पुत्रदा एकादशी आज: श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था व्रत का महत्व, आप भी जानें
पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाई जाने वाली पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी रविवार को है। पुराणों में इसका महत्व बताया गया है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पुत्रदा एकादशी का महत्व बताया था। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाई जाने वाली पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी रविवार को है। पुराणों में पुत्रदा एकादशी का महत्व बताया गया है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पुत्रदा एकादशी का महत्व बताया था। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद साफ जगह पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। शंख में पानी लेकर प्रतिमा का अभिषेक करने का विधान है। भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाया जाता है। चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि अर्पित करें।
पीले वस्त्र भेंट करें। दीपक जलाएं। मौसमी फलों के साथ आंवला, लौंग, नींबू, सुपारी चढ़ाएं। गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। रात में मूर्ति के पास जागरण करना चाहिए। भगवान के भजन गाएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद व्रत का पारायण करने का विधान है।
पौराणिक कथा में मिलता है वर्णन
डा. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक पूर्व के समय में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। चम्पा उनकी रानी थी। दोनों की कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा सुकेतुमान वन में गए थे। वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने उन सभी मुनियों की वंदना की। प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा। मुनियों ने पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखने की सलाह दी। राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। बाद में रानी चम्पा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा न्याय पूर्वक शासन किया। जब से एकादशी व्रत की परंपरा चली आ रही है।