उत्तराखंड चुनाव 2022 : इंदिरा, राजीव और एनडी का ड्रीम प्रोजेक्ट रानीबाग एचएमटी फैक्ट्री खंडहर में तब्दील, विस्तार से पढ़ें रिपोर्ट
कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के रानीबाग में स्थापित हुई थी एचएमटी फैक्ट्री। 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे स्वीकृति दी। उद्योग मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने शिलान्यास और 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।
गणेश जोशी, हल्द्वानी : कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के रानीबाग में स्थापित हुई थी एचएमटी फैक्ट्री। 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे स्वीकृति दी। उद्योग मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने शिलान्यास और 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। विकास पुरुष एनडी का यह एक ऐसा ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसने हजारों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार दिया।
उत्तराखंड की शान समझी जाने वाली फैक्ट्री में 2016 से ताला लटक गया। फैक्ट्री व आवासीय कालोनियां खंडहर हो चुकी हैं। तब कांग्रेस थी और अब भाजपा सरकार पांच साल पूरे कर चुनाव की दहलीज पर है। इस बीच कभी इस भूमि पर हाई कोर्ट शिफ्टिंग तो कभी केंद्रीय संस्थान बनाने की बातें भी उछाली गई, मगर हकीकत में इसकी सुध किसी ने गंभीरता से ली ही नहीं।
उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही केंद्र में भारी उद्योग व वित्त समेत तमाम मंत्रालयों की जिम्मेदारी का निर्वहन कर चुके एनडी तिवारी का सपना था कि कुमाऊं में बड़े उद्यम स्थापित हों। पहचान बढ़े और क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मिले। उन्होंने विख्यात एचएमटी कंपनी को रानीबाग में स्थापित भी करवा दिया था। तब कुमाऊं में इतने बड़े संस्थान के खुलने से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी।
1246 कर्मचारी थे कार्यरत
एचएमटी स्थापना के बाद से एक समय यहां 1246 से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे। वर्षों तक कंपनी ठीक-ठाक चलती रही। वर्ष 2000 के बाद कंपनी के दुर्दिन आने लगे। प्रबंधन भी ऐसे लोगों के हाथों में चला गया कि कंपनी लगातार घाटे में आने लगी। धीरे-धीरे कंपनी के कर्मचारी वीआरएस लेने लगे या फिर उन्हें वीआरएस पर भेजा जाने लगा। आखिरकार 2016 में भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय ने कंपनी को बंद करने का एलान कर दिया।
91 एकड़ में फैली थी कंपनी
एक समय था, जब इस कंपनी में बनी घडिय़ां देश-दुनिया में जाती थी। कंपनी में 500 से अधिक मशीनें थी। प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक घडिय़ां बनती थी। प्रतिवर्ष 500 करोड़ का टर्नओवर था। अब प्रबंधन 50 प्रतिशत से अधिक मशीनों को नीलाम कर चुका है। 91 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैला कंपनी का क्षेत्र अब उजाड़ हो गया है। भवन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। राच्य सरकार व वन विभाग की जमीन वापस हो चुकी है। अब कंपनी की अपनी खरीदी हुई जमीन बची हुई है।
2016 से कर्मचारियों का आंदोलन, पांच की हो चुकी है मौत
दुर्भाग्य है कि जब से कंपनी बंद करने की घोषणा की गई। कुछ कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया। 146 कर्मचारियों ने वीआरएस नहीं लिया। तभी से कर्मचारी अपने हक की लड़ाई के लिए परिसर के बाहर आंदोलन करने लगे थे। आंदोलन करते-करते पांच कर्मचारियों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक कंपनी ने इनके हित में किसी तरह का निर्णय नहीं लिया। खंडहर हो चुके आवासों में से जो थोड़ा रहने लायक हैं उनमें अभी भी 24 परिवार रहते हैं।
जब तक नई परियोजना की चर्चा
एचएमटी की इस जमीन पर आए दिन नई-नई परियोजना तैयार करने की चर्चा होते रहती है। कभी हाई कोर्ट नैनीताल से शिफ्ट करने का मुद्दा उठता है तो कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय का परिसर। पिछले कुछ वर्षों से आवासीय योजना बनाने की भी चर्चा थी। इसके साथ ही एम्स की शाखा खोलने को लेकर कुछ जनप्रतिनिधियों ने दौरा भी किया था। दुर्भाग्य है कि अब तक कुछ नहीं हो सका है।
एचएमटी का इतिहास
- 1982 में प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गाधी के कार्यकाल में मिली थी मंजूरी।
- तत्कालीन भारी उद्योग मंत्री स्व. एनडी तिवारी ने किया था शिलान्यास।
- 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गाधी ने किया था उद्घाटन।
- 91 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है कंपनी का आवासीय परिसर।
- कंपनी में कभी 1246 कर्मचारी रहे थे कार्यरत।
- प्रतिवर्ष 20 लाख घड़ी उत्पादन की थी क्षमता।
- 2016 में कंपनी बंदी के समय 512 कर्मचारी थे कार्यरत।
- कंपनी में 366 कर्मचारियों ने लिया वीआरएस।
- 146 कर्मियों ने वीआरएस नहीं लिया, इसमें पांच की मौत हो गई।
विकल्प बहुत थे, लेकिन नहीं दिया ध्यान
रानीबाग से पहाड़ व जंगल शुरू हो जाता है। एक तरफ गौला नदी बहती है। पहाड़ों के नीचे की यह खूबसूरत जगह है। जहां पर नए-नए उद्यम के साथ ही पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं थी, लेकिन अभी तक के नीति-नियंताओं ने कुछ भी नहीं किया। तमाम विभाग स्थापित करने की चर्चा हुई थी। अगर नैनीताल के कार्यालय ही इस जगह पर आ जाएं तो नैनीताल में जाम की समस्या कम होगी और पर्यटन को और गति मिल सकती है। इसके अलावा आइटी सेक्टर से लेकर आधुनिक जरूरत के तमाम उद्योग स्थापित हो सकते थे। इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलता, लेकिन इस लिहाज से भी नहीं सोचा गया।
जानिए क्या कहते हैं एचएमटी के कामगार
एचएमटी कामगार संघ के भगवान सिंह बताते हैं कि अगर घडिय़ों का कारोबार कम हुआ था तो अन्य उपकरणों को बनाने का उद्यम शुरू किया जा सकता था। हमने इस कंपनी को कोआपरेटिव स्तर पर चलाने का सुझाव भी भारत सरकार को दिया था, लेकिन इसे नहीं माना गया। इस जगह का उपयोग अन्य तमाम तरह के उद्यम के लिए किया जा सकता था। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि आंदोलन करते हुए पांच कर्मचारियों की मृत्यु हो गई है। हमारी मांग 2019 तक का वेतन और उसके बाद वीआरएस की है। इसके लिए संघर्षरत हैं।