नैनीताल के अस्तित्व के लिए जरूरी बनियानाला के ट्रीटमेंट के लिए ब्रिटिशकाल से बनती रही हैं कमेटियां
सरोवर नगरी के अति संवेदनशील व अस्तित्व के लिए जरूरी बलियानाले में दशकों से भूस्खलन जारी है। इसकी रोकथाम के लिए ब्रिटिशकाल से ही कमेटियां बनी पहाड़ी के संरक्षण के लिए करोड़ों बहा भी दिए गए लेकिन बीमारी का उपचार नहीं हो सका। जापान के विशेषज्ञों की टीम के सर्वे के बाद अब प्रभावित क्षेत्र के लोगों में स्थायी उपचार की उम्मीद जगी है।
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल के अति संवेदनशील व अस्तित्व के लिए जरूरी बलियानाले में दशकों से भूस्खलन जारी है। इसकी रोकथाम के लिए ब्रिटिशकाल से ही कमेटियां बनी, पहाड़ी के संरक्षण के लिए करोड़ों बहा भी दिए गए, लेकिन फिर भी का उपचार नहीं हो सका। जापान के विशेषज्ञों की टीम के सर्वे के बाद अब प्रभावित क्षेत्र के लोगों में स्थायी उपचार की उम्मीद जगी है। वहीं डीएम सविन बंसल ने भी इसके मरम्मत के लिए कवायद तेज कर दी है।
वर्ष 1867 में मची थी पहली तबाही, 1889 में हुआ था बड़ा भूस्खलन
नैनीताल को लेकर शोध अध्ययन कर चुके कुमाऊं विवि भूगोल विभाग से रिटायर्ड प्रो. जीएल साह बताते हैं कि नैनीझील के ओवरफ्लो पानी से 1867 में पहली बार तबाही मची थी। भूस्खलन से पुराना रईस होटल क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ था। 1889 में पहला बड़ा भूस्खलन हुआ, जिसमें क्षेत्र की काठरोड ध्वस्त हो गई। बाद में काठरोड का डिजाइन तैयार करने के लिए जिम्मेदारी जीएसआइ के सुप्रिनटेंडेंट अंग्रेज अधिकारी ओल्डहेम को दी गई। 1898 में बलियानाले में कैलाखान की ओर से बड़ा भूस्खलन हुआ। नाले में मलबा जमा हो जाने से जल निकासी नहीं हो पाई, जिससे नाले में तीन बड़ी बड़ी लेक बन गई। लेक टूटने के कारण वीरभट्टी स्थित शराब की फैक्ट्री बहने समेत काफी जान माल का नुकसान हुआ था। तब 27 हिंदुस्तानी और एक अंग्रेज की मौत भी हुई थी। 1899 में कैलाखान की ओर की पहाड़ी में, 1915 में मनोरा से वीरभट्टी क्षेत्र में, 1924 में हनुमानगढ़ी की तरफ से पहाड़ी में हुए भूस्खलन में दो लोगों के मौत और मनोरा से नैनीताल को जोड़ने वाली सड़क क्षतिग्रस्त हुई थी। 1972, 1975 में भूस्खलन की बड़ी घटनाएं दर्ज की गई।
भूस्खलन रोकथाम को 1888 में बनी पहली कमेटी
प्रो. साह बताते हैं कि 1867 की तबाही के बाद से ही अंग्रेज भूस्खलन की रोकथाम के लिए सजग हो गए थे। 1888 में इंजीनियरों की पहली कमेटी गठित की गई थी। 1889 के भूस्खलन के परिणामों को देखते अंग्रेज अधिकारी ब्रेस फोल की अध्यक्षता में एक अन्य कमेटी का गठन हुआ। इसके द्वारा नाले की रोकथाम के लिए नाले की सतह को पक्का करना, दोनों किनारों पर सुरक्षा दीवारों का निर्माण और नैनीझील के पानी के निकासी की समुचित व्यवस्था करने संबंधी कार्य किए गए थे।
करोड़ों बहाकर भी नहीं रुका भूस्खलन
पिछले दो दशक में ही पहाड़ी के संरक्षण के लिए करोड़ों की धनराशि खर्च कर दी गई है, लेकिन लापरवाही और अनियोजित तरीके से किए गए कार्यो के चलते आज भी यहां भूस्खलन जारी है। क्षेत्र के पूर्व सभासद डीएन भट्ट ने बताया कि 1972 में अविभाजित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन वित्त मंत्री एनडी तिवारी ने पहाड़ी के संरक्षण के लिए 95 लाख की स्वीकृति प्रदान की थी। 1976 में हाई पावर कमेटी गठित की गई थी। कमेटी द्वारा फॉल नंबर 22 से ब्रेवरी पुल तक करीब 2.10 किमी नाले के पैनल की लाइनिंग बनाने की संस्तुति की गई थी। स्वीकृति के बावजूद करीब 30 वर्ष बाद 2003 में नाले के संरक्षण का कार्य शुरू कराया गया। ये कार्य भी कमेटी की संस्तुति के आधार पर नहीं हो पाए। केवल फॉल संख्या 22 और उससे आगे 70 मीटर हिस्से में ही लाइनिंग का कार्य कराया गया। 2003 से अब तक करीब 57 करोड़ की धनराशि पहाड़ी के संरक्षण में खर्च कर दी गई है।
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