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बेसहारा बुजुर्गों की सहारा हैं हल्द्वानी की कनक पर अब तक नहीं मिल सका वृृद्धाश्रम

जिनका कोई नहीं और सड़क किनारे असहाय पड़े हैं। न तन ढकने को कपड़े हैं और पेट भरने को भोजन। उम्र के आखिर पड़ाव में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे ऐसे असहाय बुजुर्गों की जिंदगी को सहारा देने में जुटी हैं हल्द्वानी की कनक चंद।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 02:58 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 02:58 PM (IST)
बेसहारा बुजुर्गों की सहारा हैं हल्द्वानी की कनक पर अब तक नहीं मिल सका वृृद्धाश्रम
बेसहारा बुजुर्गों की सहारा हैं हल्द्वानी की कनक, पर अब तक नहीं मिल सका वृृद्धाश्रम

हल्द्वानी, गणेश जोशी : जिनका कोई नहीं और सड़क किनारे असहाय पड़े हैं। न तन ढकने को कपड़े हैं और पेट भरने को भोजन। उम्र के आखिर पड़ाव में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे ऐसे असहाय बुजुर्गों की जिंदगी को सहारा देने में जुटी हैं हल्द्वानी की कनक चंद। पिछले चार साल से वृद्धाश्रम में निराश्रित बुजुर्गों की सेवा कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।

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आश्रम में हर समय रहते हैं 10 बुजुर्ग

कनक ने 21 मई, 2016 से गौजाजाली में किराए के मकान में वृद्धाश्रम की शुरुआत की थी। पहले तीन बुजुर्ग आए और फिर कुछ ही दिन में यह संख्या सात तक पहुंच गई। बाद में आश्रम में हमेशा 10 बुजुर्ग रहे। अब कनक बुजुर्गों की अभिशप्त जिंदगी को स्थायी ठौर देने के लिए प्रयासरत हैं। सरकार से बार-बार गुहार लगा चुकी हैं। इसके लिए आश्वासन भी मिला है। अब रामपुर रोड पंचायत घर पर आश्रम शिफ्ट किया गया है, लेकिन कनक को उम्मीद है कि वृद्धाश्रम के लिए जल्द ही कहीं जमीन भी उपलब्ध हो जाएगी।

वृद्धोत्सव की कल्पना को किया साकार

बुजुर्गों को भी बच्चों की तरह मस्ती पसंद है। खेलना, उछल-कूद करना भी अच्छा लगता है, लेकिन घरों में तमाम बंदिशों की वजह से ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। बुजुर्गों की इसी मनोभावनाओं को कनक चंद ने वृद्धोत्सव के रूप में साकार किया। हर वर्ष होने वाले इस आयोजन को लेकर शहर के तमाम बुजुर्गों को उत्सुकता रहती है।

53 बुजुर्गों को परिवार से मिलाया

कनक नहीं चाहती हैं कि हर बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहे। जिनके घर हैं और परिवार में बच्चे हैं। ऐसे बुजुर्गों को उनके घर पर ही रखने के लिए वह प्रेरित करती हैं। कनक का कहना है कि अब तक वह 53 बुजुर्गों व उनके स्वजनों को घर पर रहने के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। यहीं नहीं, कनक ने आश्रम में अब तक छह बुजुर्गों की मौत हो गई है। इनका हिंदू पंरपरा से अंतिम संस्कार भी करवाया। इलाज के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई।

पहले से ही मन में था सेवा भाव

कनक कहती हैं, मैं खुद बेड पर थी। उठने की हिम्मत नहीं थी। बाबा नीम करौली महाराज का आशीर्वाद मिला। जब मैं ठीक हुई तो मेरे मन में समाज में उपेक्षित व निराश्रित बुजुर्गों की सेवा का भाव जगा और आश्रम की शुरुआत कर दी। शहर के लोगों के सहयोग से आश्रम संचालित कर रही हूं। उन्हें तीलू रौतेली समेत अब तक 32 पुरस्कार मिल चुके हैं। वह नैनीताल रोड सिविल लाइन में रहती हैं। परिवार के साथ ही इस काम में बेहतर तरीके से सामंजस्य करती हैं।


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