एनएच के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि के प्रतिकर निर्धारण से अर्द्धनगरीय का पेच हटा
एनएच के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि के प्रतिकर निर्धारण से अर्द्धनगरीय का पेच हट गया है। अब प्रतिकर निर्धारण नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर होगा। शासनादेश भी जारी हो गया है।
रुद्रपुर, जेएनएन : एनएच के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि के प्रतिकर निर्धारण से अर्द्धनगरीय का पेच हट गया है। अब प्रतिकर निर्धारण नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर होगा। इसका शासनादेश भी जारी हो गया है। नई व्यवस्था से लोगों को उचित मुआवजा मिल सकेगा और एनएच निर्माण में तेजी आएगी, साथ ही आर्बिट्रेशन में लंबित उन मामलों की सुनवाई भी हो सकेगी जो दो साल से जिलाधिकारी कोर्ट में लंबित हैं।
भारत सरकार ने हाईवे निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण में भूमि की दो श्रेणियां मानकर बाजार भाव तय किया था। शहरी क्षेत्रों में दोगुना यानी एक गुणांक तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना यानी दो गुणांक तय करने का प्रावधान था। परंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार में जिला प्रशासन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों को अद्धर्नगरीय की श्रेणी मानकर उन्हें चार गुना के स्थान पर दोगुना मुआवजा देने का निर्णय लिया था। इसके खिलाफ वाद भी दायर किया गया था। जिन स्थानों पर यह विवाद था वहां एनएच निर्माण कार्य रोक दिया गया था। उचित मुआवजा न मिलने से किसान आंदोलित थे। ऐसे तमाम मामले आर्बिट्रेशन में लंबित हैं। अब अद्धर्नगरीय का पेंच हट गया है। प्रभारी सचिव सुशील कुमार ने इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिया है। राज्य के समस्त जिलाधिकारियों को आदेश दिए हैं कि तत्काल अद्धर्नगरीय क्षेत्रों में अधिग्रहीत की जा रही भूमि के प्रतिकर को निर्धारण किया जाए।
किच्छा विधायक राजेश शुक्ला ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि अब निर्माण में आ रही बाधा दूर होगी और कार्य में तेजी आएगी। शुक्ला ने कहा कि आर्बिट्रेटर के रूप में डीएम को इन मुकदमों का निस्तारण करना था परंतु स्पष्ट शासनादेश न होने से पिछले दो वर्षों से एक केस की भी सुनवाई नहीं हुई। जब उन्होंने इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को अवगत कराया तो आर्बिट्रेटर के रूप में पहले सेवानिवृत्त आईएएस आरसी पाठक और उनके इस्तीफा देने के बाद सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एसएस रावत को नियुक्त किया परंतु शासनादेश स्पष्ट न होने से वह भी कोई फैसला न ले सके। इस संदर्भ में वह स्वयं कई बार मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव तथा राजस्व अधिकारियों से मिले और अंतत: मेहनत रंग लाई। शासन ने संविधान के अनुच्छेद 243 क्यू के अंतर्गत गठित नगर पंचायतों, नगर पालिका परिषदों, एवं नगर निगमों की सीमा के क्षेत्रों को शहरी तथा अवशेष क्षेत्र संविधान के अध्याय नौ के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र माना।
उत्तर प्रदेश से मिली मदद
अद्धर्नगरीय के पेंच को यूपी को मदर स्टेट मानते हुए सुलझाया गया। वहां के शासनादेशों को आधार बनाया गया। वहां अर्धनगरीय कोई क्षेत्र नहीं माना गया तथा क्षेत्रों की अवधारणा केवल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर की जाती है। इसी का संज्ञान उत्तराखंड ने भी लिया।