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इंजीनियर विनोद ने कोरोना के दौरान ठप हुए कोचिंग संस्‍थान के बाद शुरू किया मिट्टी के बर्तन का काम

विनोद जोशी ने 1990 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। दस साल तक माइनिंग कंपनियों में मेंटीनेंस इंजीनियर के तौर पर काम किया। काम नहीं जमा तो शहर में कोचिंग शुरू की। नौकरी करने वाले विनोद इंजीनियरिंग व मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने लगे। कई शिक्षक भी साथ जुड़ गए।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 06:34 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 06:34 PM (IST)
इंजीनियर विनोद ने कोरोना के दौरान ठप हुए कोचिंग संस्‍थान के बाद शुरू किया मिट्टी के बर्तन का काम
इंजीनियर विनोद ने कोरोना के दौरान ठप हुए कोचिंग संस्‍थान के बाद शुरू किया मिट्टी के बर्तन का काम

हल्द्वानी, संदीप मेवाड़ी : कोरोना काल के दौरान बहुत सारे लोगों का कारोबार प्रभावित हुआ। नौकरी छूटी, कामकाज ठप हुआ तो बड़ी तादाद में अवसाद में चले गए। लेकि जिन्‍हें कुछ करना था उन्‍होंने आपदा में अवसर तलाशा। वह हालातों के सामने घुटने टेकने की बजाए जी जान से जुट गए। ऐसे ही हैं हल्‍द्वानी के हीरानगर निवासी विनोद जोशी। उन्‍होंने कोरोना के दौरान कोचिंग का काम ठप होने के दौरान अपना कुछ दूसरा कारोबार शुरू करने की सोची। इसी सोच के साथ उन्‍होंने मिट्टी के बर्तनों का कारोबार शुरू किया। शहर में पहली बार मिट्टी के बर्तनों का कारोबार शुरू होने से धीरे-धीरे खरीदार बढ़ते गए। 

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विनोद जोशी ने 1990 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। दस साल तक माइनिंग कंपनियों में मेंटीनेंस इंजीनियर के तौर पर काम किया। काम नहीं जमा तो शहर में कोचिंग शुरू की। नौकरी करने वाले विनोद इंजीनियरिंग व मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने लगे। कई शिक्षक भी साथ जुड़ गए। सब कुछ सही चल रहा था कि पिछले साल मार्च में कोरोना ने दस्तक दे दी। कोचिंग का काम बंद हो गया। अनलाक शुरू होने के बाद भी कुछ समय तक कोचिंग संस्थानों को बंद रखा गया। पिछले साल अक्टूबर में मुखानी में मिट्टी के बर्तनों की दुकान शुरू की। मिट्टी के प्रेशर कूकर, हांडी, कप-प्लेट, तवा आदि रसोई के लिए जरूरी सभी तरह के बर्तन बेच रहे हैं। विनोद बताते हैं कि स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे लोग मिट्टी के बर्तनों को खरीदने पहुंच रहे हैं।

गुजरात, राजस्थान से मंगाए बर्तन

विनोद बताते हैं कि इंटरनेट मीडिया से उनको मिट्टी के बर्तनों के फायदों के बारे में पता चला। हल्द्वानी और आसपास के बाजारों में इन बर्तनों को तलाशने निकले तो पता चला कि यहां अब तक मिट्टी के बर्तन बेचने की दुकान नहीं है। इसके बाद अन्य राज्यों में पता कराया। गुजरात और राजस्थान में मिट्टी के बर्तन बिकने का पता चला। दोनों राज्यों से बर्तन मंगाकर बेचते हैं। 

इसलिए पसंद बनते हैं मिट्टी के बर्तन

विनोद जोशी बताते हैं कि मिट्टी के बर्तन क्षारीय प्रवर्ती के होते हैं, जिससे इनमें बना भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। वहीं धातु के बर्तन अमलीय प्रवर्ती के होते हैं। जिससे पेट संबंधी समस्याएं पैदा होने लगती है। हीरानगर के विनोद जोशी ने बताया कि जीवन में धन के साथ स्वस्थ व सुखी जीवन काफी जरूरी है। 50 की उम्र पहुंचने पर अधिक भागदौड़ वाला काम नहीं कर सकता था। ऐसा कारोबार करने की सोची, जिससे अपने साथ अन्य लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिले।


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