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कश्मीर में फूलों की खेती बनने लगी आजीविका का आधार, उत्‍तराखंड का संस्‍थान बना मददगार

गोविंद बल्लभ पंत हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान कोसी अल्मोड़ा की लघु परियोजना अब कश्मीर घाटी के लिए वरदान साबित हो रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 09:45 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jul 2019 08:34 PM (IST)
कश्मीर में फूलों की खेती बनने लगी आजीविका का आधार, उत्‍तराखंड का संस्‍थान बना मददगार
कश्मीर में फूलों की खेती बनने लगी आजीविका का आधार, उत्‍तराखंड का संस्‍थान बना मददगार

अल्मोड़ा, बृजेश तिवारी : आजीविका सुधार और सशक्तीकरण कार्यक्रम के तहत कश्मीर घाटी में पिछले दो सालों से जारी गोविंद बल्लभ पंत हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान, कोसी, अल्मोड़ा की लघु परियोजना अब कश्मीर घाटी के लिए वरदान साबित हो रही है। कश्मीर घाटी को फूलों के उत्पादन और कारोबार के लिए उपयुक्त स्थानमाना जाता है। लंबे समय से देखा जा रहा था कि वहां आजीविका के क्षेत्र में उतना विकास नहीं हो पा रहा है, जितना होना चाहिए था। ऐसे में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन संस्थान द्वारा विकसित फूलों की व्यावसायिक खेती की परियोजना को आधार बनाया गया, जो सफल साबित हुई। 

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लिलियम, ट्यूलिप और ग्लेडियोस...

राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन संस्थान और शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान व तकनीकी विश्वविद्यालय, श्रीनगर के संयुक्त प्रयासों से अब फूलों की खेती अब वादी-ए-कश्मीर में वरदान साबित हो रही है। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत चलाई जा रही इस योजना से वर्तमान में कश्मीर की तीन घाटियों में तीन सौ हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र में लिलियम, ट्यूलिप और ग्लेडियोस फूलों का सफल उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान में 180 लोगों को इस कार्य का प्रशिक्षण दिया जा चुका है जबकि नौ स्वयं सहायता समूहों का गठन भी किया गया है। 

श्रीनगर, पुलवामा और कुलगाम हैं चयनित क्षेत्र 

फूलों की खेती के माध्यम से कश्मीर के युवाओं और महिलाओं की आजीविका विकास के लिए श्रीनगर, पुलवामा और कुलगाम जिलों को चयनित किया गया है। इन क्षेत्रों में अब तक पंद्रह प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा चुके हैं। फूल उत्पादकों के सामने यहां अब तक जो समस्याएं सामने आ रही थीं, उनमें कम उत्पादन, पुरानी पद्धति, अच्छे बीजों का अभाव, नई तकनीक की जानकारी न होना, कीटनाशकों की जानकारी व निर्यात के लिए एजेंसियों की कमी और बिचौलियों की समस्या मुख्य थी। परियोजना के तहत इन समस्याओं को दूर करने के साथ ही लोगों को जागरूक करने का प्रयास भी किया गया। बाजार में भारी मांग वाले इन फूलों के बीज शुरुआत में नीदरलैैंड्स से मंगाए गए। अब यही बीज स्थानीय स्तर पर तैयार हो रहे हैं। 

युवाओं ने पूरा कर दिखाया सपना 

कुलगाम से बीस किमी दूर क्वादरन गांव निवासी स्नातक पास एजाज अहमद 25 हेक्टेयर भूमि के मालिक हैं। प्रशिक्षण पाने के बाद एजाज ने लिलियम की पैदावार से एक सीजन में 75 हजार रुपये की आय अर्जित की। पुलवामा के अरसद अहमद ने भी अपने पॉलीहाउस से एक सीजन में पचास हजार रुपये की आय अर्जित की। दोनों अब फूलों की खेती को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। 

सजावटी और सुगंधित फूलों की मांग दुनिया में बढ़ी

डॉ. जेडए भाट, परियोजना प्रमुख, कश्मीर  ने बताया कि सजावटी और सुगंधित फूलों की मांग दुनिया भर में बढ़ती जा रही है। स्थायित्व, आय वृद्धि और समानता के साथ कश्मीरी परिवारों को आजीविका सुरक्षा मिले, इसके प्रयास किए जा रहे हैं। 

हिमालयी राज्यों के लिए यह परियोजना अनुकरणीय

किरीट कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक जीबी पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान,अल्मोड़ा, उत्तराखंड ने बताया कि हिमालयी राज्यों के लिए यह परियोजना अनुकरणीय है। संस्थान ने फूलों की खेती के लिए जलवायु और स्थानीय लोगों की आजीविका संवर्धन को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर को प्रोजेक्ट के लिए चुना। यहां जलवायु भी फूल उत्पादन के लिए अनुकूल है। इसी तरह उत्तराखंड में भी इसे आजीविका का सशक्त माध्यम बनाने के लिए प्रयास जारी हैं। 


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