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हल्द्वानी में तीस साल पहले तीन परिवारों से शुरू हुई थी छठ की परंपरा, महा पर्व की तैयारियां शुरू nainital news

हल्द्वानी में छठ पूजा की सामूहिक परंपरा 1988 में शुरू हुई मानी जाती है। शुरुआत में गिने-चुने परिवारों से शुरू हुई परंपरा तीन दशकों में करीब 500 परिवारों तक पहुंच गई है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 11:30 PM (IST)
हल्द्वानी में तीस साल पहले तीन परिवारों से शुरू हुई थी छठ की परंपरा, महा पर्व की तैयारियां शुरू nainital news
हल्द्वानी में तीस साल पहले तीन परिवारों से शुरू हुई थी छठ की परंपरा, महा पर्व की तैयारियां शुरू nainital news

हल्द्वानी, जेएनएन : सूर्य उपासना का महापर्व छठ की तैयारी शुरू हो गई है। मूलरूप से बिहार व पूर्वांचल में मनाया जाने वाला छठ समय के साथ देश के दूसरे हिस्सों तक पहुंच गया। हल्द्वानी में छठ पूजा की सामूहिक परंपरा 1988 में शुरू हुई मानी जाती है। इस बार छठ महापर्व 31 अक्टूबर से शुरू होकर तीन नवंबर तक चलेगा।

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शुरुआत में गिने-चुने परिवारों से शुरू हुई परंपरा तीन दशकों में करीब 500 परिवारों तक पहुंच गई है। शंकर भगत व ठेकेदार विक्रम राय ने हल्द्वानी में छठ पूजा की परंपरा शुरू कराई। बाद में छठ पूजा सेवा समिति अध्यक्ष कृष्णा साह और अन्य लोग इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

समिति के महामंत्री मुरारी प्रसाद श्रीवास्तव बताते हैं कि तब पूजा स्थल पर किसी तरह की सुविधा नहीं थी। रामपुर रोड के बराबर से बहने वाली नहर के ऊपर बांस के डंडे डालकर पूजा स्थल तक जाने के लिए जगह बनाई गई। पत्थरों को एकत्र कर पूजा के लिए बेदी तैयार की गई। समय के साथ छठ पर्व मनाने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। निर्माण कार्य, ठेकेदारी, सरकारी व निजी सेक्टर में कार्यरत कई पूर्वांचली लोग यहीं बस गए हैं। छठ पूजा के लिए अब नहर किनारे 20 बेदियां बनी हैं। जहां पर व्रती पूजा करने हैं। पास ही टैंट लगाकर रात्रि जागरण होता है।

पिथौरागढ़, अल्मोड़ा से पहुंचते हैं लोग

रेलवे, आर्मी, एसएसबी, सीआरपीएफ व आईटीबीपी में कार्यरत पूर्वांचली समाज के लोग पूजा में छुट्टी लेकर हल्द्वानी पहुंचती हैं। छठ पूजा समिति के सचिव सुरेश भगत ने बताया कि हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर पिथौरागढ़, चम्पावत में कार्यरत जवान अपने परिवार सहित हल्द्वानी आते हैं।

छठ में पुरोहित की नहीं होती जरूरत

छठ में भगवान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। यही एक ऐसा पर्व है जिसमें किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। दूसरे दिन खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है। तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है।

आयोजन की तैयारियों पर किया मंथन

सोमवार को छठ पूजा सेवा समिति के पदाधिकारियों ने बैठक कर महापर्व की तैयारियों पर मंथन किया। अध्यक्ष कृष्णा साह की अध्यक्षता में हुई बैठक टैंट व्यवस्था, बिजली, साउंड आदि के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई।

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