मिड डे मील के भुगतान को लेकर दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांग जवाब
हाईकोर्ट ने बच्चों को कोरोना लॉकडाउन व गर्मियों की छुट्टी के दौरान मिड डे मील (mid day meal) का भुगतान को लेकर दायर जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई की।
नैनीताल, जेएनएन : हाईकोर्ट ने राज्य के 17 हजार से अधिक प्राथमिक, उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को कोरोना लॉकडाउन व गर्मियों की छुट्टी के दौरान मिड डे मील (mid day meal) का भुगतान को लेकर दायर जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई की। मामले में कोर्ट ने सरकार से 24 जून बुधवार तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं ।
केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा 20 मार्च व 28 अप्रैल को देश के सभी राज्यों के लिए एडवाइजरी जारी की थी कि लॉकडाउन व ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को मध्यान्ह भोजन अथवा कच्चा राशन तथा खाना पकाने की लागत का भुगतान किया जाए। राज्य में अधिकांश स्कूलों ने इस एडवाइजरी का मनमाने तरीके से अनुपालन किया गया। याचिकाकर्ता का कहना है कि बच्चों को कम राशन के साथ ही खाना बनाने की लागत के मूल्य का भुगतान में भी मनमानी की गयी है।
याचिकाकर्ता समाजवादी लोक मंच को बच्चों एवं उनके अभिभावकों द्वारा लिखित रूप में शिकायत प्राप्त हुई है। खाना पकाने की लागत का मूल्य उत्तराखंड में कई स्थानों पर बैंक खातों में ट्रांसफर करने की जगह नकद भुगतान व कम भुगतान करने के मनमाने तरीके अपनाए गए हैं। कई स्थानों पर तो बच्चों को न तो राशन मिला है, और न ही उन्हें खाना पकाने के लागत के मूल्य का भुगतान किया गया है।
केंद्र सरकार ने सरकारी स्कूलों व सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के लिए 4.97 रुपये खाना पकाने की लागत का मूल्य तथा 100 ग्राम अनाज प्रतिदिन व कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए 7.45 रुपये प्रतिदिन तथा 150 ग्राम राशन देने का आदेश पारित किया है।
उक्त आदेश 20 मार्च से 30 जून तक के लिए जारी किया गया है। उत्तराखंड में सात लाख से अधिक बच्चे मिड डे मील योजना (mid day meal) के दायरे में आते हैं। सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मिड डे मील का मई माह तक का भुगतान किया जा चुका है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश खुल्बे की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को दो दिन में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए।
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