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आइआइएम के उत्तराखंडी छात्र हरेंगे पहाड़ की पीड़ा, पहाड़ के काम आएगी पहाड़ की जवानी

लायन के नाम पर पहाड़ की राजनीति करने वाले नेताओं ने पहाड़ को कुछ नहीं दिया। शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्र आज भी ऐसे ही हैं जैसे 30-40 साल पहले हुआ करते थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 05:25 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 05:25 PM (IST)
आइआइएम के उत्तराखंडी छात्र हरेंगे पहाड़ की पीड़ा, पहाड़ के काम आएगी पहाड़ की जवानी
आइआइएम के उत्तराखंडी छात्र हरेंगे पहाड़ की पीड़ा, पहाड़ के काम आएगी पहाड़ की जवानी

काशीपुर, जेएनएन : पुरानी कहावत है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती। इस कहावत को गलत सिद्ध करने की जिम्मेदारी आइआइएम के उत्तराखंडी छात्रों ने ली है। छात्रों को यह पीड़ा कहीं न कहीं आज भी कचोट रही है कि पलायन के नाम पर पहाड़ की राजनीति करने वाले नेताओं ने पहाड़ को कुछ नहीं दिया। शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्र आज भी ऐसे ही हैं जैसे 30-40 साल पहले हुआ करते थे। पहाड़ का युवा वहां से उतरकर रोजी-रोटी तलाशने को मजबूर है। इतना ही नहीं सरकार ने लोगों की आर्थिकी सुधारने के लिए कुछ योजनाएं बनाई भी हैं, लेकिन उनका प्रचार-प्रसार न होने की वजह से लोगों में जागरूकता नहीं है। लोगों को जागरूक करने और राज्य के लिए कुछ कर गुजरने का मन उत्तराखंडी छात्रों ने बनाया है। आइआइएम के दो छात्र गढ़वाल और छह छात्र कुमाऊं से संबंध रखते हैं।

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अभिजीत अपना स्‍टार्टअप शुरू करेंगे

रायपुर, देहरादून निवासी अभिजीत के पिता नंद किशोर डिफेंस में हैं। एचडीएफसी बैंक में सेलेक्ट हुए अभिजीत का सपना भविष्य में कुछ राज्य के लिए कुछ करना है। उनका कहना है कि अभी जॉब कर वह आर्थिक रूप मजबूत बनना चाहते हैं। जिससे की पहाड़ से हो रहे पलायन को रोकने के लिए कुछ स्टार्टअप कर सकें। लोगों को जागरूक करना उनकी प्राथमिकता में रहेगा।

अक्षय का सपना राज्‍य के युवाओं को जॉब देना

काशीपुर के गिरिताल निवासी अक्षय वशिष्ठ को आइआइएम रोहतक और रायपुर जाने का मौका मिला था, लेकिन उन्होंने अपनी जन्मभूमि को ही पढ़ाई के लिए बेहतर समझा। पिता सुशील कुमार शर्मा बिजनेसमैन हैं। अक्षय का सपना है कि वह अपना बिजनेस शुरू कर परिवार के साथ ही राज्य के युवाओं को जॉब दे सकें। जिससे कि राज्य में बेरोजगारी की समस्या को कुछ कम किया जा सके।

कमल करना चाहते हैं कुछ हटकर

हल्दूचौड़ निवासी कमल सनवाल को मुंबई स्थित ईसीएलईआरएक्स में प्लेसमेंट मिला है। पिता तारादत्त सनवाल आर्मी में हैं। वह बताते हैं कि पिता बॉर्डर पर देश की सेवा करने में लगे हैं। जबकि वह कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे की राज्य के साथ ही उनका काम देश के भी काम आ सके।

सर्वज्ञ सुधारना चाहते हैं शिक्षा व्‍यवस्‍था

अयारपाटा हिल, नैनीताल निवासी सर्वज्ञ चौधरी के पिता मनोज चौधरी उद्यान विभाग में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर तैनात हैं। सर्वज्ञ उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में अपना योगदान देना चाहते हैं। उनका कहना है कि राज्य में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं। उनको निखारने के लिए मौके की जरूरत है। कहते हैं कि जॉब करने के बाद शिक्षा क्षेत्र में उनका मन कुछ कर गुजरने का है।

चित्रेश गांवों में खड़ा करना चाहते हैं व्‍यापार

ताकुला अल्मोड़ा निवासी चित्रेश लोहुमी के पिता दिनेश लोहुमी रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजीनियर के पद पर बरेली में तैनात हैं। चित्रेश का कहना है कि जब भी वह पहाड़ जाते हैं तो उन्हें लोगों के चेहरों की झुर्रियां कचोटती हैं। भविष्य में वह ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापार खड़ा कर वहां के लोगों को रोजगार देने की कोशिश करेंगे।

रोहित देना चाहते हैं राेजगार

डोबानोला, अल्मोड़ा निवासी रोहित टम्टा के पिता सज्जन लाल टम्टा व्यवसाय के साथ ही राजनीति में भी पकड़ रखते हैं। रोहित का कहना है कि पहाड़ में आज भी काफी दिक्कतें हैं। लोग जागरूकता के अभाव में किसी भी सरकारी पॉलिसी का लाभ नहीं ले पाते हैं। जबकि जॉब के लिए उन्हें मैदान में उतरना पड़ता है। वह भविष्य में पहाड़ में ही लोगों को रोजगार देना चाहते हैं।

शांतनु करेंगे व्‍यापार के लिए प्रेरित

हरिद्वार के शांतनु वर्मा के पिता पीपलकोटी स्थित टीएसडीसी में उपप्रबंधक हैं। उनका कहना है कि वह राज्य के युवाओं को रोजगार देने के लिए अपना व्यवसाय खड़ा करेंगे। जिससे कि राज्य की बेरोजगारी दर को कम किया जा सके। राज्य बने 18 साल होने के बाद भी पहाड़ के लोगों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

यश दिलाना चाहते हैं बेहतर शिक्षा

मूलरूप से भेटा गांव, अल्मोड़ा निवासी यश लोहुमी पुत्र आशुतोष हल्द्वानी मुखानी में रहते हैं। 25 वर्ष के हो चुके यश को गांव की पीड़ा सहन नहीं होती है। यश बताते हैं कि जब भी वह गांव गए, उन्हें हालात में कोई सुधार नहीं दिखा। राज्य बने 18 साल वऔर देश आजाद हुए सात दशक हो चुके हैं। पहाड़ के शहरों को छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्र की दिशा और दशा में कोई सुधार नहीं हुआ है। भविष्य में ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षण संस्थान खोलकर बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं।

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