राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण मामले में फिर लगा झटका
हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले में दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है।
नैनीताल, [जेएनएन]: राज्य आंदोलनकारियों को फिर से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने सरकारी सेवाओं में राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसद क्षैतिज आरक्षण को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। अब याचिकाकर्ता इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करेंगे।
राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसद क्षैतिज आरक्षण के मामले में हाई कोर्ट के दो न्यायाधीश द्वारा अलग-अलग राय दी गई। जस्टिस सुधांशु धूलिया द्वारा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया गया तो जस्टिस यूसी ध्यानी द्वारा संवैधानिक करार दिया गया। इसके बाद मामला मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचा तो उन्होंने निर्णय के लिए तीसरी बैंच को मामला रेफर कर दिया।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था। आरक्षण असंवैधानिक करार देने के फैसले को चुनौती देते हुए अधिवक्ता रमन कुमार साह द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई। मंगलवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। अधिवक्ता साह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करना जरूरी था। अब आरक्षण मामले को लेकर जल्द एसएलपी दायर की जाएगी।
साह ने यह बताया कि मुजफ्फरनगर कांड के इकलौते चश्मदीद गवाह तत्कालीन सीओ के गनर रहे सुभाष गिरी की हत्या मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर भी एसएलपी दायर की जाएगी। कांस्टेबल सुभाष की 1996 में हत्या कर दी गई थी। मामले की सीबीसीआइडी जांच भी हुई मगर खुलासे से पहले ही फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। साह के अनुसार हाई कोर्ट ने इस मामले देहरादून जिला जज की कोर्ट से मुजफ्फरनगर कांड से संबंधित दस्तावेज मांगे हैं।
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