श्रद्धा का महासावन: साधना से होती है शिव की प्राप्ति, सावन से पवित्र नहीं कोई माह
सावन को साधना के लिए उत्तम माना गया है। वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिनम यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चंद्रः सर्वत्र वंदयते।
सदगुरुदेव श्री सतपाल महाराज के शिष्ट महात्मा सत्यबोधानंद कहते है कि सावन को साधना के लिए उत्तम माना गया है। वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिनम, यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चंद्रः सर्वत्र वंदयते। अर्थात ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वंदना करता हूं, जिनके आश्रित होने से टेढ़ा चंद्रमा भी सर्वत्र वंदित होता है। भोलेनाथ की पूजा के लिए सावन का अत्यधिक महत्व है। माता पार्वती ने सावन माह में ही शिव की घोर तपस्या कर उनके दर्शन किए। तब से भक्तों का विश्वास है कि सावन में शिवजी की तपस्या और ध्यान-साधना से शिव प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं।
प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने भवन पाताल लोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं। इस दौरान अपना कार्यभार महादेव को सौंप देते हैं। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द समझते हैं और उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। भोलेनाथ इसी मानव शरीर रूप में जब संसार में आए तो काया रूपी काशी में पदमाशन लगाकर बैठे और मन मंदिर में प्राण अपान की क्रिया को सम करके बाहर के दशोद्वार इंद्रिय रूपी झरोखे को बंद करके दशवां द्वार तीसरा नेत्र खोलकर महामंत्र का जाप किए और सभी मानस रूपी हंस प्राण तत्व में समाहित हो गए। शिव भक्तों को अपने अंदर ही ध्यान लगाकर शिव तत्व की प्राप्ति करनी चाहिए। आइए, श्रावण के पवित्र माह में में भगवान भोलेनाथ का भजन, ध्यान, साधना और सुमिरन करें और अपने जीवन को सफल करें।
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