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सरकारी दालों की क्वालिटी पहले से खराब, अब महंगी भी हुईं, सस्ता गल्ला विक्रेताओं में नाराजगी

राशन कार्डों के जरिए हर माह बंट रही सरकारी दाल से सस्ता गल्ला विक्रेताओं और उपभोक्ताओं का मोहभंग होना शुरू हो गया है। उड़द के दाम में छह रुपये प्रति किलो व मलका के दाम में 14 रुपये की बढ़ोतरी कर दी गई है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 07:29 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 07:29 AM (IST)
सरकारी दालों की क्वालिटी पहले से खराब, अब महंगी भी हुईं, सस्ता गल्ला विक्रेताओं में नाराजगी
सरकारी दालों की क्ववालिटी पहले से खराब, अब महंगी भी हुईं, सस्ता गल्ला विक्रेताओं में नाराजगी

हल्द्वानी, जेएनएन : राशन कार्डों के जरिए हर माह बंट रही सरकारी दाल से सस्ता गल्ला विक्रेताओं और उपभोक्ताओं का मोहभंग होना शुरू हो गया है। जहां पहले ही दाल की गुणवत्ता पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं अब वहीं, उड़द के दाम में छह रुपये प्रति किलो व मलका के दाम में 14 रुपये की बढ़ोतरी कर दी गई है। गल्ला विक्रेताओं ने ऐलान किया है कि वे दिसंबर माह की दालें अब नहीं उठाएंगे।

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सरकारी सस्ता गल्ला की दुकानों के माध्यम से खाद्यान्न के साथ-साथ दालें भी सरकारी दाम में उपभोक्ताओं तक पहुंचाई जा रही है। लेकिन दालों की गुणवत्ता पर पहले से ही सवालिया निशान लग रहे हैं। जिसके चलते न तो गल्ला विक्रेता इन दालों को उपभोक्ताओं को बेच पा रहे हैं और न ही उपभोक्ता अपने कोटे की दाल लेने को राजी हैं। ऊपर से दालों के बदले गल्ला विक्रेताओं को मिलने वाले लाभांश में भी जबरदस्त घाटा उठाना पड़ रहा है। ऐसे में सिरदर्द कम होने के बजाय और बढऩे वाली है।

दरअसल, गल्ला विक्रेताओं का कहना है कि दिसंबर माह का खाद्यान्न गोदामों से उठान शुरू हो गया है। जिसमें दालें भी शामिल है। इस माह जो दालें हैं उनकी कीमत बढ़ा दी गई है। बताया कि जो उड़द पहले 65 रुपये प्रति किलो के दाम से बेची जा रही थी उसे अब 71 रुपये प्रति किलो के दाम पर बेचा जाना है। वहीं, मलका केदाम भी 51 से 65 रुपये प्रति किलो कर दिए गए हैं। कहा कि जब पहले से ही कम कीमत की सरकारी दाल दुकानों में नहीं बिक रही तो दाम बढऩे के बाद कैसे बिकेगी ये समझ से बाहर है।

आदर्श राशनिंग डीलर्स वेलफेयर सोसायटी उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद्र पांडेय ने बताया कि उड़द के दाम में छह व मलका में करीब 14 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। परेशानी ये है कि सस्ती होने के बावजूद जो दालें दुकानों से उपभोक्ता लेने को तैयार नहीं है उसे बढ़ते दाम में कोई उपभोक्ता क्यों खरीदेगा। सरकारी दालें गल्ला विक्रेताओं की परेशानी बन चुकी है। दिसंबर माह से दालों का उठान नहीं किया जाएगा।


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