Coronavirus Lockdown : रेलवे की पटरियों के किनारे रहने वालों के लिए ट्रेन की छुक-छुक है लोरी
सभी को शांति का माहौल अच्छा लगता है। सोने के लिए भी लोग एकांत ढूंढते हैं। लेकिन ट्रेन की पटरियों के किनारे अपना जीवन व्यतीत करने वालों की कहानी बिल्कुल इसके उलट है।
रुद्रपुर, जेएनएन : सभी को शांति का माहौल अच्छा लगता है। सोने के लिए भी लोग एकांत ढूंढते हैं। अगर न मिले तो पूरी रात जगने में ही कट जाती है, लेकिन ट्रेन की पटरियों के किनारे अपना जीवन व्यतीत करने वालों की कहानी बिल्कुल इसके उलट है। अगर उनके कानों तक ट्रेन की आवाज न पहुंचे तो उन्हें नींद ही नहीं आती है। लगता है उनके लिए यह ट्रेन की आवाज मां की लोरी के समान हो गई है। करीब डेढ़ माह से ट्रेनों के पहिए जाम होने से मानों उनकी जिंदगी ही रूक गई है। अब तो उन्हें न रातों को नींद आती है और न ही दिन में सुकुन मिलता है।
ट्रेनों के चलने से मिलता है रोजगार
सिटी रेलवे स्टेशन के पास सोढ़ी कॉलोनी, चीमा कॉलोनी, मॉडल कॉलोनी स्थित है। जहां करीब 10 हजार लोग निवास करते हैं। ट्रेनें चलती थीं तो उन्हें रोटी का संकट नहीं था। ट्रेनें आती रहती थीं तो रोजगार के साथ ही सबकुछ सामान्य लगता था। मानो जिंदगी की गाड़ी सही पटरी पर चल रही है। ऐेसे में ट्रेनों का संचालन बंद होने से खालीपन सा आ गया है। जिसकी आवाज और चहल पहल को लोग याद कर रहे हैं। ट्रेन की आवाज से लोगों का लगाव इतना है कि उन्हें न तो सोते वक्त उससे परेशानी होती है और न ही उसकी आवाज से नफरत। रोजाना ट्रेन के हॉर्न सुनकर आस-पास के रोजगार के लिए निकल पड़ते थे।
अब सामान्य होने लगी हैं चीजें
अशोक बंसल, सोढी कॉलोनी ने बताया कि ट्रेनों के हॉर्न की आवाज न आने से सूनापन लग रहा है। रात में आने-जाने वाली ट्रेनों का पता चलता है, लेकिन नींद खराब नहीं होती थी। ट्रेनें जब अचानक बंद हुईं तो रात में नींद नहीं आती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे चीजें सामान्य होने लगी है। इस समय रोजी-रोटी की समस्या हो रही है। नेहा, सोढ़ी कालोनी ने कहा कि रुद्रपुर ट्रेनों के चलने से आमदनी होती थी, लेकिन अब सबकुछ बदला सा है। सिर्फ आय पर ही नहीं, बल्कि रहन-सहन पर भी प्रभाव पड़ा है। डेढ़ माह से ट्रेनों का संचालन बंद हो गया है, इससे अब नींद आने लगी है। पहले में थोड़ी दिक्कत हो रही थी।
रोजी रोटी का हो गया है संकट
लगन साहनी, डिबडिबा ने बताया कि लॉकडाउन ने न सिर्फ मुसीबत खड़ी कर दी है, बल्कि रोजी रोटी भी नहीं मिल पा रही। ट्रेनें चलती थी तो ई-रिक्शा से कमाई भी हो जाती थी, लेकिन अब खाने को लाले हैं। ट्रेन चले तो कोई बात बने। कुछ लोगों को भले ही आवाज से परेशानी हो, लेकिन हमें तो यह सुकून देती है। इसके बिना सब कुछ अधूरा लग रहा है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
डॉ. कमला डी भारद्वाज, प्रवक्ता मनोविज्ञन, एसबीएस डिग्री कॉलेज, रुद्रपुर का कहना है कि वैसे तो इस तरह के स्वभाव का कोई नाम नहीं है, लेकिन डिपेंडेंट सर्वाइवल कहा जा सकता है। किसी चीज की आदत लगने के बाद वर्तमान हालात में ढलने में थोड़ा वक्त लगता है। शोरगुल इनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। ऐसे में उन्हें परेशानी होना स्वाभाविक है। माहौल के मुताबिक शांति न मिलने से चिड़चिड़ापन के शिकार भी हो सकते हैं।
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