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बचपन में पिता का निधन, मां को है कैंसर, खुद देख नहीं सकते फिर भी चंपावत के प्रकाश दिखा रहा उजाले की राह

चंपावत से 30 किमी दूर अमोड़ी गांव निवासी प्रकाश भट्ट की एक आंख बचपन से ही खराब थी। नौवीं कक्षा की पढ़ाई करते-करते उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। वर्तमान में प्रकाश की दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 08:42 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 08:42 AM (IST)
बचपन में पिता का निधन, मां को है कैंसर, खुद देख नहीं सकते फिर भी चंपावत के प्रकाश दिखा रहा उजाले की राह
अमोड़ी गांव निवासी प्रकाश भट्ट की एक आंख बचपन से ही खराब थी।

विनोद कुमार चतुर्वेदी, चम्पावत : वह वहां तक नहीं जा पाया जहां से सब कुछ दिखाई देता है, बल्कि वहां तक गया जहां से दिखाई न देने के बाद भी सब कुछ दिखाई देता है। जीवन में कुछ कर गुजरने की लालसा हो तो यह मायने नहीं रखता कि बाधा कितनी बड़ी है, जज्‍बा होना चाहिए। चंपावत जिले के अमोड़ी गांव निवासी प्रकाश भट्ट एक ऐसे सख्‍श हैं जिनकी कोशिशों को लो सलाम करते हैं। आंखों की रोशनी गायब होने के बाद भी प्रकाश लोगों को उजाले की राह दिखा रहे हैं।

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चंपावत जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर अमोड़ी गांव निवासी प्रकाश भट्ट की एक आंख बचपन से ही खराब थी। नौवीं कक्षा की पढ़ाई करते-करते उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। वर्तमान में प्रकाश की दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी है। दोनों आंखें खराब होने से प्रकाश आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्‍होंने ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया।

अभी वे कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला, पहाड़े, ककहारा, अंग्रेजी और हिंदी की कविताएं, सामान्य ज्ञान, पर्यावरण से संबंधित विषय मौखिक रूप से पढ़ाते हैं। गांव के 15 से 20 बच्चे उनके पास पढ़ाई के लिए पहुंचते हैं। शीत कालीन अवकाश और ग्रीष्म कालीन अवकाश में सुबह और शाम दो पारियों में बच्चे उनके पास पढऩे के लिए पहुंचते हैं। इससे उनका जेब खर्च निकल जाता है।

30 वर्षीय प्रकाश भट्ट ने बताया कि वर्ष 2007 से उनकी दूसरी आंख से दिखना बंद हो गया। एक आंख के सहारे उन्होंने नौंवी कक्षा तक पढ़ाई की, लेकिन पूरी तरह दिखना बंद होने के बाद आगे की पढ़ाई छूट गई। वर्ष 2004 में प्रकाश भट्ट के सिर से पिता हरिदत्त भट्ट का साया उठ गया। माता त्रिलोकी देवी कैंसर पीडि़त हैं। इस स्थिति में उनकी मुश्किलें और अधिक बढ़ गईं। दो भाई और दो बहनों में प्रकाश दूसरे नंबर के हैं। कमाने वाला एक ही भाई है। बच्चों को पढ़ाकर और दिव्यांग पेंशन के रूप में मिलने वाले 1200 रुपये से वह परिवार चलाने में भाई की मदद कर रहे हैं।

दिव्यांगता की वजह से उन्होंने विवाह भी नहीं किया। उनके पास न राशनकार्ड है और न ही आवास। बीपीएल राशन कार्ड नहीं होने से वे आवास योजना के लिए भी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। प्रकाश ने बताया कि डाक्टरों ने उन्हें आंखों का आपरेशन करवाने की सलाह दी है। डाक्टरों के अनुसार आपरेशन से आंखों की रोशनी लौटेगी इस बात की गारंटी नहीं है। बताया कि उनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं हैं। जिस कारण वह आंखों के इलाज के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हैं।

बचपन से ही होनहार रहे हैं प्रकाश

अमोड़ी निवासी प्रकाश भट्ट बचपन से ही होनहार रहे हैं। कक्षा नौवीं तक उनके साथ पढ़ाई करने वाले ग्रामीण दिनेश चंद्र भट्ट ने बताया कि एक आंख खराब होने के बाद भी पढऩे में होशियार होने के कारण शिक्षक अन्य छात्रों को उनका उदाहरण देकर पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करते थे। किसी पाठ को एक बार पढ़ लेने के बाद वे प्रश्नों का उत्तर आसानी से दे देते थे।

सड़क सुविधा न होने से पेंशन लाना मुश्किल

अमोड़ी गांव तक सड़क नहीं पहुंचने के कारण प्रकाश भट्ट को दिव्यांग पेंशन लाने के लिए चम्पावत पहुंचने में काफी दिक्कत उठानी पड़ती है। स्वजन हाथ पकड़कर उन्हें 10 किमी दूर मुख्य सड़क तक लाते हैं। गांव तक सड़क न पहुंचने से प्रकाश भी जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन की कार्यप्रणाली से खासे आहत हैं।


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