उत्तराखंड की चार विधानसभाओं में पिछली बार हुआ था 50 फीसद से कम मतदान, इस बार नेताओं के साथ अफसरों की भी परीक्षा
चुनावी संग्राम में एक-दूसरे को पछाडऩे के लिए अलग-अलग दलों के नेताओं की मेहनत जारी है। दावेदारों को दो-दो परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। पहले टिकट हासिल कर पार्टी का विश्वास जीतना होगा। फिर मतदान वाले दिन जनता का।
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी : चुनावी संग्राम में एक-दूसरे को पछाडऩे के लिए अलग-अलग दलों के नेताओं की मेहनत जारी है। दावेदारों को दो-दो परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। पहले टिकट हासिल कर पार्टी का विश्वास जीतना होगा। फिर मतदान वाले दिन जनता का। उत्तराखंड में पिछले चुनाव के मतदान प्रतिशत पर नजर दौडाए तो पहाड़ की चार सीटों पर नेताओं के साथ अफसरों को भी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां पचास प्रतिशत मतदान भी नहीं हुआ था। सल्ट उपचुनाव के दौरान तो मतदान को लेकर वोटरों की दिलचस्पी और घट गई थी। जिस वजह से वोटिंग प्रतिशत और लुढ़क गया। ऐसे में आम लोगों को बूथ तक लाने के लिए इन चारों जगहों पर प्रभावी जागरूकता अभियान की जरूरत पड़ेगी।
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान हरिद्वार की लक्सर विधानसभा सीट मतदान को लेकर पूरे प्रदेश में अव्वल रही थी। यहां 81.87 प्रतिशत वोट पड़े थे। जबकि हरिद्वार ग्रामीण 81.69 प्रतिशत के साथ, पिरान कलियर 81.43 तीसरे और सितारगंज 81.21 प्रतिशत के साथ चौथे नंबर पर रही। वहीं, चुनाव को लेकर सबसे कम दिलचस्पी सल्ट, चौबट्टाखाल, लैंसडौन और घनसाली सीट पर देखने को मिली। सल्ट में 45.74 प्रतिशत, चौबट्टाखाल में 46.88 , लैंसडौन में 47.95 और घनसाली में 48.79 प्रतिशत लोग ही घरों से मतदान स्थल तक पहुंचे। वहीं, विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद इस अप्रैल में सल्ट सीट पर फिर से चुनाव हुआ। लेकिन तब मतदान प्रतिशत 45.74 प्रतिशत से कम होकर 43.28 प्रतिशत पहुंच गया। ऐसे में निर्वाचन से लेकर स्थानीय अफसरों को कम मतदान वाली सीटों पर कड़ी मेहनत की जरूरत है।