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कांग्रेस प्रदेश प्रभारी तीन दिन कमेटी की नब्ज टटोल कर बनाएंगे सियासी रणनीति

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव आज से देहरादून में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की मैराथान बैठक लेंगे। पार्टी मुख्यालय में तीन दिन अलग-अलग चरणों में बैठकों का दौर चलता रहेगा। पदाधिकारी कार्यकर्ता और स्थानीय क्षत्रपों की नब्ज टटोल संगठन की मजबूती को लेकर रणनीति बनाई जाएगी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 06:49 AM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 06:49 AM (IST)
कांग्रेस प्रदेश प्रभारी तीन दिन कमेटी की नब्ज टटोल कर बनाएंगे सियासी रणनीति
कांग्रेस प्रदेश प्रभारी आज से दून में कमेटी संग करेंगे बैठक, तीन दिन चलेगा मंथन

हल्द्वानी, जेएनएन : ज्वाइनिंग के डेढ़ माह बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव आज से देहरादून में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की मैराथान बैठक लेंगे। पार्टी मुख्यालय में तीन दिन अलग-अलग चरणों में बैठकों का दौर चलता रहेगा। पदाधिकारी, कार्यकर्ता और स्थानीय क्षत्रपों की नब्ज टटोलने के बाद सरकार को घेरने के साथ संगठन की मजबूती को लेकर रणनीति बनाई जाएगी। नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश समेत समेत कुमाऊं से कई बड़े कांग्रेसी देहरादून रवाना हो गए।

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ढाई साल अनुग्रह नारायण सिंह ने उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी निभाई थी। 11 सितंबर का उनकी जगह यह जिम्मेदारी कांग्रेस ने देवेंद्र यादव को दी। अनुग्रह के समय पार्टी को लोकसभा, निकाय और फिर पंचायत चुनाव में करारी का हार का सामना करना पड़ा था। उत्तराखंड में धड़ों में बंटी कांग्रेस ने भी उन्हें खासा परेशान किया। उसके बाद जनवरी में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की नई लिस्ट जारी होने के बाद खासा विवाद खड़ा हो गया था।

खुद कांग्रेसियों ने सड़क पर उतर बड़े नेताओं के समक्ष नाराजगी जाहिर की थी। जिसके बाद डेढ़ माह पहले अनुग्रह की जगह राजस्थान में सियासी संकट के समय कांग्रेस के लिए अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व विधायक देवेंद्र यादव को जिम्मा सौंपा गया। कांग्रेसियों के मुताबिक प्रदेश कांग्रेस कमेटी, वर्तमान व पूर्व विधायक के अलावा पूर्व सांसदों से नए प्रभारी अलग-अलग बैठक करेंगे। इसके अलावा कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों से वार्ता कर भी पार्टी की मजबूती को रणनीति बनाई जाएगी।

नए प्रभारी के सामने पुरानी समस्या : नए प्रभारी देवेंद्र यादव को अनुग्रह की तरह प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी को शांत कराने की बड़ी चुनौती रहेगी। दो गुटों में बंटे बड़े क्षत्रप अक्सर बयानबाजी को लेकर चर्चा में रहते हैं। सरकार को एकजुट होकर घेरने की कोशिश में पिछडऩे की बड़ी वजह यह गुटबाजी ही है।


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