हाईकोर्ट ने आरक्षित वन क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित करने के साथ दिया यह निर्देश
हाई कोर्ट ने आरक्षित वन क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित करने तथा तय सीमा से अधिक किसी भी क्षेत्र में खनन ना करने देने के निर्देश वन निगम दिए हैं।
नैनीताल, जेएनएन : हाई कोर्ट ने आरक्षित वन क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित करने तथा तय सीमा से अधिक किसी भी क्षेत्र में खनन ना करने देने के निर्देश वन निगम दिए हैं।
गुरुवार को बाजपुर (ऊधमसिंह नगर) के जोगीपुर निवासी रमेश लाल व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया था कि पीएनसी इंफ्राटेक लिमिटेड को एनएच-84 का निर्माण करने के लिए सरकार द्वारा रेता बजरी की अनुमति दी गई है। पीएनसी द्वारा आरक्षित वन क्षेत्र में केंद्र द्वारा वन निगम को पांच लाख घन मीटर की अनुमति दी गई है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा उसी क्षेत्र में सवा आठ लाख घन मीटर माल उठाने की अनुमति प्रदान कर दी। याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया कि जब वन निगम को पांच लाख घन मीटर की अनुमति है तो पीएनसी को सवा आठ लाख घन मीटर की अनुमति कैसे दी गई। माल उठाने की अनुमति जिला नैनीताल में दी गई है, जबकि यही माल तोलने व उठाने के बीच की दूरी आठ किलोमीटर है। जो रिजर्व एरिया है। यहां पर किसी प्रकार के खनन की अनुमति नहीं है। याचिका में कहा गया है कि पीएनसी अपने ट्रक इसी मार्ग से गुजरेंगे तो अवैध खनन को बढ़ावा मिलेगा। याचिका में आरक्षित वन क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित करने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश खुल्बे की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद आरक्षित वन क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित करने के साथ ही वन निगम को स्वीकृत क्षमता से अधिक खनन रोकने के निर्देश दिए हैं।
देवभूमि माइनिंग पर रोक
हाई कोर्ट ने देवभूमि माइनिंग पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। देवली गांव बागेश्वर निवासी नरेश चंद्र समेत 29 अन्य ने याचिका दायर कर कहा है कि बागेश्वर में देवभूमि माइनिंग को खडिय़ा पट्टा मंजूर किया गया है, जिसे याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार इस खनन पट्टे के लिए ग्रामीणों से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया गया है। गांव वालों द्वारा पूर्व में भी इसका विरोध किया गया। न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद देवभूमि माइनिंग पर रोक लगा दी।
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