होली में लीजिए प्राकृतिक सुगंध के साथ हर्बल रंगों का आनंद, बुरांस, पालक, चुकंदर से बने रंगों की दिल्ली, हैदराबाद में भी मांग
रेली रोड गौजाजाली स्थित श्रद्धा महिला एवं बाल विकास संस्था से जुड़ी महिलाएं पिछले तीन माह से हर्बल रंग तैयार कर रही हैं। स्थानीय स्तर के साथ रुड़की दिल्ली लखनऊ हैदराबाद आदि शहरों से भी हर्बल रंग की अच्छी मांग आ रही है।
हल्द्वानी, गणेश पांडे। रंगों के बिना होली की कल्पना संभव नहीं है। बाजारवाद का आज का दौर ही नहीं, पुराने समय में भी रंगों के बिना होली नहीं होती थी। इसीलिए होली गीत रया गया होगा- मत मारो मोहन पिचकारी। काहे को तेरो रंग बनो है, काहे की तेरी पिचकारी। अबीर, गुलाल का रंग बनो है, हरिया बांस की पिचकारी। मत मारो मोहन पिचकारी..। ऐसे अनगिनत गीत होली पर सुनाई देते हैं।
बाजार में रंगों की विस्तृत वैरायटी होने के बावजूद समूह की महिलाएं परंपरागत तरीके से हर्बल रंग तैयार करने में जुटी हैं। बुरांस, पालक, चुकंदर आदि से तैयार रंगों को खूब पसंद किया जा रहा है। प्राकृतिक रंगों के साथ यह खुद में सुगंध भी समेटे हुए हैं। बरेली रोड गौजाजाली स्थित श्रद्धा महिला एवं बाल विकास संस्था से जुड़ी महिलाएं पिछले तीन माह से हर्बल रंग तैयार कर रही हैं। स्थानीय स्तर के साथ रुड़की, दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद आदि शहरों से भी हर्बल रंग की अच्छी मांग आ रही है। अभी तक संस्था एक कुंतल रंग की बिक्री कर चुकी है।
इस तरह तैयार होता है रंग
बुरांस, पालक, चुकंदर, एलोवेरा, पत्ता गोभी, गेंदा फूल, हल्दी आदि से रंग तैयार होता है। बुरांस, हल्दी व गेंदा अपनी खुशबू से महकता है जबकि दूसरे रंगों में गुलाब की पंखुडिय़ा, नींबू का रस मिलाया जाता है। सामग्री को मिक्सी में पीसा जाता है। सुखाने के बाद दोबार पीसा जाता है और फिर छलनी से छानकर पैकिंग की जाती है।
महिलाओं के लिए रोजगार का साधन
संस्था अध्यक्ष पुष्पा कांडपाल बताती हैं कि उनके साथ दस समूहों की 100 महिलाएं जुड़ी हैं। कुछ समूह हर्बल रंग, कुछ पापड़, चिप्स, गुझिया व कोई छोटे बच्चों के लिए होली की ड्रेस तैयार कर रही। इससे महिलाओं को रोजगार मिल जाता है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से प्रचार होने के बाद दूसरे शहरों से हर्बल कलर की मांग आ रही है। सोमवार से हल्द्वानी नगर निगम में स्टॉल लगाकर महिला समूहों के उत्पादों की बिक्री की जाएगी।
नुकसान पहुंचा सकते हैं कैमिकल युक्त रंग
बाजार में आने वाले कई रंग केमिकल युक्त होते हैं। रंगों को गहरा बनाने के लिए उनमें कैमिकल मिलाया जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि रसायन युक्त रंग त्वचा को खराब करने के साथ जलन, खुजली, सूजन, आंखों की एलर्जी, बालों के झडऩे की समस्या पैदा कर सकते हैं। हवा में उड़ते रंग श्वांस रोगियों की मुसीबत बढ़ा सकते हैं। हर्बल रंगों का प्रयोग इसका बेहतर विकल्प है।
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