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कुमाऊं को गढ़वाल से जोड़ने वाला कंडी मार्ग 21 साल बाद भी नहीं बद सकी, बनने पर आधी हो जाएगी दूरी

उत्‍तराखंड राज्‍य गनने के 21 साल बाद भी कुमाऊं को गढ़वाल से जोड़ने वाला कंडी मार्ग नहीं बन पाया है। हर बार नेताओं ने कंडी मार्ग बनाने के वादे तो किए लेकिन कभी इसे बनाने में अपनी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 09:13 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 09:13 AM (IST)
कुमाऊं को गढ़वाल से जोड़ने वाला कंडी मार्ग 21 साल बाद भी नहीं बद सकी, बनने पर आधी हो जाएगी दूरी
कुमाऊं को गढ़वाल से जोड़ने वाली ये सड़क 21 साल बाद भी नहीं बद सकी

त्रिलोक रावत, रामनगर : उत्‍तराखंड राज्‍य गनने के 21 साल बाद भी कुमाऊं को गढ़वाल से जोड़ने वाला कंडी मार्ग नहीं बन पाया है। हर बार नेताओं ने कंडी मार्ग बनाने के वादे तो किए, लेकिन कभी इसे बनाने में अपनी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। आलम यह है कि इस मार्ग पर रामनगर से कोटद्वार तक जो बस सेवा संचालित थी। वह भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पिछले साल से बंद है।

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कुमाऊं के नैनीताल जिले के रामनगर को गढ़वाल के कोटद्वार से जोडऩे वाला कंडी मार्ग का करीब 42 किलोमीटर का हिस्सा कार्बेट टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से होकर गुजरता है। इसे आवाजाही के लिए खोलने के मकसद से वर्ष 1999 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सड़क बनाने की अनुमति दी थी। राच्य गठन के बाद उत्तराखंड सरकार ने 42 किलोमीटर के मार्ग को ऑल वेदर रोड में बदलने का प्रस्ताव रखा तो कई एनजीओ सड़क बनाने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।

एनजीओ ने बाघों की मौजूदगी होने व सड़क निर्माण से बाघों के संरक्षण पर सवाल उठाया। वर्ष 2017 में सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कंडी मार्ग बनाने का एलान किया। इस बीच सर्वे भी हुआ। पौड़ी संसदीय सीट से सांसद व पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने भी इसे मुद्दे को लोकसभा में उठाया। राच्य सभा सदस्य अनिल बलूनी व वन मंत्री हरक सिंह रावत ने भी कंडी मार्ग निर्माण को अपनी प्राथमिकता बताया। पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने भी इसे बनाने की बात कही थी। लेकिन कोर्ट में उचित पैरवी न होने व इच्छा शक्ति के अभाव में कंडी मार्ग नहीं बन पाया है।

ये होते कंडी मार्ग के फायदे

कंडी मार्ग बनने से रामनगर-कोटद्वार की दूरी कम हो जाएगी। वर्तमान में उप्र से होकर गुजरने से कोटद्वार की दूरी 162 किलोमीटर है। जबकि इस मार्ग के बनने से यह दूरी महज 88 किलोमीटर होगी। साथ ही कोटद्वार-हरिद्वार का रामनगर के बीच व्यापार के साथ पर्यटन गतिविधि भी बढ़ेगी। इसी मार्ग से देहरादून जाने में भी कम समय लगेगा।

कोटद्वार जाने वाला मार्ग दो सौ साल पुराना

कंडी मार्ग निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष पीसी जोशी बताते हैं कि टनकपुर से जौलासाल -चोरगलिया-हल्द्वानी-रामनगर होते हुए कोटद्वार तक जाने वाला मार्ग दो सौ साल पुराना है। इस मार्ग को बनाने के लिए वे वर्ष 2005 में सड़क बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए। 2010 में हाईकोर्ट गए। कोर्ट ने इस मार्ग को बनाने का आदेश दिया। वर्ष 2014 में फिर हाईकोर्ट गया। मेरे खिलाफ 25 एनजीओ ने रिट दायर कर दी। कोर्ट ने मेरी रिट वापस करवा दी। अब फिर से एनजीओ से जुड़े एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में रिट लगाई है। उनकी ओर से भी सुप्रीम कोर्ट में रिट लगाई गई है।

यह है कंडी मार्ग की स्थिति

रामनगर-लालढांग(18 किलोमीटर पक्का)

लालढांग से कालागढ़-(20 किलोमीटर कच्चा)-कालागढ़ क्षेत्र (तीन किलोमीटर पक्का)-कालागढ़ से पाखरो (22 किलोमीटर कच्चा)

पाखरो से कोटद्वार (20 किलोमीटर पक्का)

कोटद्वार से चिलरखाल (13 किलोमीटर पक्का)

चिलरखाल से लालढांग तक (13 किलोमीटर कच्चा)


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