गजराज को उत्पाती, पागल कहना छोड़िए, सम्मानजनक नामों से पुकारना होगा, भारत सरकार ने जारी किया आदेश
खेतों में खड़ी फसल को रौंंद देने और जाने अनजाने कभी-कभार लोगों की जान ले लेने वाले गजराज को लोग उत्पाती पागल गुस्सैल बिगडै़ल जैसे जाने किन-किन नामों से पुकारते हैं। जिसके कारण लोगों में हाथियों के प्रति नफरत की भावना बढ़ने लगी है।
विनोद पपनै,रामनगर : खेतों में खड़ी फसल को रौंंद देने और जाने अनजाने कभी-कभार लोगों की जान ले लेने वाले गजराज को लोग उत्पाती, पागल गुस्सैल, बिगडै़ल जैसे जाने किन-किन नामों से पुकारते हैं। जिसके कारण लोगों में हाथियों के प्रति नफरत की भावना बढ़ने लगी है। जबकि हाथी अन्य वन्यजीवों की अपेक्षा सबसे समझदार और संवेदनशील प्राणी होते हैं। हाथियों के प्रति नफरत की भावना को कम करने के लिए कुछ वन्य जीव प्रेमियों ने भारत सरकार काे पत्र भेजकर ऐसे संबोधनों पर प्रतबंध लगाने की मांग की थी। जिसका संज्ञान लेते हुए भारत सरकार ने सभी राज्यों के प्रमुख वन संरक्षकों को पत्र जारी कर इन संबोधनों पर प्रतिबंध लगाने और हाथियों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के निर्देश जारी किए हैं।
इन नामों से पुकारिए
कार्बेट नेशनल पार्क के निदेशक राहुल कहते हैं कि हाथियों को काफी समझदार और संवेदनशील प्राणी माना जाता है। जब तक खुद पर संकट न हो तब तक वह किसी पर आक्रमण नहीं किया करते। इसलिए उनको सम्मान की दृष्टि से देखे जाने के साथ गजराज, गज, हस्ती, मतंग, कुम्भी, मदकल, गजेन्द्र, कुंजर, द्विप, वारण, करीश आदि नामों से पुकारा जाना चाहिए। वैसे भी हिन्दू धर्म मे उन्हें गणपति के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए इसके नाम का संबोधन भी सम्मान जनक होना चाहिए।
मातृ सत्ता के प्रतीक हैं हाथी
स्मरण शक्ति और बुद्धिमानी के मामले में हाथी का कोई मुकाबला नहीं है। इनकी खासियत है कि हाथी मातृ सत्ता के प्रतीक हैं। सबसे बड़ी बुजर्ग हथिनी की अपने झुंड को नियंत्रित किया करती है। हाथी चाहे कितना ही बलशाली क्यों न हो उसे भी अपने लीडर की बात माननी होती है। अनुशासन प्रिय होने के कारण यह वन्य जीव प्रेमियों के लिए खास मायने रखती है और जंगल का सबसे प्यारा प्राणी है। समूह से हटकर अगर कोई हाथी गलत कार्य करता है तो उससे सारे गजराजों के प्रति गलत धारणा बना लेना उचित नहीं है।
इसलिए होते हैं आक्रमक
वन्यजीव विशेषज्ञ एवं फोटोग्राफर दीप रजवार कहते हैं कि बढ़ते मानवीय दखल और कंकरीट में तब्दील होते जंगल, बंद होते कॉरिडोर, जंगलों में चारे के आभाव की वजह से यह आबादी का रुख कर रहे हैं। इसलिए कभी-कभार यह गुस्से में आक्रमण करने की खबरें भी आती रहती हैं। वरना इनका शांत स्वभाव किसी से छिपा नहीं है।
भावी पीढ़ी न समझ बैठे दुश्मन
वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी कहते हैं कि अक्सर हम सांप को अपना दुश्मन समझ लेते हैं। जबकि सांप किसान मित्र कहे जाते हैं और खेतों को उर्वरक बनाते हैं। इसी तरह हाथी भी ईको फ्रेंडली है, अगर हम उनको भी उत्पाती कहने लगेंगे तो नई पीढ़ी उसे सांपों की तरह अपना दुश्मन समझने लगेगी। भारत सरकार द्वारा हाथियों के प्रति सम्मान जनक शब्द का उपयोग किए जाने का निर्णय वास्तव में सराहनीय है।
उत्तराखंड में बढ़ी हाथियों की संख्या
उत्तराखंड में हाथियों की संख्या अब 2026 हो गई है, जो 2017 में 1839 थी। तीन साल के अंतराल में इनकी संख्या में 10.17 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। बीते जून में राज्य में हाथी गणना की गई। जिसके मुताबिक कार्बेट टाइगर रिजर्व में सर्वाधिक 1224 हाथी हैं, जबकि राजाजी टाइगर रिजर्व में इनकी संख्या 311 है। शेष अन्य वन प्रभागों में हैं। वर्ष 2017 की गणना में राज्य में 1839, वर्ष 2015 में 1797 और वर्ष 2012 में 1559 हाथी थे। वन मंत्री डा. हरक सिंह रावत के अनुसार, 2017 के मुकाबले हाथियों की संख्या में इस बार 10.17 फीसद की वृद्धि हुई है। 2012 से अब तक के परिदृश्य को देखें तो प्रतिवर्ष 3.3 फीसद हाथी बढ़ रहे हैं।