Move to Jagran APP

Subhash Chandra Bose Jayanti : हुकुम सिंह की हुंकार ने भरा था आजाद हिंद फौज में जोश, कड़क आवाज से अंग्रेजों ने नाम रखा कड़कदार

Parakram Diwas 2021 सोमेश्‍वर के हुकुम सिंह की कड़क आवाज से अंग्रेज अफसर बहुत प्रभावित रहते थे। इसलिए इनका नाम ही कड़कदार रख दिया था। 1943 तक वह ब्रिटिश सेना के अंग रहे। उसके बाद अंग्रेजों की सेना छोड़ आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए।

By Prashant MishraEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 08:08 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 08:08 AM (IST)
Subhash Chandra Bose Jayanti : हुकुम सिंह की हुंकार ने भरा था आजाद हिंद फौज में जोश, कड़क आवाज से अंग्रेजों ने नाम रखा कड़कदार
दो साल तक जेल में रहकर ब्रितानी हुकूमत की यातनाएं झेलीं।

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा। वीरों की भूमि बौरारौ घाटी (सोमेश्वर) ने आजाद हिंद फौज को जानदार सैनिक दिया था। ब्रिटिश आर्मी के इस जांबाज को 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा...' नारे ने इस कदर प्रभावित किया कि वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के न केवल करीब आए, बल्कि अपनी कड़कदार आवाज से आजाद हिंद फौज के सैनिकों में नया जोश व जज्बा भरते थे। वीर रस की हुंकार और कड़क आवाज के कायल ब्रितानी सैन्य अधिकारियों ने पहाड़ के इस वीर सपूत को नाम दिया हुकुम सिंह बौरा उर्फ 'कड़कदार'। बाद में दो साल तक जेल में रहकर ब्रितानी हुकूमत की यातनाएं झेलीं। छूटने के बाद यह क्रांतिकारी आजादी की अलख जगाता रहा।

loksabha election banner

जिले के सोमेश्वर स्थित फल्या गांव में मल्लाखोली निवासी प्रेम सिंह व नथुली देवी के घर 1917 में जन्मे थे क्रांतिकारी हुकुम सिंह बौरा। बचपन से ही सैनिक बनने की ललक थी। आजादी के लिए उतनी ही तड़प भी। प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1938 में तत्कालीन 419 हैदराबाद डिवीजन ब्रिटिश आर्मी में भर्ती हो गए। अपने दादा के संस्मरण सुनाते हुए पोते पूर्व सैनिक कुंवर सिंह बौरा बताते हैं कि सैन्य प्रशिक्षण के दौरान हुकुम सिंह की कड़क आवाज सुन गोरे उन्हें हुकुम सिंह कड़कदार कहने लगे। वह 1943 तक वह ब्रिटिश सेना में रहे।

ब्रिटिश आर्मी छोड़ नेताजी को चुना

राष्टï्रपिता महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका। वहीं 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की नीव रखी। 'दिल्ली चलो' व 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' जैसे नारों ने देशभक्तों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लामबंद करना शुरू कर दिया। यही वह दौर था जब हुकुम सिंह बौरा ने सारी सुख सुविधाएं त्याग ब्रिटिश आर्मी छोड़ कर आजाद हिंद फौज को चुन लिया। भारतीय सेना में फौजी रहे कुंवर सिंह बौरा कहते हैं कि 1944 के मध्य में जब आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जंग छेड़ी तो हुकुम सिंह बौरा ने अदमस्य साहस दिखाया। 1945 में जब जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध में आत्मसमर्पण किया तो आजाद हिंद फौज के सिपाही हुकुम सिंह बौरा समेत कई देशभक्त सैनिक जब तक गोला बारूद था लड़ते रहे। आखिर में गिरफ्तार किए गए।

कोलकाता जेल में झेली यातनाएं

आजाद हिंद फौज के सिपाही हुकुम सिंह बौरा को कोलकाता जेल मेें रखा गया। ब्रितानी सैनिक उन्हें चावल में चूना मिला कर देते थे। इधर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने फिर ताकत जुटाई। नवंबर 1945 में दिल्ली कूच पर लाल किले का मुकदमा हुआ। आजाद हिंद फौज के मेजर शाहनवाज खां, कर्नल प्रेम सहगल  व गुरुदयाल सिंह को राजद्रोह के तहत फांसी सुनाई गई।

तब करना पड़ा रिहा

तीन अधिकारियों को फांसी की सजा व हुकुम सिंह बौरा की गिरफ्तारी से गुस्साए देशभक्त सैनिकों के 'लाल किले को तोड़ दो आजाद हिंद फौज को छोड़ दोÓ नारों ने गोरों की चूलें हिला दीं। तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवल ने आजाद हिंद फौज के तीनों सैन्य अधिकारियों की फांसी की सजा पर रोक लगा कोलकाता जेल में बंद हुकुम सिंह बौरा को भी रिहा कर यिा। उन्हें ब्रितानी शासन में राजद्रोह का प्रमाणपत्र व एक लाल कफन दिया गया। 1940 से 1945 तक कोई खबर न मिलने से उन्हें शहीद मान लिया गया था। 1945 में जब हुकुम सिंह के पिता प्रेम सिंह का निधन हुआ तो उन्हीं के साथ आजाद हिंद फौज के इस सिपाही का भी क्रियाकर्म कर दिया गया। मगर 1946 के आखिर में यह सिपाही गांव लौटा। तब इसे मुश्किल से पहचाना जा सका। कुछ दिन अवसाद में रहने के बाद वह दोबारा स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। 1951 में हुकुम सिंह आजाद भारत की सेना में भर्ती हो गए।

...और बहादुरों की भांति छोड़ दी दुनिया

28 दिसंबर 1989 को द्वाराहाट कर्णप्रयाग हाईवे पर चौकुनी गांव (रानीखेत) में वह वाहन आग की चपेट में आ गया, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी हुकुम सिंह बौरा बैठे थे। बुढ़ापे के बावजूद अन्य यात्रियों को बचाने की कोशिश में आजादी हिंद फौज का यह सिपाही दुनिया से विदा हो गया।

सोमेश्वर महाविद्यालय को मिला नाम

हुकुम सिंह बौरा के नाम पर सोमेश्वर में स्मारक है। महाविद्यालय का नाम भी उन्हीं की स्मृति में रखा गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.