आइआइटी व आइआइएम के छात्रों ने तैयार किया वुड स्टोव, जानें इसकी खासियत NAINITAL NEWS
आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा हैं। इसने अपना क्रूर चेहरा दिखाना शुरू कर दिया हैं।
बागेश्वर, चंदशेखर द्विवेदी : आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा हैं। इसने अपना क्रूर चेहरा दिखाना शुरू कर दिया हैं। एक ओर मौसम की मार दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाएं जैसे सूखा, बादल फटना आदि अधिकाधिक घटनाएं सामने आने लगी हैं। वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् काॅर्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिए तमाम प्रयोग करने में जुटे हैं। ऐसा ही एक अभिनव प्रयोग है संजीवनी वुड स्टोव। जो बढ़ते काॅर्बन के उत्सर्जन को कम कर पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहा हैं।
पहाड़ में अक्सर रसोई में ईंधन के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण में काफी मात्रा में काॅर्बन उत्सर्जन करता है। यह पर्यावरण को प्रदूषित तो कर ही रहा है वहीं इसका धुआं महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए रानीखेत की संस्था संजीवनी ने लोगों के साथ मिलकर अभिनव प्रयोग किया है। जिसके परिणाम सामने आने लगे हैं। अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण, सल्ट तहसील के 1550 परिवार संजीवनी वुड स्टोव (चूल्हा) के जरिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने में जुटे हुए हैं। इस स्मार्ट स्टोव के प्रयोग से 70 प्रतिशत धुआं कम होता है। 65 प्रतिशत लकड़ी की बचत होती हैं। स्टोव के लिए लकड़ी के साथ सूखे पत्ते, पीरूल आदि बायो फ्यूल का प्रयोग किया जा रहा हैं। यह परियोजना संजीवनी वुड स्टोव के नाम से बंगलुरु की इंट्रीगा माइक्रोसाफ्ट कंपनी के सहयोग से संचालित हो रही है। इस स्टोव का डिजायन आइआइटी मुम्बई व आइआइएम अहमदाबाद के छात्रों ने किया है। दो तहसीलों में सफल प्रयोग के बाद अब यह योजना भविष्य में अन्य जिलों में चलाई जाएगी।
प्रतिवर्ष रोका जा रहा 13516 टन
कार्बन का उत्सर्जन संजीवनी वुड स्टोव के प्रयोग से बेहतर परिणाम सामने आने लगे हैं। एक साल में प्रति परिवार इस स्टोव का प्रयोग कर 4.36 टन कार्बन का उत्सर्जन कम कर रहा हैं। सल्ट और भिकियासैंण तहसील में 1550 स्टोव प्रयोग में लाए जा रहे हैं। अगर इन परिवारों का पर्यावरण संरक्षण में योगदान देखे तो प्रति वर्ष 13516 टन कार्बन उत्सर्जन कम कर रहा है। जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक क्रांति से कम नहीं है।
स्वास्थ्य पर नहीं होगा कोई असर
अक्सर परंपरागत चूल्हे पर खाना आदि बनाने वाली महिलाओं को कार्बन उत्सर्जन से दमा, खांसी, टीबी, आंखों में जलन, चेहरे पर झुॢरयां व अन्य रोग आसानी से हो जाते थे। लेकिन महिलाओं को इन रोगों से भी मुक्ति मिली हैं।
इस स्टोव का प्रयोग सफल रहा
महेश घुघत्याल, सचिव, संजीवनी संस्था, रानीखेत ने कहा कि इस स्टोव का प्रयोग सफल रहा है। अब यह परियोजना अन्य जिलों में भी चलाए जाने की योजना है। इस स्टोव पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहा हैं।
ओजोन परत में सीधा पड़ रहा असर
डॉ. रमेश बिष्ट, पर्यावरणविद ने बताया कि अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन से पृथ्वी की सुरक्षा परत ओजोन में सीधा असर पड़ रहा हैं। जो ग्लोबल वाॢमंग का सबसे बड़ा कारण है। इस स्टोव के प्रयोग से हम कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं जो पर्यावरण सरंक्षण के लिए हमारा एक योगदान होगा।
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