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मुश्किलों से लड़कर आत्मनिर्भर बनने की ज‍िद ने कोरोना काल में भी हारने नहीं दिया, पढ़ें खीम सिंह की कहानी

अल्मोड़ा निवासी खीम सिंह नगरकोटी किसी मिसाल से कम नहीं। 2010 में वह गांव छोड़ नौकरी के लिए दिल्ली चला गया। फि‍र‍ आत्‍मन‍िर्भर बनने के ल‍िए सबकुछ छोड़ दि‍या।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 11:08 AM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 11:08 AM (IST)
मुश्किलों से लड़कर आत्मनिर्भर बनने की ज‍िद ने कोरोना काल में भी हारने नहीं दिया, पढ़ें खीम सिंह की कहानी
मुश्किलों से लड़कर आत्मनिर्भर बनने की ज‍िद ने कोरोना काल में भी हारने नहीं दिया, पढ़ें खीम सिंह की कहानी

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : हिमालयी राज्य की चुनौतियां अनेक हैं। एक तरफ 1702 गांव पलायन से बेजार हैं। तो कुछ जीवट महानगरों की अच्छीखासी नौकरी छोड़कर गांव लौट रहे हैं, बल्कि अपने मेहनत से बंजर जमीन को संवार कर स्वरोजगार की पटकथा भी लिख रहे हैं। बसौली गांव का नौजवान बानगी भर है जिसने उपेक्षित पड़ी जमीन को टूरिस्ट स्पॉट की शक्ल दे डाली। हालांकि वैश्विक महासंकट के कारण पर्यटन गतिविधियां थम सी गई हैं। मगर युवा जोश बरकरार है और ऊसर जमीन पर बागवानी विकास के सपने बुन रहा।

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अल्मोड़ा जिले में बसौली गांव (ताकुला ब्लॉक) निवासी खीम सिंह नगरकोटी किसी मिसाल से कम नहीं। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर वह वर्ष 2010 में वह गांव छोड़ नौकरी के लिए दिल्ली चला गया। एक सीएम फर्म में ऑडिटर की नौकरी की। वर्ष 2014 में विवाह के बाद खीम सिंह ने औद्योगिक आस्थान पंतनगर (सिडकुल) आया। लासा कंसल्टेंसी में एक्साइज व सर्विस टैक्स ऑडिटर की नौकरी शुरू की। अच्छे वेतन के बावजूद वह अगस्त 2017 में गांव लौट आया। यह फैसला जोखिमभरा था। वजह अभावों के पहाड़ में आजीविका का साधन जुटाना आसान नहीं।

सात नाली बंजर भूमि पर होमस्टे का स्टार्टअप

संघर्षों के बीच खीम सिंह ने कुछ दिन बसौली कस्बे के एक बड़े दुकानदार के यहां ऑडिट का काम किया। बीते वर्ष अगस्त में वर्षों से उपेक्षित पड़ी सात नाली बंजर जमीन पर होमस्टे के लिए मडहाउस बनाने का सपना बुना। हल न लगने से पत्थर बन चुकी जमीन पर मजदूरों ने फावड़ा चलाने से हाथ खींचे तो जुनूनी खीम सिंह खुद ही जुट गया। दूरदराज से बांस के लट्ठों का बंदोबस्त किया। लोन के लिए तीन चार माह तक सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटे। आखिर में सफलता मिली तो खीम सिंह ने दूने उत्साह के साथ अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने की ठान ली।

...और ऊसर जमीन को बना दिया सुंदर टूरिस्ट स्पॉट

बसौली गांव की जिस पहाड़ीनुमा भूमि पर केवल घास उगा करती थी। खीम सिंह ने दिन रात मेहनत कर उसे टूरिस्ट स्पॉट की शक्ल दे डाली। उसने लाल मिट्टी की लिपाई कर खालिस पर्वतीय शैली में चार मडहाउस खड़े किए। एक इको फ्रेंडली रेस्तरां, स्टाफ रूम व रसोई बनाई। कुछ घासफूंस की झोपडिय़ां तैयार की। खाली खेतों में दूब उगा तेजपत्ती, लेमनग्रास, एलोवेरा, तुलसी आदि औषधीय पौधों के साथ सुंदर सी फुलवाड़ी भी बनाई। चारों ओर से पौधों से घेरबाड़ कर बिनसर घाटी में होमस्टे के लिए तैयार कर डाला टूरस्टि स्पॉट। यहां तक पहुंचने के लिए इस जुनूनी युवा ने खड़ी पहाड़ी पर फावड़ा गैंती चला मुख्य सड़क करीब 300 मीटर लंबा पैदल मार्ग तैयार किया। उसके हौसले को देख गांव वालों ने रास्ते के लिए अपनी जमीन भी दी।

सैलानियों की आमद ने बढ़ाया उत्साह

शहरी भीड़भाड़ व शोर से दूर सुकून के पल बिताने वालों के लिए खीम सिंह के बसौली गांव का यह टूरिस्ट स्पॉट सैलानियों को खूब भा रहा। इस वर्ष कोरोना की दस्तक से पहले पर्यटकों को बिनसर नदी, कजीरोखाली के मिश्रित वन क्षेत्र की सैर करा बर्ड वॉचिंग कराई। मडहाउस के पास खाली पड़ी जमीन को ध्यान योग का केंद्र बनाया। रात को कैंपफायर विदेशी सैलानियों को मुग्ध करने लगी।

अब महासंकट में मशरूम उत्पादन में लगाया मन

अबकी सीजन फीका रहा। मगर खीम सिंह का हौसला बरकरार है। उसे उम्मीद है कोरोनाकाल खत्म होगा तो होमस्टे परवान चढ़ेगा। फिलहाल वह पुराने जर्जर मकान को मिट्टी से लीप मशरूम उत्पादन में जुटा है। करीब डेढ़ सौ किलो फसल ले भी चुका। बसौली, कसारदेवी व अल्मोड़ा बाजार में वह दो से ढाई सौ रुपये प्रति किलो की दर से मशरूम बेच आर्थिकी मजबूत कर रहा।


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