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उत्तराखण्ड चुनाव 2022 : केवल चार सौ रुपये खर्च कर बने दो बार नैनीताल के विधायक

उत्तराखण्ड चुनाव 2022 नैनीताल के पूर्व विधायक किशन सिंह तड़ागी ने बताया कि उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें अपना दौर याद है। बोले पिता जी का बचपन में ही निधन हो गया था तो ईजा ने जैसे-तैसे मेहनत कर पढ़ाया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 09:02 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 09:02 AM (IST)
उत्तराखण्ड चुनाव 2022 : केवल चार सौ रुपये खर्च कर बने दो बार नैनीताल के विधायक
उत्तराखण्ड चुनाव 2022 : 98 वर्षीय पूर्व विधायक किशन सिंह तड़ागी नैनीताल के लांग व्यू क्षेत्र में रहते हैं

किशोर जोशी, नैनीताल : मेरे पास तो पैसा ही नहीं था। महज चार सौ रुपये में विधायक का चुनाव लड़ा। तब सिद्धांत व विचारधारा की राजनीति होती थी। राजनीति में शुचिता व ईमानदारी का बोलबाला था। आज की तरह दलबदल या पालाबदल की राजनीति नहीं थी। तब मेरे घर दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा आए थे, उन्होंने पार्टी बदलने का अनुरोध किया लेकिन मैंने सिद्धांतों का हवाला देकर विनम्रता से ठुकरा दिया। ईमानदारी व सिद्धांतों की राजनीति की वजह से नैनीताल पालिकाध्यक्ष और दो बार नैनीताल सीट से विधायक बना।

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यह कहना है 98 वर्षीय पूर्व विधायक किशन सिंह तड़ागी का। शहर के लांग व्यू क्षेत्र में अपने आवास पर बिस्तर पर आराम फरमा रहे पूर्व विधायक ने जागरण से लंबी बातचीत की। उम्र के इस पड़ाव में उनकी याददास्त भले ही कमजोर हो गई हो लेकिन फिर भी उन्हें अपना दौर याद है। बोले पिता जी का बचपन में ही निधन हो गया था तो ईजा ने जैसे-तैसे मेहनत कर पढ़ाया। चम्पावत शहर के मेलाकोट के मूल निवासी तड़ागी ने खेतीखान से मिडिल, फिर आगे की पढ़ाई के लिए वीरभट्टी नैनीताल बिष्ट स्टेट मेें नौकरी कर रहे भाई के यहां आ गए। यहां से हाईस्कूल, फिर लखनऊ से पढ़ाई की। बोले यहां बैंक आफ बड़ौदा का डायरेक्टर चुना गया। तब 1971 में पालिकाध्यक्ष चुने गए।

1985 में दिग्गज नेता केसी पंत व एनडी तिवारी से निकटता की वजह से कांग्रेस का टिकट मिला तो पूर्व मंत्री प्रताप भैय्या को पराजित कर पहली बार कांग्रेस से विधायक चुने गए। 1989 में उक्रांद नेता डॉ एनएस जंतवाल को पराजित कर दूसरी बार विधायक बने। बोले आज की तरह टिकट के लिए तब सियासी तिकड़म भिड़ाने की जरूरत नहीं थी। मतदाता भी प्रलोभन देने वाले प्रत्याशी को वोट नहीं देते थे। पूरे दिन प्रचार में पैदल निकलते थे। जो भी खर्च होता था, आने जाने में होता था। दल बदलना अच्छा नहीं माना जाता था। जातिवाद हावी नहीं था। तब अविभाजित नैनीताल जिले का भूगोल ओखलकांडा से टनकपुर, काशीपुर तक था। नैनीताल सीट में रामनगर, नैनीताल, भवाली, धारी, ओखलकांडा, रामगढ़, बेतालघाट आदि का विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला क्षेत्र था।

नहीं सोचा था कभी गाड़ी में बैठेंगे

पूर्व विधायक बोले पढ़ाई के दौरान जब ठंडी सड़क से पैदल कॉलेज जाते थे तो माल रोड पर अंग्रेजों की गाडिय़ां देखते थे, तब ख्वाब में सोचते थे कि क्या हम भी कभी गाड़ी में बैठेंगे। इलाके में कभी सड़क जाएगी, समय आया तो माल रोड में भारतीयों की गाड़ी चली और उनके जिले तक सड़क चली गई। एक बार एक इंजीनियर तबादला कराने के घर आया और वह उस दौर में लाखों रुपये लाया था। उसका सालों से ट्रांसफर नहीं हो रहा था लेकिन उसे घर से बाहर निकाल दिया। साथ ही कहा कि कभी उन्हें रिश्वत देने की कोशिश मत करना। तब राजनीति में बहुत ईमानदारी थी। बोले आज की राजनीति को लेकर जनता का नजरिया ठीक नहीं है। पैसे का बोलबाला हो गया है। विचाराधारा व सिद्धांत गौड़ हो गए।


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