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Indira Hridayesh Update News : शिक्षक से राजनीति के शिखर तक, इंदिरा ने बाखूबी संभाली हर जिम्मेदारी

Indira Hridayesh Update News राजनैतिक मर्यादा का पालन उन्होंने हमेशा से किया। कभी भी सतही या स्तरहीन बात उन्होंने नहीं की। इसका ताजा उदाहरण बंशीधर भगत के हमले के जवाब में उनके सधे हुए जवाब की तारीफ हर पार्टी के लोग करते हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 01:49 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 10:42 PM (IST)
Indira Hridayesh Update News : शिक्षक से राजनीति के शिखर तक, इंदिरा ने बाखूबी संभाली हर जिम्मेदारी
हिंदी व राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री के अलावा इन्होनें बीएड व पीएचडी कर अध्यापन कार्य शुरू किया।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : Indira Hridayesh Update News : सात अप्रैल 1941 को अयोध्या, उप्र में जन्मीं डा. इंदिरा हृदयेश पेशे से शिक्षिका थीं। हिंदी व राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री के अलावा इन्होनें बीएड व पीएचडी कर अध्यापन कार्य शुरू किया। वर्ष 1974 में सयुंक्त प्रांत में इंदिरा पहली बार उप्र विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित हुईं। उस समय हेमवती नंदन बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी।

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इंदिरा जी बहुत मुखर व जिम्मेदार नेता थीं। शिक्षकों के हित में वह हमेशा से आवाज उठाती रहीं हैं। इसलिए वर्ष 1986, 1992,1998 में उप्र विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित हुईं। इस दौरान उनकी काबिलियत को देखते हुए उत्तर प्रदेश विधान परिषद में उन्हें समय-समय पर सरकारी आवश्वनों संबंधी समिति, प्रश्न एवं संदर्भ समिति, लखनऊ नगर निगम के साथ ही विभिन्न विकास करने वाले प्राधिकरणों की निरीक्षण समित की जिम्मेदारी दी जाती रही। इसके अलावा विधान परिषद की अतिमहत्वपूर्ण मानी जाने वाली विधिक अधिकार समिति व अधिष्ठाता मंडल आदि की समितियों में सदस्य रहीं। इस तरह से उनके काम को प्रदेश के सभी नेताओं ने सराहना मिली। उनकी मेहनत को तत्कालीन कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने नाेटिस किया।

यह उनका लोगों के बीच की स्वीकार्यता व मेहनत ही थी कि उनकी झोली में ऐसे राजनीतिक रिकॉर्ड हैं जो कि उस समय सामान्य नहीं थे। जैसे इंदिराजी विधान परिषद के इतिहास में सर्वाधिक मत के अंतर से जीतने वाली महिला थीं। नवगठित उत्तराखंड तब उत्तरांचल राज्य की अनतिंम िविधान सभा में विपक्ष की नेता रहीं। साथ ही वर्ष 2002, 2012 व 2017 के आम चुनावों में उत्तराखंड के विधान सभा की सदस्या निर्वाचित हुईं। 2002 से 2007 तक नारायण दत्त तिवारी की सरकार में राज्य सरकार में लोक निर्माण विभाग, संसदीय कार्य मंत्री, राज्य संपति, सूचना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रहीं। इसके बाद 2012 से 2017 तक विजय बहुगुणा व हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में इंदिरा वित्त, वाणिज्य कर, स्टांप एवं निबंधन, मनोरंजन कर, संसदीय कार्य, विधायी निर्वाचन, जनगणना, भाषा, व प्रोटोकाल जैसे महत्वपूर्ण िवभागों की मंत्री का कार्य ठीक से निभाया। इसके बाद से वह अंतिम समय तक विधान सभा की नेता प्रतिपक्ष रहीं।

वह ब्यूरोक्रेसी से दबने वाली नेता नहीं थी। अधिकारियों से काम लेना उन्हें भली भांति आता था। प्रदेश कांग्रेस में एनडी तिवारी के समय के बाद से अंर्तकलह रही। इंदिरा हृदयेश इससे अछूती नहीं रहीं। पर एक राजनैतिक मर्यादा का पालन उन्होंने हमेशा से किया। कभी भी सतही या स्तरहीन बात उन्होंने नहीं की। इसका ताजा उदाहरण बंशीधर भगत के हमले के जवाब में उनके सधे हुए जवाब की तारीफ हर पार्टी के लोग करते हैं। उसकी का परिणाम था कि उत्तराखंड से दिल्ली तक भाजपा असहज हो गई थी और राज्य शीर्ष नेतृत्व को घुटनों पर आना पड़ा था।

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