शहादत के दिन 31 दिसंबर 2007 को मणिपुर के लिए जाने वाले थे देवेन्द्र, रोक लिया था अफसरों ने nainital news
रामपुर सीआरपीएफ के ग्रुप सेंटर पर 12 वर्ष पहले हुए आतंकी हमले में कटैया निवासी देवेंद्र कुमार शहीद हो गए थे। उनकी शहादत की गाथा बताते हुए मां-पिता रो पड़े।
काशीपुर, जेएनएन : रामपुर सीआरपीएफ के ग्रुप सेंटर पर 12 वर्ष पहले हुए आतंकी हमले में कटैया निवासी देवेंद्र कुमार शहीद हो गए थे। शहादत के दिन 31 दिसंबर 2007 को उन्हें मणिपुर के लिए रवाना होना था, लेकिन आला अफसरों ने उन्हें किसी काम से रोक लिया था। देवेंद्र की शहीद गाथा बताते समय बूढ़े माता-पिता की आंखों से आंसू छलक पड़े। दोनों ने रामपुर कोर्ट की ओर से दोषियों को सुनाई फांसी की सजा को सही बताया।
ग्राम कटैया, थाना आइटीआइ निवासी देवेंद्र कुमार 2006 में रामपुर से ही सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। ग्रुप सेंटर में ट्रेनिंग पूरी होने के बाद देवेंद्र को मणिपुर तैनाती मिली। पिता धर्मवीर ने बताया कि 31 दिसंबर को देवेंद्र को दिन में मणिपुर के लिए निकलना था, लेकिन उसी दिन रात करीब ढाई बजे आतंकियों ने हमला कर दिया। विधाता को यही मंजूर था।
बोले, देवेंद्र खेती नहीं करना चाहते थे। उन्हें सेना में जाने के लिए शुरू से ही तैयारी कर ली थी। उन्होंने बताया कि बेटे की शहादत के बाद सरकार से पूरी मदद मिली। छोटे बेटे राजेंद्र सिंह को 2016 में सीआरपीएफ में क्लर्क के पद तैनाती दी गई। वह इस समय काठगोदाम हल्द्वानी में तैनात है। देवेंद्र के शहीद होने पर घर की नींव लडख़ड़ा गई। वह चार बहनों, एक भाई और बीमार माता-पिता के एकमात्र सहारा थे। 12 साल बाद रामपुर के अपर जिला जज संजय कुमार की अदालत ने घटना के छह दोषियों में से इमरान शहजाद, फारुख, सबाउद्दीन व शरीफ को फांसी, जंगबहादुर को उम्र कैद और फहीम को 10 वर्ष की सजा सुनाई है।
शहादत के तीन सप्ताह पहले दादी को देखने आए थे घर
देवेंद्र कुमार की दादी की बीमारी के चलते तबीयत ज्यादा खराब थी। आतंकी हमले के तीन सप्ताह पहले वह दादी को देखने के लिए घर आए थे। इस दौरान देवेंद्र ने पूरे परिवार को सबकुछ ठीक होने का ढांढ़स बंधाया था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इसके बाद वह कभी वापस घर नहीं लौटेंगे।
आखिरी चिठ्ठी परिवार को दिलाती है देवेंद्र की याद
शहीद देवेंद्र कुमार ने ट्रेनिंग खत्म होने के तीन माह पहले अपनी आखिरी चि_ी लिखी थी, जिसमें उन्होंने परिवार को सही से रहने की सलाह दी। साथ ही माता इंद्रवती व पिता धर्मवीर को छोटे भाई राजेंद्र को डांटकर रखने की सलाह दी थी। कहा था कि उसे ठीक से पढ़ाना, जिससे कि वह उसकी तरह कहीं सिपाही तक ही सीमित न रह जाए। कहा था कि यदि कोई दिक्कत हो तो उसे बताएं, जिससे की वह समस्या का हल कर सकें। देवेंद्र की शहादत के समय बहन सीमा 18 वर्ष, रीना 17 वर्ष, रिंकी 16 वर्ष व प्रेरणा छह वर्ष की थी। अभी राजेंद्र और पिंकी की शादी नहीं हुई है।