Move to Jagran APP

हजारों सालों से अल्मोड़ा में खड़ा है हिन्दू आस्था का प्रतीक कल्पतरु वृक्ष, पत्‍ति‍यों को समझा जाता है प्रसाद

हजारों सालों से शिक्षा व सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पर कल्पवृक्ष का आशीष बना हुआ है। हिन्दू आस्था से जुड़े इस वृक्षि को परिजात के नाम से भी जाना जाता है। वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 08:39 AM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 08:39 AM (IST)
हजारों सालों से अल्मोड़ा में खड़ा है हिन्दू आस्था का प्रतीक कल्पतरु वृक्ष, पत्‍ति‍यों को समझा जाता है प्रसाद
जारों सालों से शिक्षा व सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पर 'कल्पवृक्ष' का आशीष बना हुआ है।

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : हजारों सालों से शिक्षा व सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पर 'कल्पवृक्ष' का आशीष बना हुआ है। हिन्दू आस्था से जुड़े इस वृक्षि को परिजात के नाम से भी जाना जाता है। वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृ‍क्ष की भी उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना 'सुरकानन वन' (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पतरु है।

loksabha election banner

मान्यता है कि देवताओं की मुखिया बनने पर पार्वती की अवतार मां उल्का देवी ने काषाय पर्वत के इस दिव्य स्थल पर कल्पवृक्ष को लगाया जो आज भी सदाबहार है। मान्यता है कि स्वर्ग का यह वृक्ष हजारों वर्ष पुराना है। विशेषज्ञ इसके सही उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग कराने की बात कहते हैं। उत्तर भारत में दूसरा कल्पवृक्ष प्रयागराज स्थित झूसी में समुद्रकूप के पास है, जिसे भगवान विष्णु ने लगाया था। नगर से कुछ दूर छानागांव में मां उल्का देवी के सिद्धस्थल के निचले भूभाग में कल्पवृक्ष आज भी देवत्व की अनुभूति कराता है। लोकमत के अनुसार यह दुर्लभ व दिव्य देववृक्ष करीब दो हजार वर्ष पुराना है। मंदिर के महंत कैलाशगिरि जी महाराज की मानें तो सतयुग में माता पार्वती की अवतार मां उल्का देवी देवताओं की मुखिया बनाई गईं। तब इंद्रदेव ने स्वर्ग का यह वृक्ष उन्हें भेंट किया।

बुजुर्गों ने जैसा देखा सुना, आज भी वैसा ही

भारतीय सेना से अवकाश प्राप्त 85 वर्षीय कैप्टन दीवान सिंह अधिकारी के अनुसार बाब दादाओं से जैसा सुना, कल्पवृक्ष आज भी वैसा ही दिखता है। वन विभाग में डिप्टी रेंजर नितीश तिवारी कहते हैं कल्पवृक्ष कई हजार वर्ष पुराना है। ऋषि मुनियों की इस तपोस्थली में आज भी साधुसंत ध्यान योग करते हैं।

पर्यावरण मित्र भी है कल्पवृक्ष

कहते हैं कल्पतरु मानवमन को जल्द समझ लेता है। इसकी छांव में आत्मिक शांति मिलती है। सदाबहार पत्तियां वायु प्रदूषण को रोक भरपूर ऑक्सीजन देती है। खास बात कि लगातार नई पत्तियां आते रहने से पतझड़ का अहसास नहीं होता।

नहीं होता पतझड़ का अहसास

छाना गांव (अल्मोड़ा) में कल्पवृक्ष की जड़ से करीब सात टहनियां भी पेड़ का रूप ले चुकी हैं। इसकी पत्तियां कोई नहीं तोड़ता। प्राकृतिक रूप से प्रांगण में गिरी पत्तियों को प्रसाद स्वरूप उठाने की परंपरा है।

देश में और कहां

भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5,000 वर्ष से भी अधिक की बताई है। समाचारों के अनुसार ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है और दूसरा पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

उत्तराखंड वन अनुसंधान सलाहकार परिषद एवं वनस्पति विशेषज्ञ के सदस्य डॉ. जीवन सिंह मेहता बताते हैं कि जलकुबेर यानी कल्पवृक्ष पर शोध एवं अनुसंधान की जरूरत है। अल्कापुरी में मानवसभ्यता के विकास के साथ कल्पवृक्ष की पूजा होती आ रही। कार्बन डेटिंग से ही सही उम्र का पता लग सकता है। उत्तराखंड में बहुपयोगी बांज, खरसू, मोरू, फल्यांट व लटवा बांज इसी की प्रजातियां हैं। कल्पवृक्ष जलरूप में मनोकामना पूरी करने वाला वृक्ष है। जड़ें दूर तक बहुत गहरी व पानी को स्टोर करती हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.