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हल्द्वानी में हाथी-गुलदार आबादी में आ रहे, चिडिय़ाघर के नाम पर बनी सिर्फ दीवार

हाथी आबादी में आकर फसलों को रौंदने में लगे हैं। जबकि गुलदार ने डेढ़ माह के भीतर तीन लोगों को मार डाला लेकिन वन्यजीवों के संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से सात साल पहले जिस अंतरराष्ट्रीय स्तर के चिडिय़ाघर का शिलान्यास हुआ था

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 11:54 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 11:54 PM (IST)
हल्द्वानी में हाथी-गुलदार आबादी में आ रहे, चिडिय़ाघर के नाम पर बनी सिर्फ दीवार
बजट के फेर में फंसे इस बड़े प्रोजेक्ट पर बीच-बीच में नियमों का अड़ंगा भी लगता रहा।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: हल्द्वानी से सटे आसपास के ग्रामीण इलाकों में वन्यजीवों का आतंक आम हो चुका है। हाथी आबादी में आकर फसलों को रौंदने में लगे हैं। जबकि गुलदार ने डेढ़ माह के भीतर तीन लोगों को मार डाला, लेकिन वन्यजीवों के संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से सात साल पहले जिस अंतरराष्ट्रीय स्तर के चिडिय़ाघर का शिलान्यास हुआ था, उस अंतरराष्ट्रीय के नाम पर बीते सात साल में सुरक्षा दीवार और एक छोटी सी कृत्रिम झील ही बन सकी। बजट के फेर में फंसे इस बड़े प्रोजेक्ट पर बीच-बीच में नियमों का अड़ंगा भी लगता रहा। 

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कांग्रेस सरकार में गौलापार में तीन बड़े प्रोजेक्ट का प्रस्ताव बना था। जिसमें इंटरनेशनल स्टेडियम बनकर तैयार भी हो गया था। हालांकि उसके एक हिस्से का काम भाजपा सरकार में हुआ। आइएसबीटी का मामला गौलापार में अटकने के बाद से अब तक शुरू नहीं हो पाया। नई जमीन तलाशने के चक्कर में पूरा पेंच ही फंस गया। वहीं, तीसरे अहम प्रोजेक्ट चिडिय़ाघर की लागत तब 75 करोड़ आंकी गई थी। तराई पूर्वी वन प्रभाग की 412 हेक्टेयर भूमि पर इसका निर्माण होना था। शिलान्यास के बाद करीब 13 किमी लंबी सुरक्षा दीवार भी बनी, लेकिन इसके बाद से मामला अटकता गया। बकायदा जू को अलग रेंज घोषित कर स्टाफ की भी तैनाती गई। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त इसके डायरेक्टर बनाए गए। जून में सीसीएफ कुमाऊं को इसकी कमान मिली, मगर अब शासन के निर्देश पर सीसीएफ वन पंचायत को इसकी निगरानी का जिम्मा मिला है। फिलहाल मामला अटका हुआ है।कार्बन न्यूट्रल जू बनता 

गौलापार का अंतरराष्ट्रीय चिडिय़ाघर देश का पहला कार्बन न्यूट्रल जू बनना था। महकमे की कोशिश थी कि निर्माण में ईंट, सरिया और सीमेंट के इस्तेमाल की बजाय लकड़ी से काम चलाया जाए। कार्बन अवशोषित करने वाली लकड़ी प्रजाति का इस्तेमाल होता। इसके अलावा रोशनी के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग डिजाइन में शामिल था। 2018 तक काम पूरा होना था। वाइल्डलाइफ पर्यटन के जरिये रोजगार के नए अवसर पैदा करने वाले इस प्रोजेक्ट का काम पहले 2018 तक पूरा होना था।

रेस्क्यू सेंटर और प्रजनन केंद्र भी बनते 

वन विभाग के मुताबिक गौलापार में उच्च स्तर के रेस्क्यू सेंटर के अलावा गैंडे भी अन्य वन्यजीवों का प्रजनन सेंटर भी बनना था। यहां लोगों को तमाम दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों के दीदार कराने थे। मगर हकीकत यह है कि तराई पूर्वी वन प्रभाग से जू के नाम जमीन ट्रांसफर का मामला अब भी अंतिम प्रक्रिया में चल रहा। हालांकि, 412 हेक्टेयर में से करीब 340 हेक्टेयर क्षेत्र वाइल्डलाइफ संरक्षण कार्य से जुड़ा होने के कारण अब भी इसमें ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। बशर्ते पैरवी ठोस हो।


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