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लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कम डिमांड ज्यादा, जानि‍ए क्‍यों बढ़ गई खपत

देशभर में कोरोना काल में आक्सीजन सिलेंडर की डिमांड में तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में आक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के लिए भी आपूर्ति को सुचारु बनाए रखने की चुनौती ह

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 06:50 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 06:50 PM (IST)
लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कम डिमांड ज्यादा, जानि‍ए क्‍यों बढ़ गई खपत
लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कम डिमांड ज्यादा, जानि‍ए क्‍यों बढ़ गई खपत

काशीपुर, अभय पांडेय : देशभर में कोरोना काल में आक्सीजन सिलेंडर की डिमांड में तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में आक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के लिए भी आपूर्ति को सुचारु बनाए रखने की चुनौती है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बड़ी तादाद में विभिन्न कंपनियों को लिक्विड आक्सीजन सप्लाई करने वाला आइजीएल प्रतिदिन 50 से 60 टन आक्सीजन का उत्पादन कर रहा है। फिर भी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। अधिकारियों की मानें तो स्टील उद्योग में चाइना से आयात में आई कमी के बाद स्थानीय उद्योगों में स्टील प्रोडक्शन तेजी से बढ़ा है। इस कारण वहां भी लिक्विड आक्सीजन की खपत में इजाफा हुआ है।

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उत्तर प्रदेश के बरेली, दिल्ली और हरियाणा, पंजाब तक लिक्विड आॅक्सीजन की मांग काशीपुर की आइजीएल कंपनी को मिल रही है। मेडिकल ऑक्सीजन बनाने के लिए यहीं से लिक्विड ऑक्सीजन ली जाती है। फिर विभिन्न शहरों की अाक्सीजन सिलेंडर आपूर्ति कंपनियां अपने प्लांट पर वाष्पीकरण प्रक्रिया से लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदलकर सिलिंडरों में भरती है और इसके फिर इसकी सप्लाई अस्पतालों और विभिन्न कंपनियों को की जाती है।

कारोबारियों के अनुसार कंपनी कच्चे माल की बढ़ा सकता है क्योंकि मांग की आपूर्ति उतनी सहज नहीं है जितनी पहले होती थी। वित्त एवं प्रशासन प्रमुख आइजीएल मधुप मिश्रा ने बताया कि हमारी कंपनी में रोजाना 50 से 60 टन लिक्विड आक्सीजन का प्रोडेक्शन किया जा रहा है। यह आपूर्ति विभिन्न एजेंसियों को की जाती है। वही इन्हें आक्सीजन सिलेंडर में तब्दील कर कंपनियों को सप्लाई करते हैं।

मार्च-अप्रैल माह में डिमांड रहा था शून्य

लॉकडाउन के दौरान काशीपुर की आइजीएल कंपनी से लिक्विड आक्सीजन की डिमांड करीब 60 दिनों तक शुन्य थी, जिसके चलते कंपनी को इतने दिनों में प्रोडेक्शन भी रोकनी पड़ गई थी। अप्रैल के बाद अनलॉक शुरू होते ही स्टील कंपनियों के शुरू होने व अस्पतालों से कोविड मरीजों के भर्ती होते ही यह डिमांड तेजी से बढ़ी है। इनकी आपूर्ति लिक्विड आक्सीजन टैंक के जरिए होती है और विभिन्न कंपनियां यह सप्लाई लेकर इसे गैस में परिवर्तित करती हैं।

स्टील उद्योग और अस्पतालों में बढ़ी खपत

चीन से निर्भरता खत्म करने के प्रयास में लगे भारत सरकार के फैसले से स्टील उद्योग को नई संजीवनी मिली है, चाइना से निर्भरता कम करने से इन कंपनियों के सामने डिमांड तेजी से बढ़ा है, जिसका नतीजा है कि इन कंपनियों में लिक्विड आक्सीजन की खपत में तेजी से इजाफा हुआ है। स्टील उद्योग में इसका उपायोग ब्लास्ट फरनेस चलाने के लिए होता है, स्टील कटिंग, फूड प्रोसेसिंग, वेल्डिंग सहित इंजीनियरिंग इंडस्ट्री में होता है। देशभर में 500 फैक्ट्रियों में हवा से ऑक्सीजन निकालने का काम होता है। पूरे उत्पादन का सिर्फ़ 15 फ़ीसदी ऑक्सीजन ही अस्पतालों में इस्तेमाल किया जाता है बाकी ऑक्सीजन का इस्तेमाल स्टील और ऑटोमोबाइल उद्योगों में ब्लास्ट फर्नेस और वेल्डिंग के काम में किया जाता है। हाल में अस्पतालों से डिमांड दो गुना से ज्यादा ज्यादा हो गई है जिसके लिए व्यापक प्लानिंग की जरूरत महसूस की जा रही है।

एजेसियों पर निगरानी जरूरी

विभिन्न एजेंसियों को लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई होती है। अब कंपनियों को प्राथमिकता के तौर पर अस्पतालों को देना होगा। कई राज्यो में देखने को मिला है कि उद्योगों का कोटा कम कर अस्पतालों की अापूर्ति बहाल करने का काम किया गया है। चिकित्सा क्षेत्र के जानकारों की माने तो लिक्विड आक्सीजन लेने वाली कंपनियों की सप्लाई पर निगरानी बढ़ाने की जरूरत है।


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