हरिद्वार में स्लाटर हाउस पर पाबंदी के खिलाफ याचिका पर अगली सुनवाई 27 अगस्त को
स्लाटर हाउस पर पाबंदी की अधिसूचना को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने याचिका में संशोधन के लिए एक सप्ताह का समय मांगा जबकि सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस पर पाबंदी की अधिसूचना को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने याचिका में संशोधन के लिए एक सप्ताह का समय मांगा जबकि सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। जिसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई 27 अगस्त नियत कर दी।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हरिद्वार निवासी इफ्तिकार व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में सरकार की ओर से इसी साल मार्च में हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस पूरी तरह बंद करने की अधिसूचना को चुनौती दी गई है। पहले सरकार द्वारा कुंभ मेला क्षेत्र में मीट व शराब की बिक्री प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार धार्मिक क्षेत्रों में मांस की बिक्री प्रतिबंधित कर सकती है लेकिन पूरे जिले में नहीं।
यह आदेश अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने वाला है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने सरकार के एक बेसलाइन सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि उत्तराखंड में 72 फीसद लोग मांसाहारी हैं। याचिकाकर्ता ने अब जिले में मांस की पाबंदी की नगर निगम से संबंधित अधिसूचना को चुनौती देने के लिए याचिका में संशोधन के लिए एक सप्ताह का समय मांगा जबकि सरकार की ओर से सीएससी चंद्रशेखर रावत ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। जिसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई 27 अगस्त नियत कर दी।
पेंशन कटौती के खिलाफ याचिका पर सुनवाई अब दो को
हाई कोर्ट ने रिटायर कर्मचारियों से स्वास्थ्य बीमा के बहाने पेंशन से हर माह कटौती के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई दो अगस्त नियत की है। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में देहरादून निवासी गणपत सिंह बिष्टï व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें कहा गया है कि उनकी अनुमति के बिना राच्य सरकार ने 21 दिसंबर 2020 को एक शासनादेश जारी कर उनकी पेंशन से अनिवार्य कटौती पहली जनवरी 2021 से शुरू कर दी है, जबकि पेंशन उनकी व्यक्तिगत संपत्ति है।
सरकार इस तरह कटौती नहीं कर सकती। यह कटौती पूरी तरह यह असंवैधानिक है। पहले यह व्यवस्था थी कि कर्मचारियों का स्वास्थ्य बीमा सरकार खुद वहन करती थी परंतु अब उनके पेंशन से हर माह पैसा काटा जा रहा है। याचिका में इस मामले में पूर्व की व्यवस्था लागू करने की मांग की है।