयोग का आग्रह भी करेंगे। शुरूआत निजी संसाधनों से होगी। अभी मणिपुरी बांज में पतझड़ हो रहा है। जून जुलाई के बाद पत्तियां परिपक्व होने पर कीट छोड़ दिए जाएंगे। भीमताल में तसर सिल्क अनुसंधान संस्थान से इसी पेड़ से संबंधित रेशम कीट मंगाएंगे। रेशम उत्पादन से महिलाओं को जोड़ उन्हें मणिपुर में ओक तसर केंद्रों का भ्रमण करा प्रशिक्षण भी दिलाएंगे।