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lockdown in Uttarakhand : लॉकडाउन से गौला मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट

लॉकडाउन के चलते गौला मजदूरों के साथ ही दूर दराज से आए दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Mar 2020 03:32 AM (IST)Updated: Wed, 25 Mar 2020 02:50 PM (IST)
lockdown in Uttarakhand : लॉकडाउन से गौला मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट
lockdown in Uttarakhand : लॉकडाउन से गौला मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट

लालकुआं, जेएनएन : लॉकडाउन के चलते गौला मजदूरों के साथ ही दूर दराज से आए दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। मजदूरों की हाड़तोड़ मेहनत की बदौलत नदियों से करोड़ों का राजस्व वसूलने वाला वन विकास निगम भी मुश्किल वक्त में इनकी सुध नही ले रहा है। कई वाहन स्वामी व क्षेत्र के समाजसेवी इन मजदूरों के भोजन की व्यवस्था करना चाहते हैं परंतु लॉकडाउन के चलते वह भी घरों में कैद हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड से करीब 10 हजार मजदूर गौला नदी में उपखनिज चुगान का काम करते हैं। इसके अलावा सैकड़ो दिहाड़ी मजदूर भी हल्द्वानी व लालकुआं क्षेत्र में मजदूरी करने के लिए आते हैं।

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कोरोना के चलते प्रदेश में अचानक लॉकडाउन लागू होने व यातायात के सारे संसाधन बंद होने के बाद बरेली, पीलीभीत व आसपास के अन्य निकटवर्ती जनपदों के मजदूर तो पैदल की घरों को रवाना हो गए हैं, परंतु दूरदराज के मजदूरों को यही रुकना पड़ रहा है। इधर काम न मिलने के कारण इन मजदूरों के सामने ऐसा आर्थिक संकट खड़ा हो गया कि उनके सामने दो जून की रोटी का भी संकट खड़ा हो गया है। वाहन स्वामी भुवन दुर्गापाल, विरेंद्र दानू, ललित मेहता, लवली गिल व पंकज मेहरा समेत अन्य वाहन स्वामियों व समाजसेवियों का कहना है कि वह चाहकर भी मजदूरों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इनका कहना है कि गौला नदी में हजारों मजदूर फंसे हैैं लेकिन वन निगम प्रशासन द्वारा मास्क, सेनिटाइजर के साथ ही उनके भोजन तक की व्यवस्था नहीं की जा रही है।

उनका कहना है कि मजदूरों की सहायता करने के बजाय कुछ शरारती तत्व उनके साथ मारपीट कर रहे हैं। इधर वन निगम के डीएलएम वाइके श्रीवास्तव का कहना है कि वन निगम के पास ऐसा कोई फंड नहींं है। मजदूरों की व्यवस्था वाहन स्वामी व ठेकेदारों को करनी चाहिए। इधर एसडीएम विवेक राय का कहना है श्रम विभाग में रजिस्टर्ड मजदूरों के खाते में सरकार द्वारा एक-एक हजार रुपये डाले जा रहे हैं। अन्य मजदूरों की व्यवस्था वाहन स्वामियों को खुद करनी होगी।

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