पर्यावरण बचाना और विकास कार्य करना सरकार का काम : हाई कोर्ट
कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरण बचाना और विकास कार्य करना सरकार का काम है अगर सरकार के पास ऐसा डेवलपमेंट प्लान है तो उसे चार सप्ताह में कोर्ट में पेश करे। साथ ही अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद नियत की है।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने वन अधिनियम में संशोधन कर पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले या 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वनों को वन की परिभाषा के दायरे से बाहर करने पर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरण बचाना और विकास कार्य करना सरकार का काम है, अगर सरकार के पास ऐसा डेवलपमेंट प्लान है, तो उसे चार सप्ताह में कोर्ट में पेश करे। साथ ही अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद नियत की है। हालांकि सरकार के उक्त आदेश पर कोर्ट ने पहले ही रोक लगा रखी है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में नैनीताल निवासी पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत, नैनीताल के विनोद पांडे और रेनू पाल की अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई। इन याचिकाओं में कहा गया है कि 21 नवंबर 2019 को उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने एक आदेश जारी कर दस हेक्टेयर से कम या 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वनक्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर कर दिया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह कार्यालय का आदेश है, लिहाजा इसे लागू नहीं किया जा सकता। न यह शासनादेश है, न ही कैबिनेट से पारित है। सरकार ने इसे अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए यह जीओ जारी किया है।
याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि वन संरक्षण एक्ट 1980 के अनुसार, प्रदेश में 71 प्रतिशत वनक्षेत्र घोषित हैं, जिसमें वनों की श्रेणी भी विभाजित है, परंतु कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जिनको किसी भी श्रेणी में नहीं रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के अपने गोंडा वर्मन बनाम केंद्र सरकार से संबंधित फैसले में कहा था कि कोई भी वनक्षेत्र, चाहे उसका मालिक कोई भी हो, उसे वनक्षेत्र के श्रेणी में रखा जाएगा और वनों का अर्थ क्षेत्रफल या घनत्व से नहीं है। विश्वभर में भी जहां 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़-पौधे हैं या उनका घनत्व 10 प्रतिशत है, तो उनको भी वनों की श्रेणी में रखा गया है। वहीं, राज्य सरकार के इस आदेश पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने भी कहा था कि प्रदेश सरकार वनों की परिभाषा न बदले। उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन होने कारण कई नदियों व सभ्यताओं का अस्तित्व बना हुआ है।
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