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आइआइएम के छात्रों ने तैयार किया मानव-वन्‍यजीव संघर्ष को रोनके वाला डिवाइस

उत्तराखंड में पलायन गंभीर समस्या बनी हुई है। मूलभूत सुविधाओं की कमी के साथ ही जानवरों के आए दिन होने वाले हमले भी इसके पीछे के प्रमुख हैं। ऐसे में आइआइएम एमबीएम के पांच छात्रों ने खास डिवाइस बनाया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 15 Jul 2021 07:34 AM (IST)Updated: Thu, 15 Jul 2021 07:34 AM (IST)
आइआइएम के छात्रों ने तैयार किया मानव-वन्‍यजीव संघर्ष को रोनके वाला डिवाइस
आइआइएम के छात्रों ने तैयार किया मानव-वन्‍यजीव संघर्ष रोनके वाला डिवाइस

अभय पांडेय, काशीपुर : उत्तराखंड में पलायन गंभीर समस्या बनी हुई है। मूलभूत सुविधाओं की कमी के साथ ही जानवरों के आए दिन होने वाले हमले भी इसके पीछे के प्रमुख हैं। ऐसे में आइआइएम एग्जीक्यूटिव एमबीएम के पांच छात्रों ने खास डिवाइस बनाया है, जो गांव में जंगली जानवरों की आहट भर से ग्रामीणों को अलार्म के माध्यम से अलर्ट कर देगा। इंफ्रारेड तकनीक के आधार पर यह डिवाइस काम करेगा। आइआइटी रुड़की में इसका प्रजेंटेशन भी किया गया है। कोविड काल में दूरी के पालन करने के लिए भी इस डिवाइस का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस डिवाइस का प्रॉपर्टी राइट आइआइटी रुड़की व इन पांच छात्रों के पास ही सुरक्षित रहेगा। इस डिवाइस की उपयोगिता को लेकर वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया टीम से संपर्क में है।

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मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले गौरव कुमार टीएचडीसी में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही काशीपुर के आइआइएम से एग्जीक्यूटिव एमबीएम भी कर रहे हैं। गौरव के अनुसार आइआइटी रुड़की की ओर से आयोजित इनोवेशन चैलेंज कोविड स्केप प्रतियोगिता में उन्होंने अपने चार मित्रों के साथ मिलकर इस डिवाइस को तैयार किया है। प्रतियोगिता में उनके आइडिया प्रजेंटेशन को दूसरा स्थान मिला। पहले यह डिवाइस कोविड में दो गज दूरी बनाने को लेकर तैयार किया गया ताकि एक-दूसरे के नजदीक आने पर अलार्म बज उठे। फाइनल प्रजेंटेशन में इसके अन्य प्रयोग के तहत उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इस डिवाइस की खासी उपयोगिता नजर आई। मानव-वन्यजीव संघर्ष एक प्राकृतिक आपदा से कम नहीं है। पिछले साल जंगली जानवरों के हमले में 60 से च्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई और 259 लोग घायल हुए। वहीं, जंगली जानवरों से खेती बर्बाद होने की मामलों में भी कमी आएगी।

आइआइएम की टीम में शामिल टीएचडीसी में हैं कार्यरत

इस प्रोजेक्ट को बनाने वाले आइआइएम काशीपुर के देहरादून फैकल्टी के एक्सीक्यूटिव एमबीएम कर रहे हैं। टीम में गौरव टीएचडीसी में जनसंपर्क अधिकारी, राहुल जोशी उप प्रबंधक ऋषिकेश टीएचडीसी, सिद्धार्थ कौशिक उप प्रबंधक टीएचडीसी कोटेश्वर, तनुज राणा उप प्रबंधक टीएचडीसी टिहरी, अपूर्व कुमार उप प्रबंध कोटेश्वर टीएचडीसीआइएल शामिल हैं। टीम के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर काम करने में अस्टिटेंट प्रोफेसर कुमकुम भारती डीआइसी, संजय कुमार प्रोजेक्ट एसोसिएट, डीआइसी रुड़की के प्रोफेसर संजय मन्हास का काफी सहयोग रहा है।

कैसे काम करता है डिवाइस

प्रोजेक्ट के तहत इसका फाइनल प्रजेंटेशन किया जा चुका है। उपयोग के हिसाब से इसका डिजाइन परिवर्तन किया जा रहा है। इसे रिस्ट वॉच या अन्य प्रतीकों में परिवर्तन किया जा सकेगा। यह डिवाइस बहुत हल्का उपकरण है, जो आसपास किसी जीव की उपस्थिति के प्रति संवेदनशील है। इसमें पीआइआर संवेदक (सेंसर) यानी पेसिव इन्फ्रारेड का इस्तेमाल होता है। जो पूर्व निर्धारित दूरी के अंतर्गत किसी भी स्तनपायी जीव की उपस्थिति पाते ही अपने साथ जुड़े अलार्म के जरिये अलर्ट कर देता है। प्रो कुमकुम, डीआइसी, काशीपुर आइआइएम ने बताया कि पांचों टीम मेंबर ने मिलकर एक बेहतरीन डिवाइस तैयार किया है इससे जंगली जानवरों और इंसानों के बीच टकराव कम होगा। हम आगे भी इसके बहुआयामी उपयोग पर रिसर्च करेंगे कि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों तक कैसे पहुंचे।


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