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International Day of Older Persons बुजुर्गों ने बेहतर भविष्‍य के लिए उम्र को दी मात, जाने इनकी कहानी

विश्‍व वृद्ध दिवस पर कुछ जानिए ऐसे मेहनतशों और सामज काे आइया दिखाने वालों की कहानी जो समाज और सिस्‍टम काे आइना दिखा रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 10:54 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 08:40 PM (IST)
International Day of Older Persons बुजुर्गों ने बेहतर भविष्‍य के लिए उम्र को दी मात, जाने इनकी कहानी
International Day of Older Persons बुजुर्गों ने बेहतर भविष्‍य के लिए उम्र को दी मात, जाने इनकी कहानी

शहबाज अहमद हल्द्वानी : 'साहब ! काम नहीं करेंगे तो बच्चे खाली पेट सोएंगे...। क्या करें? गरीबी ने उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर भी काम करने को मजबूर कर दिया है...।' यह दर्द हल्द्वानी के तिकोनिया निवासी रमेश जोशी का। 75 वर्ष की उम्र में भी वह बच्चों की परवरिश के लिए ठेला खींचते हैं। तिकोनिया चौराहे पर सुबह दस से शाम छह बजे तक फल का व्यापार करते हैं। रोजाना 100 से 150 रुपये की आमदनी हो जाती है, जिससे परिवार चलता है। वहीं घर में बीमार पत्नी की दवाइयों के इंतजाम के साथ ही छोटे-छोटे तीन बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी है। लड़खड़ाते हुए बोले, उम्र ढलने से रात को दिखाई नहीं देता है, इसलिए सूरज ढलने से पहले ही घर को निकल जाते हैं। जानिए विश्‍व वृद्ध दिवस पर कुछ ऐसे ही मेहनतशों और सामज काे आइया दिखाने वालों की कहानी। 

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40 साल से सिल रहे कपड़े

सिंधी चौराहे पर कपड़े सिलने वाले गिरधारी लाल की मेहनत के आगे भी बुजुर्गियत दम तोड़ती दिखती है। वह बताते हैं कि 40 साल पहले सिलाई करने के लिए अल्मोड़ा से हल्द्वानी आया था। तबसे यहीं का हो गया। 40 सालों से कपड़े ही सिलता आया हूं। अब 72 वर्ष की उम्र में काम करने की इच्छा नहीं होती, मगर खुद की देखभाल के लिए काम करना पड़ता है। दो बेटियां हैं, जिनकी पांच साल पहले ही जैसे-तैसे शादी कर दी। दो साल पहले पत्नी की मृत्यु के बाद अब अकेले रहता हूं। रोजाना 30 से 50 रुपये की आमदनी से गुजारा करना पड़ता है। इसके अलावा आजकल फैशन के इस आधुनिक दौर ने होने वाले आमदनी पर असर पड़ा है। अब तो सिर्फ कपड़ों के रिपेयर का काम ही बचा है।

मौसम का हर मिजाज झेल चुके हैं डाल चंद

गांधी नगर में जूते-चप्पलों की मरम्मत कर रहे डाल चंद कहते हैं कि 59 वर्ष की उम्र में मौसम के हर मिजाज को झेलने का साहस और खुद की जी-तोड़ मेहनत से परिवार का चरखा चलता है। लोगों के जूते-चप्पल सिलकर 100 से 250 रुपये की कमाई करता हूं, जिससे घर का खर्चा चलता है। पांच बच्चों की अच्छी परवरिश की, ताकि कम से कम से वे गे्रजुएट हो सकें। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। दो बेटियों की शादी करके एक बड़ी जिम्मेदारी से निजात मिली थी, जब आराम करने का समय आया तो दोनों बच्चों ने जिंदगी का साथ छोड़ दिया। परिवार का गुजारा करने के लिए अब भी काम को मुस्तकिल हूं। 

दूसरों के चूल्हे ठीककर चलता है घर का चूल्हा

दूसरों के चूल्हे को ठीक कर अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए 65 वर्ष में भी काम करने को मजबूर हैं इंदिरानगर के मिर्जा इबरार। वह कहते हैं कि कभी दिल नहीं करता काम करने को, लेकिन घर की परेशानी और बच्चों का भविष्य बनाने के लिए कड़ी धूप में बैठकर कूकर व गैस चूल्हे की रिपेयरिंग करता हूं। घर में तीन बेटियां है, जिसमें एक की शादी कर दी है, बाकि दो बेटियों की पढ़ाई चल रही है। 45 वर्ष से इसी काम से घर का पोषण हो रहा है। बच्चों की ख्वाहिश और उनके भविष्य को संवारने के लिए इस उम्र में भी मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटता हूं। 

बेसहारा को सहारा को सहारा दे रहे ये लोग

समाज में कुछ लोग बेसहारा बुजुर्गों को सहारा देकर जिम्मेदारों को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं। जहां सरकार हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद एक साल में एक भी वृद्धाश्रम की नीव नहीं रख सकी, वहीं हल्द्वानी समेत कई बड़े शहरों में दर-दर की ठोकरें खा रहे बुजुर्गों को आसरा देने का काम कुछ लोगों ने उठाया है। हाई कोर्ट ने जून 2018 में प्रदेश सरकार को तीन माह के अंदर सभी जिलों में वृद्धाश्रम खोलने के निर्देश दिए थे। सभी आश्रमों में सुविधाओं के साथ बेहतर चिकित्सा व्यवस्था पर भी जोर दिया था। एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी प्रदेश सरकार कुछ नहीं कर पाई है। 

आनंद आश्रम में मिल रहा आसरा  

समाज में बिरले लोग अपने कार्यों से इस समाज और देश के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। ऐसी ही एक समाज सेविका हैं हल्द्वानी की कनक चंद। कनक पिछले तीन साल से शहर के बरेली रोड स्थित दुर्गा नगर में वृद्धाश्रम का संचलन कर दर-दर की ठोकरें खा रहे बुजुर्गों को सहारा दे रही हैं। कनक द्वारा चलाए जा रहे वृद्धाश्रम में वर्तमान में दूरदराज से भटके व अपनों के द्वारा बेसहारा किए गए 12 बुजुर्ग इस प्रेम व आनंद के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

आश्रय सेवा समिति ने बढ़ाए हाथ

जिस परिवार के लिए इंसान जीवन भर काम करता है, उम्र के आखिरी पड़ाव में उसी परिवार द्वारा उसे उपेक्षित किया जाता है। कई बार तो हालात इतने खराब हो जाते हैं कि उन्हें परिवार से अलग कर दिया जाता है। इस उम्र में वे काम नहीं कर सकते। भीख मांगकर पेट भरने की नौबत आ जाती है। ऐसे ही बेसहारा बुजुर्गों के लिए शहर के प्रकाश डिमरी आश्रय सेवा समिति के नाम से वृद्धाश्रम का संचालन करते है। प्रकाश द्वारा चलाए जा रहे वृद्धाश्रम में कुल 13 बुजुर्ग अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। 

जून 2018 में वृद्ध आश्रम के लिए दायर की गई याचिका

हल्द्वानी की सीनियर सिटीजन वेलफेयर सोसायटी ने हाईकोर्ट में जून 2018 में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि चम्पावत व चमोली जिले में एक-एक सरकारी वृद्धाश्रम हैं। हरिद्वार और देहरादून में मौजूद वृद्धाश्रम गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से संचालित किए जा रहे हैं। अन्य जिलों में कोई भी वृद्धाश्रम नहीं हैं। ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह प्रदेश सरकार का दायित्व है कि प्रत्येक जिले में वृद्ध आश्रम खोले जाए। याचिका में केवल नाम के लिए आश्रम न खोले जाएं।


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