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ंपेयजल संकट को लेकर अफरों में छिड़ी बहस

हल्द्वानी में नगर से लेकर गांव तक धड़ाधड़ नलकूप फुंक रहे हैं। हमेशा हजारों की आबादी पेयजल संकट झेलती रहती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 07:56 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 01:53 AM (IST)
ंपेयजल संकट को लेकर अफरों में छिड़ी बहस
ंपेयजल संकट को लेकर अफरों में छिड़ी बहस

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : शहर से लेकर गांव तक धड़ाधड़ नलकूप फुंक रहे हैं। हमेशा हजारों की आबादी पेयजल का संकट झेलती रहती है। नलकूपों के लगातार फुंकने के लिए जलसंस्थान की कार्यप्रणाली दोषी है या ऊर्जा निगम, इसको लेकर अफसरों में बहस छिड़ चुकी हैं। जलसंस्थान का मानना है कि बिजली का काफी उतार-चढ़ाव नलकूप की मोटर फुंकने के लिए जिम्मेदार है। वहीं ऊर्जा निगम कहता है कि काफी पहले नलकूपों में सर्वो स्टेबलाइजर लगाने के लिए कहा जा चुका है। इसके बाद वोल्टेज में आए परिवर्तन से मोटर पर असर नहीं पड़ता।

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हल्द्वानी की पांच लाख आबादी में से आधी गौला और आधी नलकूपों पर निर्भर है। पेयजल के लिए जलसंस्थान को रोजाना 80 एमएलडी पानी की जरूरत होती है। गौला से 30 एमएलडी और नलकूपों से 35 एमएलडी पानी मिलता है। जलसंस्थान के 67 नलकूपों के अलावा सिंचाई विभाग के 191 नलकूपों को भी पेयजल की लाइनों से जोड़ा गया है। सिंचाई के कई नलकूप तो अब करीब-करीब पूरी तरह से पेयजल के लिए प्रयोग होने लगे हैं।, वहीं सिंचाई विभाग के दो से तीन और इतने ही जलसंस्थान के नलकूप हमेशा फुंके रहते हैं। एक नलकूप की मरम्मत में न्यूनतम सप्ताह का समय लग जाता है। कई बार नलकूपों से जलापूर्ति कराने में 15 से 25 दिन तक लग जाते हैं। इस दौरान हजारों की आबादी पेयजल के लिए भटकती रहती है।

नलकूपों के फुंकने पर जलसंस्थान या सिंचाई विभाग मरम्मत तो कराता है, लेकिन वह इसके पीछे ऊर्जा निगम को दोषी मानता है। जलसंस्थान अफसरों का कहना है कि नलकूपों के लिए अलग विद्युत लाइन का प्रावधान होने के बाद भी वोल्टेज का काफी उतार-चढ़ाव रहता है। सिंचाई विभाग के अधिकांश नलकूपों में सर्वो स्टेबलाइजर नहीं लगे हैं। जलसंस्थान के नलकूपों में स्टेबलाइजर लगे होने के बाद भी वोल्टेज काफी तेजी से घटने-बढ़ने पर मोटर पर असर पड़ रहा है। ऊर्जा निगम के अफसर कहते हैं कि जलसंस्थान को नलकूपों में स्टेबलाइजर लगाने के लिए काफी पहले कहा गया है। अगर स्टेबलाइजर लगा हो तो मोटर पर वोल्टेज के घटने बढ़ने का असर नहीं पड़ता है। ग्रिड पर लोड बढ़ने पर वोल्टेज लो और घटने पर अधिक हो जोती है। जब अलग फीडर तो बिजली संकट क्यों?

बिजली के उतार-चढ़ाव के साथ ही लंबी कटौती भी पेयजल संकट का कारण बन रही है। जलसंस्थान अफसरों का कहना है कि नलकूपों के लिए बिजली घर से अलग लाइन होने का ऊर्जा निगम दावा करता है, लेकिन इसके बाद भी घंटों कटौती होती है। नलकूपों का संचालन न होने से लोगों के गुस्से का सामना जलसंस्थान को करना पड़ता है। दमुवाढूंगा क्षेत्र में पेयजल संकट का मुख्य कारण बिजली कटौती है। इससे परेशान होकर अब महकमा कुछ नलकूपों में जनरेटर व्यवस्था बनाने की तैयारी कर रहा है। दीपावली के मद्देनजर विद्युत लाइनों की मरम्मत व लापिंग-चापिंग की वजह से बिजली घरों से आपूर्ति बंद रखी जा रही है। इसके अलावा अगर किसी नलकूप में बिजली की समस्या आ रही है तो उसे दिखाया जाएगा। वोल्टेज समस्या के लिए जलसंस्थान व सिंचाई विभाग को सभी नलकूपों में स्टेबलाइजर लगाने होंगे। पहले चरण में फतेहपुर क्षेत्र के ही नलकूपों के फीडर अलग किए गए हैं।

- अमित आनंद, ईई, ग्रामीण, ऊर्जा निगम बिजली के काफी उतार-चढ़ाव से नलकूपों की मोटरों पर असर पड़ रहा है। मोटर फुंकने पर जांच में बिजली का उतार-चढ़ाव ही अधिकांश बार कारण आता है। फीडर अलग होने के बावजूद बिजली कटौती से कुछ नलकूपों का संचालन नहीं हो पा रहा है। इससे इन नलकूपों से जुड़े इलाकों में जलसंकट गहराया रहता है।

- विशाल सक्सेना, ईई, जलसंस्थान


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