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कुल देवी जिया रानी की पूजा के लिए रानीबाग में आज जुटेंगे कत्यूरी वंशज, आधी रात में लगेगी जागर

ढोल व दमाऊं की गूंज के साथ जिया रानी के यश और शौर्य गाथा का गुणगान। अवतरित देव डांगरों के माध्यम से लोक कल्याण की कामना करने के उद्देश्य से गढ़वाल व कुमाऊं के विभिन्न हिस्सों से कत्यूरी वंशज बुधवार रात रानीबाग चित्रेश्वर धाम में जुटेंगे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 09:27 AM (IST)Updated: Wed, 13 Jan 2021 09:42 AM (IST)
कुल देवी जिया रानी की पूजा के लिए रानीबाग में आज जुटेंगे कत्यूरी वंशज, आधी रात में लगेगी जागर
कुल देवी जिया रानी की पूजा के लिए रानीबाग में आज जुटेंगे कत्यूरी वंशज, आधी रात में लगेगी जागर

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : ढोल व दमाऊं की गूंज के साथ जिया रानी के यश और शौर्य गाथा का गुणगान। अवतरित देव डांगरों के माध्यम से लोक कल्याण की कामना करने के उद्देश्य से गढ़वाल व कुमाऊं के विभिन्न हिस्सों से कत्यूरी वंशज बुधवार रात रानीबाग चित्रेश्वर धाम में जुटेंगे। अपनी कुलदेवी जिया रानी की गाथा का जागर के माध्यम से गुणगान किया जाएगा। हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले कत्यूरी वंशज रानीबाग पहुंचते हैं। रात में जागर के माध्यम से जिया रानी का गुणगान होता है और मकर संक्रांति को गार्गी नदी में स्नान करने के बाद मंगल की कामना के साथ अपने घरों को लौटते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चल रही है।

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विशेष पोशाक में रहते हैं वंशज

कुमाऊं व गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों से जत्थे के रूप में आने वाले कत्यूरी वंशज बाजे के साथ पहुंचते हैं। पुरुष सफेद कुर्ता, धोती और सिर पर सफेद पगड़ी पहने रहते हैं। हुड़का, ढोल, दमाऊं व थाली के आवाज पर जिया रानी की महिमा आधारित गाथा का बखान किया जाता है। पूरी रात आग की धूनी जली रहती है।

कत्यूरी वंश की महारानी का इतिहास

कुमाऊं में चंद राजवंश से पहले कत्यूरी शासन था। कत्यूरी शाखा के धारनगरी परमारवंशी कुंवर यशराज बंगारी बताते हैं कि जिया रानी के बचपन का नाम मौला देवी था। फल्दकोट गढ़ राजघराने की पुत्री मौला देवी कत्यूरी राजा प्रीतम देव यानी पृथ्वी पाल की दूसरी रानी थीं। जिया रानी से पुत्र धामदेव का जन्म हुआ, जो न्यायकारी देवता बने। राजा धामदेव के संरक्षण में जियारानी नौ लाख कत्यूरियों की राजमाता बनी थीं। धामदेव के साथ वह हल्द्वानी स्थिति चित्रशिला चली आईं। करीब 12 वर्ष चित्रशिला में रहने हुए उन्होंने बाग लगवाया, जो बाद में रानीबाग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

गुफा से जुड़ी है लोगों की आस्था

किवदंती के मुताबिक एक बार जिया रानी ने गार्गी नदी में स्नान करने के बाद अपना घाघरा सुखाने डाल दिया था। तभी किसी दीवान ने अपनी सेना की मदद से रानी को घर लिया। आत्मरक्षा में रानी पास की गुफा में चली गईं। रानीबाग की जिया रानी गुफा में आज भी दो छिद्र देखे जा सकते हैं।

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