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हेल्थ पालिसी जारी करते वक्त बीमाधारक के स्वास्थ जांच की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की

हेल्थ बीमा पालिसी जारी करते वक्त बीमा कंपनी पालिसी धारक के स्वास्थ की जांच नहीं कराती है तो यह उसकी जिम्मेदारी है। पालिसी धारक के बीमार पडऩे पर बीमा कंपनी को उपचार में होने वाले खर्च क्लेम देना होगा।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 06 Apr 2021 08:01 AM (IST)Updated: Tue, 06 Apr 2021 08:01 AM (IST)
हेल्थ पालिसी जारी करते वक्त बीमाधारक के स्वास्थ जांच की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की
हेल्थ पालिसी जारी करते वक्त बीमाधारक के स्वास्थ जांच की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की

संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़ : हेल्थ बीमा पालिसी जारी करते वक्त बीमा कंपनी पालिसी धारक के स्वास्थ की जांच नहीं कराती है तो यह उसकी जिम्मेदारी है। पालिसी धारक के बीमार पडऩे पर बीमा कंपनी को उपचार में होने वाले खर्च क्लेम देना होगा। ऐसे एक मामले में जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को उपचार में हुए खर्च का क्लेम भुगतान करने के आदेश बीमा कंपनी को दिए हैं। आयोग ने अपने फैसले में हाईपरटेंशन को बीमारी न मानते हुए वर्तमान सामाजिक परिवेश मेें जीवन शैली का एक भाग माना है।

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पिथौरागढ़ जिले के भुवन मखौलिया ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से हेल्थ बीमा लिया था। बीमा अवधि के दौरान वे बीमार पड़ गए और उन्हें हार्ट सर्जरी करानी पड़ी। जिस पर 3.25 लाख का खर्च आया। स्वस्थ होने पर भुवन ने बीमा कंपनी से क्लेम मांगा। कंपनी ने क्लेम देने से इन्कार कर दिया। बीमा धारक ने मामला जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के समक्ष रखा और अपने उपचार के समस्त अभिलेख प्रस्तुत किए।

आयोग के अध्यक्ष एवं जिला जज डा. जीके शर्मा और सदस्य चंचल सिंह बिष्ट ने मामले की सुनवाई की। बीमा कंपनी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि क्लेम भुगतान के लिए आवश्यक अभिलेख और प्रपत्र प्रस्तुत नहीं किए। बीमा धारक ने दूसरी बीमारी के उपचार का क्लेम मांगा है बीमा पालिसी में देय नहीं है। इस मामले में बीमा कंपनी ने विशेषज्ञ चिकित्सक से भी राय ली, जिसमें विशेषज्ञ ने बताया कि बीमा धारक हाईपरटेंशन में था। इस आधार पर क्लेम निरस्त कर दिया गया।

आयोग ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि वर्तमान सामाजिक परिवेश में हाईपरेंटशन जीवन शैली का हिस्सा न की कोई बीमारी। बीमा धारक हाईपरटेंशन में था तो इसकी जांच बीमा पालिसी लेते समय विशेषज्ञ चिकित्सक से कराई जानी थी, जबकि विशेषज्ञ की राय क्लेम के भुगतान के वक्त ली गई है। यह बीमा कंपनी द्वारा  दी जाने वाली सेवा में कमी है। इस आधार पर बीमा धारक अपना क्लेम पाने का अधिकारी है।

आयोग ने अपने फैसले में बीमा धारक को 3.25 लाख का क्लेम देने के साथ ही दस हजार रुपये मानसिक कष्ट और पांच हजार रुपये वाद व्यय के लिए दिए जाने के आदेश दिए। धनराशि का भुगतान एक माह के भीतर किए जाने की स्थिति में बीमा कंपनी को ब्याज नहीं देना होगा। अन्यथा की स्थिति में वाद दायर करने से भुगतान की अवधि तक सात प्रतिशत ब्याज भी  देना होगा।

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